गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद अब किसान आंदोलन के भविष्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं। बीते दिन दो किसान संगठनों ने अपना आंदोलन खत्म किया था, अब गुरुवार को एक और संगठन आंदोलन से अलग हो गया है। इस लग रहा है कि गत दो माह से अधिक समय से चल रहे शांति पूर्ण किसान आंदोलन को असामाजिक तत्वों की बदौलत नजर लग गई है। अब आंदोलन पहले की तरह चलेगा या सरकार उनकी मांगों पर गौर करेगी यह इस तरह के सवाल हैं जिनके जवाब समय के गर्भ में हैं। फिलहाल तीन संगठनों के अलग होने से ऐसा लग रहा है कि आंदोलन में फूट पड़ गई जो सरकार चाहती थी वह इन हुड़दंगियों ने कर दिया। गणतंत्र दिवस जैसे पवित्र और राष्ट्रपर्व पर हुड़दंगियों द्वारा दिल्ली में जो तांडव मचाया गया उससे लगने लगा था कि अब किसान आंदोलन को गहन लगेगा ठीक वैसा ही हो रहा है। किसान आंदोलन को खत्म कराने के लिए प्रशासन दबाव बनाएगा। बुध की रात को किसान कैंपों की बिजली काटने, पुलिस फोर्स को तैनात करने व बसों को लगाने से आशंका बन गई कि प्रशासन किसानों को आंदोलन खत्म कराने के लिए दबाव बना रहा है।
उधर किसान नेताओं का कहना है कि वह मर जाएंगे लेकिन वह कानून वापसी तक आंदोलन नहीं तोड़ेंगे। भारतीय किसान यूनियन के प्रवता राकेश टिकैत का यह कहना कि प्रशासन द्वारा रात में किसान कैंपों की लाइट काटना, पुलिस बल बढ़ा देना, बसों को लगाना इस बात का प्रतीक है कि आंदोलित किसानों में खौफ पैदा करके उन्हें घर वापसी के लिए मजबूर किया जाए। इस आशंका के चलते भयभीत किसानों ने बुधवार की रात जागकर गुजारी। हालांकि टिकरी बॉडर पर किसानों ने सद्भावना पदयात्रा नंगे पैर निकालकर इस बात को प्रमाणित किया है कि वह हुड़दंगी नहीं है बल्कि वह शांति के साथ आंदोलन करना चाहते हैं। प्रशासन द्वारा किसान नेताओं को नोटिस भेजना और तीन दिन में जवाबी कार्रवाई न होने से प्रशासन का कानूनी कार्रवाई करने की हिदायत दी गई है। प्रशासन द्वारा लगभग 20 आंदोलित किसान नेताओं को नोटिस भेजना इस बात का प्रतीक है कि प्रशासन अब दंडात्मक कार्रवाई करके आंदोलन को खत्म कराएगा। उधर गणतंत्र दिवस पर हुए उपद्रव पर नाराज दिख रहे सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल किया है कि वह इस मुददे पर चुप क्यों है कार्रवाई क्यों नहीं करती।
सुप्रीम कोर्ट का इस घटना पर दु:ख व्यत करना और सरकार से सवाल करना इस बात का प्रतीक है कि किसान आंदोलन पर सरकार ठोस फैसले लेकर इसको खत्म कराए। लालकिले की घटना के बाद लगने लगा कि आंदोलन के जरिए सरकार से कानूनों की वापसी कराना किसानें के लिए दूर की कोडी है, जो वर्तमान में होना संभव नहीं है। यदि किसान नेता इस आंदोलन को जारी रखना चाहते हैं और पहले की तरह जनसहानुभूति हासिल करना चाहते हैं तो किसान संगठनों के नेताओं को चाहिए कि वह हुड़दंगियों से नाता खत्म करके उनको कानूनी कार्रवाई के लिए प्रशासन के सामने पेश करने में मदद करें। भविष्य में ऐसा कोई आह्वान न करे जिसमें हुड़दंगियों के आने की उम्मीद हो। हड़दंगी कभी नहीं चाहते कि कोई आंदोलन शांतिपूर्ण हो वह केवल दंगा कराके किसान संगठनों को बांटने का प्रयास करते हैं जिससे आंदोलन प्रभावित हो जाए। यदि किसान आंदोलन को जारी रखना चाहते हैं तो शांति के साथ ही आंदोलन जारी रखना होगा।