लगता है कि हम भारतीय कोरोना के मामले में खुशकिस्मत साबित नहीं हुए। भारत में 2020 के सितंबर मध्य के लगभग एक लाख नए कोरोना केस रोजाना की दर से हम एक फरवरी 2021 को 8500 मामले प्रतिदिन तक पहुंच गए थे। दुनिया में भारत की सफलता की चर्चा थी। बेशक यह जश्न लंबा नहीं चला। इस लेख को लिखते समय केवल मुंबई में ही औसत 10 हजार नए केस रोजाना दर्ज हो रहे थे। राष्ट्रीय औसत भी फिर एक लाख मामले प्रतिदिन को छू चुका है। यह बताता है कि कोविड-19 सबसे ज्यादा अप्रत्याशित और टिकाऊ वायरस है। डॉक्टर, महामारी विशेषज्ञ, सरकारी नियामक, आर्थिक विशेषज्ञ, विश्व स्वास्थय संगठन जैसी एजेंसियां और भविष्यवक्ता वायरस को नहीं समझ पाए। हालांकि हमारे पास वायरस से लडऩे का एक विकल्प बचा हैवैक्सीन। मानव जाति खुशकिस्मत है। वैज्ञानिकों ने कोविड-19 की कुछ वैसीन विकसित कर ली हैं। भारत खुशकिस्मत था। भारतीय प्राइवेट कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट, ऑसफोर्ड- एस्ट्राजेनेका वैक्सीन प्रोग्राम में साझेदार बनी। उनकी वैसीन ‘कोवीशील्ड’ अब 70 देशों में अप्रूव्ड है। भारत अपने वैसीन प्रोग्राम में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। हालांकि कोरोना केस की हालिया बढ़त के बाद इसमें गति जरूरी है। इसे लिखते समय भारत 8 करोड़ वैक्सीन डोज लगा चुका था, वह भी करीब ढाई महीने में।
हमारे टीकाकरण कार्यक्रम की अच्छी गति है, हालांकि हमें इसे ‘बहुत अच्छी’ गति देनी होगी। हम अभी 30-33 लाख डोज प्रतिदिन या 2 करोड़ डोज प्रति सप्ताह के स्तर पर हैं। अगर आबादी के हिसाब से देखें तो हमारी आबादी 140 करोड़ है और अगर 100 करोड़ लोगों को भी दो डोज देने हैं, तो हमें 200 करोड़ डोज लगाने होंगे। यानी अभी की दो करोड़ डोज प्रति सप्ताह की गति के हिसाब से भी इसमें 100 हफ्ते यानी करीब 2 साल लग जाएंगे। कष्ट सहने के लिए दो साल बहुत ज्यादा हैं। जब तक हमारा टीकाकरण कार्यक्रम पूरा नहीं होता, हमारी अर्थव्यवस्था और सेहत को लेकर चिंता बनी रहेगी। हमें इसे दो साल की जगह 6 महीने में खत्म करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसके लिए हमें कम से कम 8 करोड़ डोज प्रति सप्ताह की जरूरत होगी। हम यह कर सकते हैं सप्लाई सुनिश्चित करें: सरकार ने कहा है कि अभी पर्याप्त वैक्सीन हैं, लेकिन कार्यक्रम जारी रखने पर सप्लाई पर दबाव पड़ेगा। खुशकिस्मती से हमारे पास सीरम इंस्टीट्यूट है। हालांकि हम सीरम पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। उसके पास अन्य देशों को सप्लाई के अनुबंध भी हैं। वह डोज निर्यात करता रहा है, जिस पर अभी रोक है या निर्यात धीमा है, ताकि भारत की जरूरतें पूरी हों।
हालांकि तनाव है और अगर हम चाहते हैं कि सप्लाई पर्याप्त रहे तो हमें शायद दुनिया की अन्य वैक्सीनों को भी अनुमति देनी चाहिए, साथ ही ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग केंद्र बनाने चाहिए। टीकाकरण के मानदंड खोलें: ज्यादा मृत्युदर को देखते हुए वरिष्ठ नागरिकों और 45 साल से ज्यादा के लोगों को पहले वैक्सीन देने का शुरुआती तर्क सही था। हालांकि, अब हमें टीकाकरण को सभी के लिए खोल देना चाहिए, खासतौर पर ज्यादा मामले वाले इलाकों में। आबादी के ज्यादा घनत्व वाले इलाके, जहां मामले बढ़ रहे हैं, वहां सभी को जल्द टीके देने चाहिए। आपकी बिल्डिंग में टीकाकरण: यानी हॉटस्पॉट में जाकर सभी का टीकाकरण। खबरों के मुताबिक घर-घर जाकर टीकाकरण कार्यक्रम को अप्रभावी बताकर खारिज कर दिया गया था, क्योंकि हर मरीज का 30 मिनट निरीक्षण जरूरी है। हालांकि एक नया आइडिया है- आपकी बिल्डिंग में टीकाकरण। टीकाकरण स्टाफ आवासीय सोसायटी (खासतौर पर हॉटस्पॉट के पास वाली) में जाकर बिल्डिंग कैंपस में टीकाकरण कर सकते हैं, जहां निरीक्षण भी हो सकता है। बिल्डिंग सोसायटी इसके लिए पैसे भी दे सकती हैं, जिन्हें फिर टीकाकरण प्रयासों पर ही खर्च कर सकते हैं।
टीका लगाने वाले ज्यादा कर्मचारी और स्थान: हमें टीकाकरण के और ज्यादा वेन्यू की जरूरत पड़ेगी। हर प्राइवेट हॉस्पिटल, डिस्पेंसरी और हेल्थ केयर सेंटर को वैक्सीन लगाने की अनुमति देनी चाहिए। जैसा कि कोरोना टेस्ट के मामले में किया गया कि प्राइवेट लैब को भी टेस्ट की अनुमति दी गई, ऐसा ही टीके के लिए करना चाहिए। कुछ क्षेत्रों में दवा दुकानों को भी टीकाकरण केंद्र में बदला जा सकता है। कई स्कूल बंद हैं और उन्हें भी टीकाकरण स्थल बना सकते हैं। लोगों को वैक्सीन लगाने का त्वरित प्रशिक्षण देने पर भी विचार कर सकते हैं। कलाई पर वैक्सीन सूत्र: जो व्यक्ति टीका लगवाए, उसकी कलाई पर धागे का सूत्र या पट्टी बांधनी चाहिए, जैसे बुना हुआ भारत का झंडा आदि। इससे दो काम होंगे। यह दूसरे डोज की याद दिलाएगा और सबसे जरूरी इसे देख दूसरों को भी याद आएगा कि उन्हें टीका लगवाना है। हम सौभाग्यशाली हैं कि हम दुनिया के उन विकासशील देशों में हैं, जिन्हें वैसीन उपलब्ध है। हमारी टीकाकरण की गति अच्छी है। हालांकि योजना बनाकर इसमें इतनी गति लानी चाहिए कि दिवाली 2021 तक सभी भारतीयों को टीका लग जाए। इससे आर्थिक रिकवरी, और नागरिकों में बेहतर सेहत व चिंता का कम स्तर सुनिश्चित किया जा सकेगा।
चेतन भगत
(लेखक अंग्रेजी के उपन्यासकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)