हम अपने जन्म का प्रबंधन तो नहीं कर सकते, लेकिन जीवन में जब भी कोई बड़ा काम करना हो तो हमें हर एक छोटी-बड़ी घटना को गंभीरता से देखना चाहिए। अपनी टीम के हर एक सदस्य को उसकी योग्यता के अनुसार काम सौंपें। तब ही काम में सफलता मिलने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। इस विषय में एक प्रसंग यूं है कि द्वापर युग में जब भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेने वाले थे, उस समय देवकी और वसुदेव कंस की कैद में थे। देवकी और वसुदेव ने कंस को वचन दिया था कि वे आठों संतान उसे सौंप देंगे। कंस ने 6 संतानों का वध कर दिया था। सातवीं संतान के रूप में बलराम देवकी के गर्भ में आए। तब भगवान ने योगमाया से कहा, कि आप इस सातवीं संतान को देवकी के गर्भ से निकाल कर वसुदेवजी की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दो। कंस को ये सूचना दी जाएगी कि गर्भ गिर गया। योगमाया ने भगवान के आदेश अनुसार सातवीं संतान को रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। इसके बाद जब आठवीं संतान के जन्म का समय आया तो भगवान ने योगमाया से कहा, कि अब मेरे अवतार के जन्म का समय आ गया है। मेरे जन्म के समय ही आप गोकुल में यशोदा के गर्भ से जन्म लेना। वसुदेव कंस के कारागर से निकालकर मुझे गोकुल ले आएंगे और आपको लेकर यहां आ जाएंगे। जब कंस आठवीं संतान को मारने के लिए यहां आएगा तो आप उसके हाथ से मुत हो जाना। भगवान की इसी योजना के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। ये कथा हमें संदेश दे रही है कि श्रीकृष्ण अपने जीवन को सार्थक करना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने अपने जन्म को लेकर भी प्रबंधन किया। इस प्रसंग का सार यही है कि हर व्यति को हालात से निपटने के लिए अपने प्रबंधन तंत्र को मजबूत करना चाहिए। बिना तैयारी के काम करने में व्यति को कई बार मेहनत करनी पड़ती है।