जीत की महत्वकांक्षा लोकतंत्र को खतरा

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बंगाल सहित देश के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान एक बात जो देखने व सुनने को मिल रही है, वह नेताओं की गाड़ी व घरों से ईवीएम का मिलना है। पिछले कई वर्षों चुनाव आयोग पर विपक्षी नेताओं के द्वारा यही आरोप लग रहे थे कि सत्ता पक्ष के दबाव में ईवीएम को हैक की जाती है, जिससे नेता अपनी मनमर्जी के मुताबिक जीत दर्ज कर लेता है। आयोग द्वारा लाख सफाई देने के बाद भी विपक्षी ईवीएम की विश्वासनीयता सवाल उठा रहे थे, लेकिन पहल असम में और अब बंगाल में ईवीएम का किसी नेता की गाड़ी या किसी नेता के घर से मिलना इस बात को बल दे रहा है कि नेताओं की महत्वकांक्षाओं के चलते निष्पक्ष चुनाव कराना आयोग के लिए टेडी खीर साबित हो रहा है। असम के अंदर दूसरे चरण के मतदान के दौरान गत एक अप्रैल को एक भाजपा नेता की गाड़ी से ईवीएम का मिलना या तीसरे चरण में बंगाल के अंदर टीएमसी नेता के घर से ईवीएम बरामद होना, निष्पक्ष चुनाव पर सवाल खड़े कर रहा है। इन नेताओं की महत्वकांक्षा इतनी अधिक हो गई है कि लोकतंत्रीय व्यवस्था प्रभावित हो रही है।

नेताओं की इस करनी से जहां आम मतदाता के मत का कोई महत्व नहीं रह जाता वहीं इन नेताओं की जीत की महत्वकांक्षा को बल मिलता है। हालांकि दोनों घटनाओं की जानकारी मिलने पर चुनाव आयोग द्वारा संबंधित मतदान अधिकारियों को निलंबित करना चुनाव की गरिमा को बरकरार रखने का प्रयास है। इन दोनों घटनाओं से महसूस होता है कि नेता अपनी जीत की महत्वकांक्षा को पूर्ण करने के लिए किस हद तक गिर सकते हैं इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। चुनाव आयोग की कार्रवाई के बावजूद ऐसे नेता कोई सबक सीखने को तैयार नहीं है। उनकी नजर में आम मतदाता की वोट का भी लिहाज पास नहीं है। वह तो केवल जीत चाहते हैं, चाहे किसी की भावनाएं आहत हो यो बची रहें। इन दोनों घटनाओं से मतदान अधिकारियों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग रहा है, कि आखिर किसके इशारे पर ईवीएम सरकारी गाड़ी की बजाय किसी नेता के निजी वाहन से लेजाने का काम किया जा रहा था या उलुबेडिय़ा में टीएमसी नेता के घर से ईवीएम और वीवीपैट का मिलना मतदान अधिकारियों की भूमिका को संदिग्ध करता है। हालांकि इस मामले में इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए चुनाव आयोग द्वारा सेटर ऑफिसर तपन सरकार को जहां निलंबित किया वहीं इन मशीनों चुनाव की श्रेणी से हटा दिया।

इसके अलावा आयोग बार-बार कह रहा है कि इस मामले में शामिल सभी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। असम में भाजपा प्रत्याशी की गाड़ी में मिली ईवीएम जिस बूथ की 181 वोट दर्शा रही थी उस में कुल 90 मतदाता थे। मतदान अधिकारियों द्वारा यह कहना कि गाड़ी खराब होने से भाजपा नेता की गाड़ी मदद के तौर पर मांगी गई थी, या बंगाल में टीएमसी नेता के घर से ईवीएम का मिलना इस बात की ओर संकेत कर रही है, मतदान अधिकारी सत्ता पक्ष के दबाव में कार्य कर रहे हैं, ऐसी परिस्थिति में निष्पक्ष चुनाव कराना बेमानी साबित होगा। इन हालात को संभालने के लिए निर्वाचन आयोग के अधिकारियों को बेहद सतर्कता बरतनी होगी, अन्यथा नेताओं की जीत की महत्वकांक्षा आयोग को सवालों के कठघरे में खड़ा कर सकती है। चुनाव आयोग को ऐसे मामले गंभीरता से लेते हुए निष्पक्ष जांच करानी चाहिए ताकि उस पर विपक्षी पार्टियों द्वारा लगाए जा रहे साा पक्ष के लिए काम करने वाले आरोपों को खारिज किया जा सके।

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