शाहीन बागः रास्ता रोक पर रोक

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सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐसा फैसला दे दिया है, जिसके कारण सभी प्रदर्शनकारियों और धरनाधारियों को अब ज़रा सम्हलकर रहना होगा। शाहीन बाग में कई हफ्तों तक पड़ौसी देशों के शरणार्थियों के बारे में बने कानून के विरुद्ध धरना चलता रहा। यदि कोरोना की महामारी नहीं आ धमकती तो भारत में सैकड़ों शाहीन बाग उग आते। देश भर के विरोधियों को बड़ी मुश्किल से एक मौका हाथ लगा था, मोदी सरकार की टांग खिंचाई का। वह कानून भी बड़ा बेढब था। वह पड़ौसी देशों के मुसलमान शरणार्थियों के अलावा सभी का स्वागत करता है। उसका विरोध बिल्कुल तर्कसंगत था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी कहा है कि शरणार्थियों में मजहब और जाति का भेद क्यों करना ? सर्वोच्च न्यायालय ने भी किसी प्रदर्शन, धरने और जुलूस का विरोध नहीं किया है।

उसने भी संविधान में दी गई अभिव्यक्ति की आजादी का पूरा समर्थन किया है लेकिन उसने ऐसे धरनों, प्रदर्शनों और जुलूसों को गलत बताया है, जिनकी वजह से आम आदमियों का जीना मुहाल हो जाए। उनकी राय है कि शाहीन बाग के धरने के कारण दिल्ली की एक व्यस्त सड़क बिल्कुल ठप्प हो गई थी। तीन-चार महिने तक लोगों को काफी चक्कर लगाकर अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचना पड़ता था। अदालत ने यह भी कहा कि शाहीन बाग के धरने का कोई सुनिश्चित नेता नहीं था और इन्टरनेट की तकनीक के कारण तरह-तरह के लोग वहां जमा हो रहे थे। जिन महिलाओं ने यह धरना शुरु किया था, वे तो एक तंबू में सीमित हो गई थीं लेकिन सड़कों पर जगह-जगह लोगों ने अपने-अपने अड्डे जमा लिये थे।सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले की भी आलोचना की है, जिसके अंतर्गत इस मामले को उसने पहले ही दिन अधर में लटकाकर छोड़ दिया।

उसकी मान्यता है कि सरकार को इस तरह के धरनों को खत्म करने के लिए तुरंत सक्रिय होना चाहिए। ऐसे धरने लंबे समय तक नहीं चलने दिए जाने चाहिए। लेकिन शाहीन बाग की धरनाधारी महिलाओं का कहना है कि पुलिस ने उन्हें जंतर-मंतर नहीं जाने दिया और उन्होंने शाहीन बाग में 500 मीटर से ज्यादा जगह नहीं घेरी हुई थी। वहां रास्ता तो रुका हुआ था, पुलिस की घेराबंदी के कारण ! हमारा इरादा रास्ता रोककर लोगों को मुश्किल में डालने का बिल्कुल नहीं था। उन्होंने अदालत के फैसले का सम्मान करने की बात भी कही है लेकिन बेहतर होता कि अदालत ऐसे प्रदर्शनों पर रोक लगाने के साथ-साथ उन धार्मिक जुलूसों, कथाओं और नाच-गाना कार्यक्रमों के बारे में भी कुछ कहती, जो हफ्तों चलते रहते हैं और सार्वजनिक रास्तों, चौराहों और बाजारों को ठप्प कर देते हैं।

डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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