जनाब फास्टैग नहीं, स्लोटैग कहिए

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देश के सभी टोल प्लाजा पर 15 फरवरी से इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह डिवाइस यानी फास्टैग अनिवार्य किया जा रहा है। इसके लिए इसी साल 1 अप्रैल से थर्ड पार्टी बीमा कराने के लिए भी फास्टैग का होना अनिवार्य किया गया है। आने वाले दिनों में आरटीओ स्तर से होने वाले वाहन संबंधी विभिन्न कार्यों जैसे रजिस्ट्रेशन, परमिट वगैरह के लिए भी फास्टैग अनिवार्य किया जा रहा है। ये सारे उपाय इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली के जरिए टोल टैस भुगतान प्राप्त करने के लिए किए जा रहे हैं। फिलहाल रोजाना लगभग 92 करोड़ रुपये की आय फास्टैग से हो रही है। अनुमान है कि 15 फरवरी के बाद से यह आय 130 करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच जाएगी। यह विकल्प नहीं है कि किसी वाहन को टोल प्लाजा से गुजरना है या नहीं। आप भले ही शहरी क्षेत्र या टोल रहित सड़क पर वाहन चलाएं, आपके वाहन पर फास्टैग होना जरूरी होगा। यानी अब हर प्रकार के चार पहिया वाहनों के लिए फास्टैग लेना ही होगा। फास्टैग की अनिवार्यता के पीछे तर्क यह है कि टोल प्लाजा से गुजरने वाले यात्रियों के समय और ईंधन दोनों की बचत होगी। सवाल उठता है कि सड़कों पर खड़े कर दिए गए वाहनों, आवारा घूमने वाले जानवरों और दुर्घटना के बाद वाहनों को घंटों न हटाने से जो यातायात बाधित होता है, उससे समय और ईंधन व्यय नहीं बढ़ता है?

हमें यह भी देखने की जरूरत है कि टोल प्लाजा की जो वर्तमान स्थिति है, उससे या बताए जा रहे उद्देश्यों की पूर्ति हो पाएगी? जिन वाहनों पर फास्टैग लगा हुआ है, उनकी भी जहमतें कम नहीं हैं। फास्टैग महज नाम का फास्ट दिख रहा है। भुतभोगियों का कहना है कि व्यवहार में यह ‘स्लोटैग’ है। फास्टैग नाम से टोल प्लाजा से वाहनों के जल्दी-जल्दी गुजरने का बोध होता है। मगर ऐसा हो नहीं रहा है। टोल प्लाजा पर वाहनों की लंबी लाइनें बता रही हैं कि इस राह में आम जनता के लिए मुश्किलें और भी हैं। माफिया और राजनैतिक दबंगों के आगे तो फास्टैग धरे के धरे रह जाते हैं। बिना रोक- टोक के उनके वाहन निकलते रहते हैं। फास्टैग प्रणाली को अभी कई टेनिकल दिकतें पार करनी हैं। पहला तो यह कि वाहन मालिकों को समुचित जानकारी न होने के कारण टोल प्लाजा की लाइनों में लगे कुछ वाहनों के फास्टैग ऐटिव नहीं होते हैं क्या ब्लैक लिस्ट में होते हैं। इसके कारण गाड़ी के मालिक फास्टैग से टोल टैस नहीं चुका पाते हैं। ऐसी दशा में उनसे जुर्माना सहित दूनी रकम मांगी जाती है। दूनी रकम के कारण टोल प्लाजा पर बहस होती है और वाहनों के निकलने में समय लगता है। मोबाइल ऐप से तत्काल फास्टैग को रिचार्ज करने पर उसके ऐटिव होने में भी समय लगता है। इस कारण भी वाहन को आगे बढ़ाने में दिकत आती है।

फास्टैग को तुरंत ऐटिव बनाने की प्रक्रिया कुछ सेकंडों में पूरा किए जाने की जरूरत है। ब्लैक लिस्टेड फास्टैग के मामले में उदार नियम की जरूरत है। आखिर वाहन चालक ने फास्टैग लगाया है। टेनिकल फॉल्ट से फास्टैग ऐटिव नहीं होने पर जुर्माने को हटाया जाना चाहिए। अभी हमारे यहां फास्टैग की गुणवत्ता विश्वस्तरीय नहीं है जिससे आरएफआईडी (रेडियो फ्रीवेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस) फास्टैग को ठीक से पढ़ नहीं पाता है। इसके कई कारण हैं। फास्टैग को विंड स्क्रीन के बीच में होना चाहिए। नीचे-ऊपर होने पर भी डिवाइस काम नहीं कर पाता है। गाडिय़ों की ऊंचाई में भी अंतर होता है। नतीजतन डिवाइस फास्टैग को पढ़ नहीं पाता है। कहीं-कहीं तो टोल प्लाजा के कर्मचारी हाथ मशीन ‘हैंड हेड रीडर’ ले जाकर फास्टैग से टोल टैक्स का भुगतान प्राप्त करते हैं। इस प्रक्रिया में भी लाइनें लंबी लाइनें लग जाती हैं। एक ही वाहन के नाम से दो-दो फास्टैग ले लेने पर भी डिवाइस ठीक से काम नहीं कर पाता। संभव है आने वाले दिनों में इन कमियों को दूर करने के लिए कदम उठाए जाएं, पर जिन वाहनों को टोल प्लाजा से कभी गुजरना नहीं है, उन पर फास्टैग लगाने की अनिवार्यता पर सवाल वाजिब लगता है।

सुभाष चंद्र कुशवाहा
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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