उत्तर प्रदेश की राजनीति में खास दखल रखने वाली सियासी जमात समाजवादी पार्टी की स्थापना से लेकर अब तक उसकी पहचान एक फिरके की प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी के रूप में होती थी। इसको लेकर प्रदेश की सत्तारुढ़ पार्टी भाजपा ने मुद्दा बनाकर पिछले विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व सफलता अर्जित कर प्रदेश की सत्ता संभाली। अब सपा ने अपनी पॉलिसी बदलते हुए नई पहचान बनानी शुरू की है। अब उसने मुस्लिम शद की जगह अल्पसंख्यक शद का प्रयोग किया है। समाजवाद पार्टी चाहती है कि उसकी जो पहचान भाजपा ने जनता के बीच बताकर हिंदुत्व को जिंदा किया और उसके बल पर सफलता हासिल की उसको तोड़ा जाए और वह यह साबित करना चाहती है कि यह सभी वर्गों का हित समझती है, किसी एक फिरके के लिए वह नहीं सोचती। सपा की स्थापना उसके संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने अब 29 वर्ष पहले की थी। वर्ष 1991 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोडऩे गए कारसेवकों पर गोली चलवाकर मुस्लिमों की नजर में हीरो बन गए। उसके बाद से प्रदेश के मुस्लिम मुलायम सिंह व उसके परिवार को अपना नेता मानने लगे थे।
तब अब तक प्रदेश में चार बार सत्ता का स्वाद चख चुकी समाजवादी पार्टी ने अपना चेहरा बदलने की कवायद महसूस की। उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी के तहत अपनी नीतियों में परिवर्तन करना चाहते हैं। वह चाहते है जो पार्टियां उन्हें मुस्लिम हितैषी बताकर हिन्दू वोटों सपा दूर करना चाहती हैं, सपा उन्हें उनके इरादों में नाकाम करने को अपनी नीतियों में परिवर्तन करना चाहते हैं। सपा अध्यक्ष की कोशिश है कि मुसलमानों के लिए बदनाम होने से अच्छा है कि वह अपनी नीति को बदल ले। इसी के तहत पार्टी की नीतियों में इस बार परिवर्तन दिखाई देगा। संभावना है कि इस बार सपा के घोषणा पत्र में मुस्लिम की जगह अल्पसंख्यक शद लिखा हो। सपा की यह नीति उस पर भारी भी पड़ सकती है, क्योंकि मुस्लिम अब तक सपा का रिवायती वोट बैंक समझा जाता था। यदि सपा ने अपनी नीतियों में परिवर्तन किया और विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक सपा से खिसक भी सकता है। क्योंकि स्वतंत्र भारत में मुस्लिम वोट बैंक किसी एक पार्टी का पिछल्लगू बनकर नहीं रहा है। अब तक उसकी सभी सामाजिक न्याय वाली पार्टियों में भागेदारी रही है।
तीन दशक से प्रदेश की राजनीति में वह सपा के साथ अधिक रहा इसलिए वह प्रदेश की मुख्य पार्टी बनी हुई है। अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में असदुददीन औवेसी की पार्टी भी हिस्सा लेगी। जो मुस्लिमों को अपनी ओर रिझाने का भरपूर प्रयास करेगी। यदि सपा ने अपनी नीतियां बदली तो उम्मीद है कि मुस्लिम उससे दूर हो सकता है। सपा अब तक मुस्लिम-यादव की राजनीति करती रही है। यदि भाजपा का वोट बैंक तोडऩे के लिए सपा ने मुस्लिमों की उपेक्षा की तो मुसलमान उससे छिटक सकते हैं।अगले वर्ष प्रदेश में होने वाला विधानसभा चुनाव कई पार्टियों का कद तय कर सकता है। इस बार चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी व असदुददीन औवेसी की पार्टी भी चुनाव में डेयू कर सकती है। ये आजाद समाज पार्टी जहां दलितों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करेगी, जिससे बसपा का कद तय होगा, वहीं औवेसी की पार्टी ने मुस्लिमों को अपनी ओर खींचने का प्रयास किया तो सपा को भी नुकसान हो सकता है। सपा को इस दिशा में सोच-समझकर कदम उठाने की जरूरत है।