12 फरवरी, शुक्रवार को कुंभ संक्रांति पर्व मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य मकर से निकलकर कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएगा। ज्योतिष और धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि जिस दिन सूर्य एक राशि से दूसरी में जाता है। उस दिन को संक्रांति पर्व कहा जाता है। ये साल में 12 बार मनाया जाता है। संक्रांति पर्व पर सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ-स्नान और फिर उगते हुए सूरज को अघ्र्य देने की परंपरा है। इस दिन श्रद्धा के मुताबिक, जरूरतमंद लोगों को खाना और ऊनी कपड़ों का दान भी दिया जाता है। अर्क पुराण का कहना है कि ऐसा करने से हर तरह की शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती हैं।
पंचदेवों में सूर्य: पुराणों में भगवान सूर्य, शिव, विष्णु, गणेश और देवी दुर्गा को पंचदेव कहा गया है। ब्रह्मवैवर्त और स्कंद पुराण में बताया गया है कि इन देवीदेवताओं की पूजा करने हर तरह के दोष और पाप खत्म हो जाते हैं। इन 5 को नित्य देवता और मनोकामना पूरी करने वाला भी कहा गया है। इसलिए हर महीने में जब सूर्य राशि बदलता है तब उस दिन संक्रांति पर्व मनाते हुए भगवान सूर्य की विशेष पूजा की जाती है।
ज्योतिष में सूर्य: सूर्य देवता को ही ज्योतिष का जनक माना गया है। सूर्य ही सभी ग्रहों का राजा है। इस ग्रह की स्थिति से ही कालगणना की जाती है। दिन-रात से लेकर महीने, ऋ तुएं और सालों की गणना सूर्य के बिना नहीं की जा सकती। हर महीने जब सूर्य राशि बदलता है तो मौसम में बदलाव होने लगते हैं। जिससे ऋ तुएं भी बदलती हैं। इसी वजह से सूर्य की स्थिति महत्वपूर्ण मानी जाती है। एक साल में 12 संक्रांति होती हैं।