..तो बच्चों से भी आस ना रखें

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‘किसी जमाने में जब मैं युवा थी… मेरी शादी नारायण मूर्ति से हुई ही थी। एक दिन मूर्ति ने मुझे बताया मुंबई के एक बड़े रईस ने हमें डिनर पर बुलाया है। कफ परेड में उनका बड़ा बंगला था। मैं बेहद सामान्य परिवार से थी, एक डॉक्टर और प्रोफेसर की बेटी। मैं पहली बार किसी रईस का घर देखने वाली थी। हम उनके घर गए, चांदी की थालियों में खाना परोसा गया। डिनर के बाद जब हम घर आए तो मेरे मुंह से निकला ‘सो पुअर’(बेहद गरीब)। नारायण मूर्ति बोले ‘तुम ऐसा कैसे कह सकती हो’? मैंने कहा ‘उनके ड्रॉइंगरूम में एक भी किताब नहीं थी’।

हाल ही में मेरी एक पुरानी स्टूडेंट मेरे पास अपनी बिटिया को लेकर आई और बोली ‘मेरी बेटी बिल्कुल नहीं पढ़ती है और आपको मेरी मदद करनी है कि वो पढ़ना शुरू करे’। मैंने स्टूडेंट से पूछा ‘बताओ, आप कितनी किताबें पढ़ती हो?’ उसका जवाब था ‘मुझे क्यों बुक रीड करनी चाहिए?’ मैंने कहा ‘अगर आप रीडिंग नहीं करेंगी तो यह उम्मीद मत रखिएगा कि आपके बच्चे रीडिंग करेंगे’। स्टूडेंट का कहना था ‘मैं चाहूंगी कि मेरे बच्चे स्टडी करें, ना कि रीड’। मैंने कहा ‘रीडिंग और स्टडी एक तरह से समान ही है’।

जब मां नहीं पढ़ेगी तो बच्चे भी नहीं पढ़ेंगे। मैं मदर्स से गुजारिश करूंगी कि वो जरूर किताबें पढ़ा करें। ऐसा नहीं है कि पिता नहीं पढ़ सकते, दोनों बराबर हैं लेकिन लॉजिकली मां ज्यादा जिम्मेदार होती हैं, मां का असर कुछ अधिक होता है। इसी वजह से तो हम कहते हैं, मातृभाषा। फादर टंग आपने कभी नहीं सुना होगा। ज़िंदगी में हर चीज की कीमत है, सिवाय मां के प्यार के। इसलिए मां की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है।

आप अपने बच्चों से किसी चमत्कार की उम्मीद मत कीजिए, खासतौर पर तब जबकि आपने उसके लिए मेहनत नहीं की है। अगर आप चाहते हैं कि बच्चे पढ़ने की आदत डालें तो आप भी जनरल रीडिंग शुरू कीजिए। रीडिंग वाकई बेहतरीन आदत है। यह बात भी उतनी ही सही है कि जो लोग अच्छा लिख सकते हैं, वो पढ़ते काफी हैं।

मैं इस उम्र में भी दो से तीन घंटे पढ़ती हूं। शायद इसी कारण हम कर्नाटक में ही साठ हजार लाइब्रेरी स्थापित कर पाए हैं। यह तभी संभव हुआ जब हमने समझा कि रीडिंग बेहद आवश्यक है। अगर किसी इंसान के पास भव्य बंगला है लेकिन एक किताब नहीं है, उसे मैं अत्यधिक गरीब मानूंगी।

आपके पास कुछ भी स्थाई तौर पर नहीं रहने वाला है। महाभारत में किसी ने अर्जुन से पूछा कि तुम इतने खूबसूरत हो, तुम्हारी पत्नी भी बेहद खूबसूरत है, तुम राजकुमार हो… फिर क्यों तुम अपने गुरु द्रोण की इतनी चिंता करते हो? अर्जुन का जवाब था – ‘उम्र के साथ खूबसूरती ढल जाएगी, राज-पाठ छिन सकता है, सोना-चांदी तो कोई चुरा भी सकता है… ज्ञान ही है जो इंसान का साथ कभी छोड़ता।’

ज्ञान तो ऐसा है जो बांटने से बढ़ता है, इसलिए टीचर्स आप पर भी भारी जिम्मेदारी है। मैं मांओं और टीचर्स से खासतौर पर कहूंगी कि रीडिंग की आदत बच्चों में आप ही डाल सकते हैं। मिसाल पेश कीजिए, किसी को रोल मॉडल की जरूरत नहीं है। दस साल तक के बच्चों के रोल मॉडल उनके पैरेंट्स ही होते हैं, अगर आप नहीं पढ़ेंगे तो बच्चा भी नहीं पढ़ेगा। इसके लिए आपको घर से टीवी हटाना भी पड़े तो हटाइए। मैंने भी अपने बच्चों को 18 साल की उम्र तक टीवी नहीं देखने दिया। मैं उन्हें कहती थी कि तुम टीवी पर क्या देखोगे, मैं ही तुम्हें कहानियां सुना देती हूं। अगर टीवी है भी, तो उसे देखने के वक्त को सीमित कीजिए। सप्ताह में एक घंटा काफी होगा। पैरेंट्स बच्चों को केवल रेस्त्रां में नहीं ले जाएं। उन्हें घुमाने जाएं, तो कुछ सिखाने का उद्देश्य हो, ऐसी जगह जहां उन्हें ज्ञान मिले। कभी लिटरेचर फेस्टिवल जाया जा सकता है, तो कभी म्यूजियम। शुरुआती दस साल ऐसा कीजिए, बच्चों को इसकी आदत हो जाएगी।’

सुधा मूर्ति
‘(लेखिका इंफोसिस की सहसंस्थापिका और समाजसेविका हैं,ये उनके निजी विचार हैं)

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