पलायन को सेफ बनाना है चुनौती

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पलायन का प्रमुख कारण भूगोल और जनसंख्या के बीच का अंतर है। जैसे पंजाब में भाखड़ा डैम बनने के बाद सिंचाई का विस्तार हुआ और वहां कृषि में श्रम की मांग पैदा हुई। इसलिए उत्तर प्रदेश और बिहार से पंजाब को पलायन होता है। यही परिस्थति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है। जैसे केरल से नर्सों का पलायन इटली को भारी संख्या में हो रहा है। पलायन का दूसरा कारण घरेलू संस्थाओं का लचर होना है। आज उत्तर प्रदेश का उद्यमी सूरत में जाकर पावरलूम लगाता है और उत्तर प्रदेश से आए हुए श्रमिक को ही सूरत में रोजगार देता है। वही उद्यमी उत्तर प्रदेश में उद्यम नहीं चला पाता है। कारण है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रशासनिक संस्थाओं की स्थिति कमजोर है। यहां नेताओं और नौकरशाही का प्रयास रहता है कि उद्यमी से जितना रस निकाल सकें उतना निकाल लें। रोबॉट का डर यदि हम इस पलायन को जबरन रोकते हैं तो मेजबान क्षेत्रों में श्रमिक उपलब्ध न होने के कारण रोबॉट का उपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ेगी जो अंततः राष्ट्रीय स्तर पर श्रमिकों की मांग कम करेगी और श्रम के हितों पर चोट पहुंचाएगी। दूसरा परिणाम यह होगा कि सूरत के पावरलूम में श्रम का दाम बढ़ेगा, सूरत के उद्यमी की उत्पादन लागत ज्यादा आएगी और हम विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा में पीछे पड़ेंगे, जो संपूर्ण देश के लिए हानिप्रद होगा।

इसलिए हम यदि बिहार और उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक संस्थाओं में सुधार कर लें तो भी पलायन को बढ़ावा देना ही चाहिए, अन्यथा संपूर्ण विश्व के श्रम के हितों पर चोट पहुंचेगी। तमाम विद्वानों का मानना है कि घर लौटे श्रमिकों को घर में ही रोजगार देने का प्रयास करना चाहिए। मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पॉप्युलेशन साइंसेस ने एक पर्चे में कहा है कि घर लौटे श्रमिकों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत अनाज, स्वास्थ्य समस्याओं की सुविधा, रोजगार इत्यादि सरकार को उपलब्ध कराने चाहिए। यह गलत दिशा होगी। यदि सरकार ने इन व्यवस्थाओं को घरेलू राज्यों में उपलब्ध करा दिया तो भी सूरत और पंजाब में रोबॉट का उपयोग बढ़ेगा और श्रम के दाम में वृद्धि से संपूर्ण देश की हानि होगी। इसके अलावा घर लौटे प्रवासी श्रमिकों की कुशलता का घरेलू राज्य में उपयोग कम ही होगा। जैसे, यदि कोई श्रमिक सूरत में पावरलूम की मरम्मत करने की कुशलता रखता है तो वह दरभंगा में आकर मनरेगा के अंतर्गत मिट्टी उठाने का काम नहीं करना चाहेगा। यह उसके प्रमोशन के स्थान पर उसका डिमोशन होगा। पढ़ें, दुनिया में सबको रास्ता दिखाएगा भारत! कृषि में रोजगार की भी सीमा है। वैश्विक स्तर पर देखा गया है कि जैसे-जैसे आर्थिक विकास होता है, उसी क्रम में देश की आय और रोजगार में कृषि का हिस्सा भी कम होता जाता है।

वर्तमान में विकसित देशों में एक प्रतिशत से भी कम जनसंख्या कृषि कार्य में लगी हुई है। हम भी इसी दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। स्वतंत्रता के समय हमारी लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी जो आज घटकर लगभग 16 प्रतिशत हो गई है। यद्यपि लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, परंतु सभी कृषि पर निर्भर नहीं हैं। इसलिए कृषि में अधिक संख्या में श्रमिकों को खपाना संभव नहीं है। हां इतना जरूर है कि यदि हम नीदरलैंड में ट्यूलिप, फ्लोरिडा में संतरे, वॉशिंग्टन में अखरोट, इटली में जैतून जैसे विशेष उत्पादों की आपूर्ति बढ़ाएं और इनकी ऐसी प्रजातियों को खोजें जो कि हमारी जलवायु में पनपती हों तो वापस लौटे श्रमिकों को इस प्रकार की फसलों के उत्पादन में कुछ रोजगार दिया जा सकता है। फिर भी यह पर्याप्त नहीं होगा। इसके अलावा इन सबको सार्वजनिक वितरण प्रणाली और स्वास्थ्य, शिक्षा आदि सेवाएं उपलब्ध कराने में सरकार पर बोझ पड़ेगा, जिसका वहन करने के लिए सरकार को अन्य विकासकारी कार्यक्रम जैसे सड़क बनाने आदि में कटौती करनी होगी। ऐसे में संपूर्णता में देखा जाए तो कोई और बेहतर विकल्प नहीं है। सरकार को घर वापस आए श्रमिकों को वापस मेजबान क्षेत्रों में भेजने और मेजबान क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को संभालने की ओर बहुत शीघ्रता से कदम उठाने होंगे।

यदि एक बार मेजबान क्षेत्र के उद्योगों ने रोबॉट लगा लिए अथवा श्रम के अभाव में फैक्ट्रियां बंद कर दीं तो इन्हें वापस शुरू करना लगभग असंभव हो जाएगा। इस स्थिति में सरकार को तीन कदम उठाने चाहिए। पहला यह कि कानून बनाकर घर वापस आए श्रमिकों को आश्वासन देना चाहिए कि यदि वे मेजबान क्षेत्रों में वापस गए तो उन्हें लॉकडाउन जैसी परिस्थति में पर्याप्त सुरक्षा दी जाएगी। उदाहरण के लिए यह व्यवस्था की जा सकती है कि पलायन करनेवाले श्रमिक अपना पंजीकरण करा लें और अगर मेजबान क्षेत्र में लॉकडाउन हुआ तो उनकी मूल जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार अपने कोष से उन्हें रकम देगी। ऐसा करने से ये श्रमिक वापस जाएंगे। दूसरा कदम यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार की सरकारों को विचार करना चाहिए कि आखिर क्या कारण है उनके लोग दूसरे स्थानों में जा कर कारखाने लगाते हैं?

उद्यमियों को शोषक के रूप में देखने के बजाय ये राज्य उन्हें आदर दें तो स्थिति बदल सकती है। विनयपूर्ण निवेदन मेरे पूर्वज किसी समय राजस्थान के लोहारू शहर में रहते थे। उनके पास मलसीसर के जमींदार आए और उनसे विनयपूर्वक निवेदन किया कि आप आइए, हमारे गांव में बसिए और वहां व्यापार कीजिए जिससे हमारे गांव का बना उत्पादन बिके और हमारे गांव में समृद्धि फैले। इस निवेदन पर मेरे पूर्वज मलसीसर जाकर बसे और उस गांव के विकास में उन्होंने सार्थक भूमिका अदा की। उत्तर प्रदेश और बिहार के नेताओं और नौकरशाहों को ऐसी भावना से ओतप्रोत होना होगा। तीसरा काम सरकार यह कर सकती है कि हर जिले अथवा कमिश्नरी में ऊंचे मूल्य की कृषि फसलों पर क्षेत्रवार रिसर्च कराई जाए। नीदरलैंड में ट्यूलिप की तरह दरभंगा में कमल के फूल का उत्पादन करके हम संपूर्ण विश्व को कमल का निर्यात कर सकते हैं।

भरत झुनझुनवाल
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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