देश स्वास्थ्य प्रबंधन में सफल

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कोविड-19 महामारी अप्रत्याशित वैश्विक संकट रहा है। अत्यधिक विविधता और बहुत अधिक घनत्व के साथ दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी आबादी होने के बावजूद, भारत इस स्वास्थ्य आपातकाल के प्रबंधन में सबसे सफल देशों में से एक के रूप में उभरा है। महामारी के बारे में अधिकांश सार्वजनिक चर्चाओं में अब तक मामलों की संख्या, मृत्यु दर, परीक्षणों की संख्या और संक्रमण दर आदि को ही प्रमुखता दी गई है। अब टीके और उनसे जुड़े विज्ञान, क्लीनिकल परीक्षणों और अन्य ऐसे तकनीकी मुद्दों पर बात होने लगी है, जिनके बारे में इतने विस्तार से पहले कभी चर्चा नहीं हुई है।

आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने में देश का प्रयास और सफलता अनुकरणीय रही है। विभिन्न आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति जैसे ड्रग्स, पीपीई किट और एन-95 मास्क, मेडिकल ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और अस्पताल के बिस्तर आदि की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना शुरू में अत्यधिक कठिन कार्य था, जिसे उचित समय पर निर्णायक कदम उठाकर दूर किया गया है। मार्च 2020 तक घरेलू उत्पादन की मात्रा और आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति की अधिकांश वस्तुओं की उपलब्धता नगण्य थी। ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ भी घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर केंद्रित रहा है।

घरेलू कंपनियों से खरीद को प्रोत्साहित करने और उन्हें शीघ्र संपन्न करने के लिए भी वित्तीय नियमों में संशोधन किया गया। स्थानीय उद्योग जगत भी पूरी तरह से इस आपदा को एक अवसर में बदलने के लिए दृढ़ संकल्पित और बेहद सक्रिय रहे।

मार्च में पीपीई किट के मामले में नगण्य घरेलू उत्पादन क्षमता से भारत अब प्रतिदिन सात लाख से अधिक पीपीई किट की उत्पादन क्षमता वाला दूसरा सबसे बड़ा निर्माता राष्ट्र बन गया है। सरकारी ई-मार्केटप्लेस पोर्टल पर अब ग्यारह सौ से अधिक स्वदेशी निर्माता और आपूर्तिकर्ता पंजीकृत हैं। लगभग 170 लाख पीपीई किट राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय संस्थानों को निशुल्क वितरित किए गए हैं।

केंद्र और राज्य सरकारों के पास उपलब्ध पीपीई किट का बफर स्टॉक मार्च में लगभग दो लाख से बढ़कर अब 89 लाख से अधिक हो गया है। कीमत भी लगभग 600 से घटकर 200 रुपए प्रति किट हो गई है। इसी तरह एन-95 मास्क के निर्माता और आपूर्तिकर्ता महज दो से बढ़कर चार हजार हो गए हैं, इनकी उत्पादन क्षमता भी प्रतिदिन 20 लाख से अधिक हो गई है। देश में जन स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों में स्थापित वेंटिलेटर की कुल संख्या कोविड पूर्व समय में लगभग 16 हजार थी। पहले इनके घरेलू विनिर्माण और आपूर्ति नगण्य थी। वहीं अब भारतीय कंपनियों ने इन मशीनों के स्थानीय निर्माण की चुनौती को सफलतापूर्वक संपन्न किया है।

इस तरह के सामयिक निर्णय सरकार की दूरदर्शिता को प्रदर्शित करते हैं। पिछले 10 महीनों में महामारी के दौरान किसी भी समय देश के किसी भी भाग में वेंटिलेटर की उपलब्धता में कोई कमी नहीं रही है। बल्कि हर समय एक अधिशेष की स्थिति रही है, संक्रमण के चरम पर भी जब सितंबर में सक्रिय मामलों की संख्या 10 लाख को पार कर गई थी। केंद्र सरकार ने महामारी के प्रारंभिक चरणों में ही उत्पन्न चुनौतियों को पहचान लिया और देश भर में आवश्यक चिकित्सा वस्तुओं की पर्याप्त उपलब्धता और आपूर्ति को सफलतापूर्वक सुनिश्चित किया गया।

केंद्र और राज्य स्तर पर कई विभागों और एजेंसियों ने इन कठिन समय के दौरान पर्याप्त राहत प्रदान करने के लिए एक-दूसरे के साथ पूर्ण समन्वय से काम किया। महामारी की अनिश्चितताओं के बावजूद, एक दूरदर्शी रणनीति के तहत भारत ने इस चुनौती का बखूबी सामना किया है।

सुधांश पंत
(लेखक स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय में विशेषाधिकारी रहे, वर्तमान में राजस्थान के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी हैं)

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