सर्वधर्म समभाव ही भारत की विशेषता है

0
451

अयोध्या के राम मंदिर और मस्जिद का मामला शांतिपूर्वक हल हो रहा है, यह भारत के हिंदुओं और मुसलमानों दोनों की उदारता और सहिष्णुता का प्रमाण है। इससे भी बड़ी बात यह है कि कुछ मुसलमान संस्थाएं और सज्जन राम मंदिर निर्माण में उत्साहपूर्वक सहयोग कर रहे हैं। विजयवाड़ा के ताहिरा ट्रस्ट की संयोजिका जाहरा बेगम ने आजकल एक अभियान चला रखा है, जिसके तहत वह देश के मुसलमान भाइयों से अपील कर रही है कि राम मंदिर के निर्माण में वे कम से कम 10 रु. जरुर दान करें। उनका कहना है कि हम लोग भाग्यशाली हैं कि हम राम के देश में पैदा हुए हैं। हमारी पीढ़ी का सौभाग्य है कि राम का मंदिर हमारे सामने बन रहा है। राम ने ‘‘सच्चे धर्म’’ को अपने जीवन से हमें साक्षात करके सिखाया है। वे हमारे ही नहीं, सारे विश्व के हैं। ऐसा माननेवाली जाहरा बेगम पहली मुसलमान नहीं हैं।

पिछले हजार साल के इतिहास में कई मुसलमान बादशाहों, कवियों, लेखकों और आलिम-फ़ाजिल लोगों ने राम और कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति खुले-आम और जमकर प्रदर्शित की है। बादशाह अकबर ने राम-सिया के सोने और चांदी के तीन सुंदर सिक्के जारी करवाए थे। बंगाल के हुसैनशाही राज परिवार ने बांग्ला महाभारत तैयार करवाई थी। अकबर ने वाल्मीकी रामायण का फारसी अनुवाद करवाया था और शाहजहां ने उसका फारसी पद्यानुवाद करवाया था। औरंगजेब के भाई दारा शिकोह, अमीर खुसरो, रहीम, रसखान, ताजबीबी, आलम रसलीन, नजीर अकबराबादी, मुसाहिब लखनवी आदि की रचनाएं आप पढ़ें तो राम और कृष्ण के प्रति जो भक्तिभाव इन्होंने दिखाया है, वह अद्वितीय है। यही सच्चा भारतीय मुसलमान होना है। इकबाल ने राम को “इमामे-हिंद” यों ही थोड़े ही कह दिया था।

इस्लाम पर जब भारतीयता का रंग चढ़ता है तो वह भारत के मुसलमान को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मुसलमान बना देता है। इस्लाम की मूल मान्यताओं को मानना एक बात है और अरबों की आंख मींचकर नकल करना दूसरी बात है। भारत में जन्मे ऐसे कई संप्रदाय हैं, जिनमें इस्लामी मूल सिद्धांतों से भी अधिक कट्टरता है लेकिन सर्वधर्म समभाव ही भारत की विशेषता है। यदि ईश्वर एक है तो उसकी संतानों में भेद-भाव कैसे किया जा सकता है ? यही भाव भारत का भाव है, इसीलिए भारत की पहली मस्जिद सन 629 में केरल के हिंदू राजा चेरामन पेरुमल ने बनवाई थी। त्रिवेंद्रम के राजा ने एक ही भूखंड पर मंदिर, मस्जिद, साइनेगॉग और चर्च बनने दिया। 1898 में (अब बांग्लादेश के) विक्रमगंज की मस्जिद का निर्माण बंगाली हिंदुओं की दान-दक्षिणा से हुआ। आज भी केरल की कुछ मस्जिदों में उनका इमाम ही संस्कृत श्लोक बोलकर बच्चों का ‘विद्यारंभ संस्कार’ करवाता है। क्या ही अच्छा हो कि राम मंदिर के लिए मुसलमान और मस्जिद के लिए हिंदू भी दान करें।

डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here