देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों की संख्या में भारी कमी देखने में तो आई है परंतु क्या उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा एवं मकान की सुविधायें ठीक तरीके से उपलब्ध हो पा रही हैं एवं क्या सरकार द्वारा इन मदों पर उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं को गऱीबी आंकने के पैमाने में शामिल किया जाता है अथवा केवल उनकी आय में हुई वृद्धि के चलते ही उन्हें गऱीबी रेखा के स्तर से ऊपर मान लिया गया है? इस प्रश्न पर विचार किया जाना ज़रूरी है। भारत में वर्ष 1947 में 70 प्रतिशत लोग गऱीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे थे। जबकि अब वर्ष 2020 में देश की कुल आबादी का लगभग 22 प्रतिशत हिस्सा गऱीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा है। 1947 में देश की आबादी 35 करोड़ थी जो आज बढ़कर 136 करोड़ हो गई है। देश में गऱीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों की आय में वृद्धि के साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय समावेशन को सफलतापूर्वक लागू किए जाने के कारण गऱीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या में भारी कमी देखने में आई है। उसके पीछे मुख्य कारण देश में विभिन्न वित्तीय योजनाओं को डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म पर ले जाना है।
पूरे विश्व में ही गऱीबी रेखा को परिभाषित करने का एक लम्बा इतिहास रहा है। परंतु, भारत उन अग्रणी देशों में रहा है जिन्होंने गऱीबी की रेखा को सबसे पहले परिभाषित किया था। वर्ष 1960 से ही भारत एवं विश्व बैंक की इस सम्बंध में आपस में चर्चा चलती आई है और भारत द्वारा गरीबी रेखा की जो परिभाषा विकसित की गई थी, उसी के इर्द-गिर्द विश्व बैंक ने भी एक डॉलर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति की आय को ही गऱीबी रेखा के रूप में परिभाषित किया था, जो बाद में समय के साथ बढ़ते-बढ़ते दो डॉलर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति आय तक पहुंच गई। आज की स्थिति को देखते हुए गऱीबी रेखा को निर्धारित करते समय खाद्य सामग्री एवं उपभोग की जाने वाली अन्य वस्तुओं के अलावा कुछ अन्य मुख्य बिंदुओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, यथा, देश में शिक्षा का स्तर कितना है, इस सम्बंध में विशेष सुविधाएं किस प्रकार उपलब्ध हैं और इसका कितना विकास हुआ है। दूसरे, देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति कैसी है एवं क्या ये सुविधाएं सभी नागरिकों को आसानी से उपलब्ध हैं? तीसरे, लोगों को रहने के लिए मकान की सुविधायें किस स्तर पर उपलब्ध हैं?
इसके साथ ही यदि सरकार द्वारा स्वास्थ्य, शिक्षा एवं मकान आदि के लिए मुफ़्त सुविधाएं उपलब्ध करायी जा रही हैं तो इन्हें इन सुविधाओं का लाभ लेने वाले व्यति की आय में शामिल किया जाना चाहिए ताकि इन व्यक्तियों को गऱीबी रेखा के ऊपर माना जा सके। केवल उस व्यति की आय से गऱीबी रेखा का आकलन करने के तरीक़े को अब बदलने का समय आ गया है। अगर विशेष रूप से भारत की बात की जाये तो यहां तीन चीज़ें विश्व के अन्य देशों की तुलना में एकदम अलग हैं- एक तो हमारे देश के गांवों में निवास करने वाले लोगों की संया बहुत अधिक है। दूसरे, कृषि पर आश्रित लोगों की संख्या भी बहुत अधिक है। तीसरे, अनौपचारिक सेटर में बहुत बड़ी तादाद में लोग कार्यरत हैं, जहां कार्यरत लोगों की आय नियमित नहीं है। कृषि क्षेत्र में तो यह सामान्य बात है। कृषि क्षेत्र की एक खासियत यह भी है कि भारत में कृषि क्षेत्र में आय बदलती रहती है। सरकार को चाहिए कि देश में होने वाली आर्थिक गणना के आधार पर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों के लिए ऐसी योजनाएं चलाएं जिसका पारदर्शी निरीक्षण भी होता रहे।