पहले धार्मिक किस्से कहानियों में ही कयामत, जलजला, प्रलय आदि के बारे में पढ़ा था। पर यह नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसे हालात पैदा हो जाएंगे कि यह सब कुछ हमें अपने सामने ही देखने को मिलेगा। अभी तो यहीं लगता है कि कोरोना का असली दुष्प्रभाव आने वाला है व निकट भविष्य में हमें इससे भी ज्यादा खतरनाक हालात से गुजरना पड़ सकता है। मेरा मानना है कि यह सब कुछ प्रकृति के प्रकोप का ही नतीजा है। कोरोना की तुलना में कहीं ज्यादा भयंकर प्रकृति का बढ़ता हुआ तापमान है। दुनिया भर के वैज्ञानिक इस समय घबराए हुए हैं कि बढ़ते औद्योगिकरण की वजह से दुनिया में बढ़ रही गर्मी के कारण आर्कटिक व अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने लगी है व समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है। इटली में तो कई जगह समुद्र का पानी बढ़ने के कारण डूब जाते है। कई बार मुझे यह डर लगता है कि कहीं एक दिन इटली का हाल द्वारिका जैसा न हो। यह भी क्या संयोग है कि जिस ईश्वर से हम पूरी मानवता को बचाने की गुहार लगा रहे हैं। वह अपने ही द्वारा निर्मित शहरों को नहीं बचा पाया। द्वारिका को श्रीकृष्ण ने बसाया था वह पानी में डूब गई। राम मंदिर की जगह को हासिल करने में लोगों को अदालत के धक्के खाते दशकों लग गए।
व अब प्रभु ईसा मसीह की आस्था का केंद्र रोम समुद्र में डूबने का खतरा झेल रहा है। जो खबरें आ रही है उसे देख कर लग रहा है कि मानो पृथ्वी पर प्रलय आने वाली है जो कि कुछ समय पहले सुनामी से हुई तबाही को भुला देगी। यह प्रलय अंटार्कटिका से आएगी। अंटार्कटिका दुनिया का सबसे ठंडा महाद्वीप है। यह पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव में स्थित है। यह खतरनाक समुद्र, तेज तूफानों व शिला खंडों से घिरा हुआ द्वीप है। अभी तक किसी देश ने इस महाद्वीप पर दावा नहीं किया है। वहां कुछ देशों के वैज्ञानिक शिविर जरूर है। सदियों पहले अंटार्कटिका प्रदूषण से मुक्त था। मगर कुछ समय पहले वैज्ञानिकों ने वहां के बर्फ में प्लास्टिक, कागज आदि का कचरा पाया जो कि वहां स्थापित किए गए वैज्ञानिक शिविरों के कारण पैदा हुआ था। भारत ने भी वहां वैज्ञानिक केंद्र स्थापित किया है। वहां 320 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से तूफान चलते है और तापमान बहुत कम शून्य से भी नीचे रहता है। वहां छायी बर्फ की औसत मोटाई 1.6 किलोमीटर है। उसका आकार 1.4 करोड़ वर्गमीटर है। वह ऑस्ट्रेलिया से भी ज्यादा बड़ा है। वहां बहुत कम बारिश होती है। अतः उसे ठंडा रेगिस्तान भी कहते हैं।
पृथ्वी की इस सबसे ठंडी जगह पर बहुत तेजी से बर्फ पिघल रही है। पिछले कुछ वर्षों की तुलना में यह तीन गुना ज्यादा तेजी से पिघल रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह इतनी तेजी से पिघल रही है कि अगर यहीं हालत बने रहे तो अमेरिका के टेक्सास में 13 फुट तक ज्यादा पानी भर जाएगा व उसका बहुत बड़ा हिस्सा पानी में डूब जाएगा। वहां पानी के तेजी से पिघलने की वजह पानी पर तैर रहे हिमखंडों के नीचे का पानी का गरम होना है। वैज्ञानिकों के मुताबिक बड़ी मात्रा में गरम पानी आने के कारण वहां का वातावरण बदल गया है। ग्रीन हाउस गैसों के कारण वहां बहने वाली हवाओं की दिशा तेजी भी बदल रही है। उत्तर की ओर से गरम हवाएं उसकी तरफ आ रही है।
अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने के कारण न केवल जल स्तर बढ़ेगा, बल्कि इसके कारण न्यूयॉर्क, इटली व बांग्लादेश तक में जलस्तर इतना ज्यादा बढ़ जाएगा कि समुद्र के किनारे के स्थान कई फुट पानी में डूब जाएंगे। ऐसा होने में कुछ दशक लग सकते हैं। वहां कुछ ग्लेशियर तो ब्रिटेन के आकार जितने बड़े हैं। वे 120 किलोमीटर तक चौड़े हैं। यह ग्लेशियर पांच करोड़ टन प्रतिवर्ष की दर से बरफ खो रहे हैं जो कि पिघल कर पानी का जल स्तर बढ़ा रही है। इस बर्फ पिघलने के कारण समुद्र जल स्तर 12 फीट तक बढ़ जाने की आशंका है। इतना ही नहीं वहां आने वाले बदलावों के कारण जीव जंतुओं की संख्या भी प्रभावित हो रही है। जिस कारण पूरी मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो रहा है। कुछ जीव तो हमेशा के लिए ही नष्ट हो जाएंगे व हमारी आने वाली पीढ़ियां उन्हें तस्वीरों में देख पाएंगी इनमें पेंगुइन, व्हेल व इलीफेंट सील शामिल है।
विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)