सैनी थे तब हीरो – अब जीरो !

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जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक सुमेध सिंह सैनी को फिलहाल गिरफ्तार करने से रोकने की खबर मिली तो याद हो आया कि वक्त भी क्या चीज है जोकि किसी भी हीरो को जीरो बनाने में देर नहीं करता है। मुझे वह समय याद हो आया जब आतंकवाद से जूझ रहे पंजाब में श्रीसैनी, पुलिसवालो व नेताओं के ही नहीं बल्कि आम लोगों की आंखों का तारा बन गए थे। वे पंजाब में आतंक का सफाया करने का श्रेय लेने वाले तत्कालीन पुलिस महानिदेशक कंवरपाल सिंह गिल के खास अफसर में गिने जाते थे। पहले उन्हें पंजाब में कांग्रेसी मुख्यमंत्री बेअंत सिंह ने सम्मान दिया व बाद में अकाली मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने उन्हें चार आला नेताओं की वरिष्ठता की अनदेखी करते हुए पंजाब पुलिस का महानिदेशक बनाया।

उन्होंने देश के इतिहास में सबसे कम उम्र में डीजीपी बनने का इतिहास रचा था। जब राज्य में आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर था तब उन्होंने उसका जमकर मुकाबला किया व चंडीगढ़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रहते हुए उन पर कुख्यात आतंकवादी देवेंद्र पाल सिंह मुल्लर ने उनके कार्यालय में बम लगाकर उन्हें मारने की कोशिश की। इस कांड में तीन पुलिस वाले मारे गए व सैनी गंभीर रूप से घायल हो गए थे।देवेंद्र पाल सिंह मुल्लर वह आतंकवादी था जिस पर युवक कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष मनिंदर जीत सिंह बिट्टा के दफ्तर के बाहर बम विस्फोट कर उन्हें जान से मारने की साजिश रचने का आरोप लगा था। इस बमकांड में बिट्टा तो बच गए पर दर्जनो निर्दोष लोग मारे गए थे। आजकल मुल्लर मौत की सजा पाने के बाद जेल में सजा काट रहा है। राजनीतिकरणों से उसे फांसी की सजा नहीं दी गई। सैनी को अपनी वीरता व साहस के कारण राष्ट्रपति द्वारा पुलिस अवार्ड भी मिला।

बाद में पंजाब में गुरूग्रंथ साहब की बेअदबी के मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे लोगों की भीड़ पर पुलिस द्वारा गोली चलाए जाने से तीन लोगों के मारे जाने व दर्जनो लोगों के घायल हो जाने के बाद केंद्र सरकार के कहने पर बादल सरकार ने उन्हें पुलिस महानिदेशक पद से हटाकर पुलिस आवास निगम का अध्यक्ष व सतर्कता विभाग का प्रमुख बना दिया था।उन्होंने बहुचर्चित लुधियाना इंप्रव्मेंट ट्रस्ट घोटाले की जांच की जिसमें मौजूदा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी नाम आया था। इस जांच के कारण उन्हें देशभर में सराहना मिली। इससे पहले उन्होंने पंजाब सरकार के एक अफसर बलवंत सिंह मुल्तानी से पूछताछ की थी। उन्हें संदेह था कि वह देंवेंद्र सिंह मुल्लर की मदद करता था। मुल्तानी वहां काम कर रहे एक आईएएस अधिकारी का बेटा था। उनके द्वारा कब्जे में लेने के बाद मुल्तानी का कुछ अता पता नहीं चला था। वह आतंकवादियों से निपटने के लिए हर तरह के तरीके का इस्तेमाल करते थे।

इस मामले में परिवार के लोगों की शिकायत पर सीबीआई ने जांच करनी शुरू कर दी। पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश पर की जाने वाली इस जांच का विरोध करने के लिए पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। राज्य सरकार का कहना था कि श्रीसैनी एक जाने माने बहुत योग्य अफसर है। उनकी दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला रद्द कर दिया। उग्र भीड़ पर पुलिस फायरिंग के मामले की जांच कर रही स्पशेल इंवेस्टीगेशन टीम ने पिछले दिनों फरीदकोट के ट्रायल कोर्ट को बताया कि इस पुलिस फायरिंग के पीछे सैनी व लुधियाना के तत्कालीन पुलिस आयुक्त पीएस अमरागंगल का हाथ था।

इसके अलावा 15 मार्च 1994 को लुधियाना के एक व्यापारी विनोद कुमार, उनके जीजा अशोक कुमार व ड्राइवर मुख्तियार सिंह का अपहरण कर उन्हें जबरन कब्जे में रखा गया। बताया जाता है कि यह सारा काम सैनी के निर्देश पर किया गया था क्योंकि उनका लुधियाना के एक कार डीलर से झगड़ा हो गया था व उन्हें लगता था कि विनोद कुमार उस डीलर का फाइनेंसर है।

वह भी एक समय था जब पंजाब में उनकी छवि आतंकवाद से लड़ने वाले हीरो के जैसी बन गई थी व हर सरकार उन्हें पुलिस महानिदेशक पद पर बैठाए रखना चाहती थी। वे जरा भी नहीं डरते थे। यही कारण था कि जब भी वे दिल्ली आते तो मैं उनसे मिलने की कोशिश जरूर करता। तब मैं कांग्रेस व पंजाब दोनों कवर करता था। वे मुझे चौधरी के घर पर मिला करता थे। वे सुमेध सिंह सैनी के रिश्तेदार थे व होशियारपुर के लोकसभा सांसद थे। वे हमें आतंकवादियों से जुझने के किस्से कहानियां सुनाते थे।

एक बार उन्होंने हमे एक घटना बताई कि एक बार कुछ आतंकवादियों ने पंजाब के बीएचई इकाई में वहां काम करने वाले कुछ कर्मचारियेां का अपहरण कर लिया व उनसे फिरौती के बाद में लाखों रुपए की राशि व भारी मात्रा में गोला बारूद मांगा। जवाब में पुलिस नेतृत्व ने सारे मामले को गुप्त रखते हुए संबंधित आतंकवादियों के परिवार के सदस्यों को जिनमें औरते व बच्चे भी शामिल थे उठाया और उन्हें एक बस खड़ी कर के अपहरण करने वाले आतंकवादियों तक खबर भेजी कि हमने बस में बम लगा दिया है अगर आप लोगों ने किसी भी अपहृत व्यक्ति को नुकसान पहुंचाया तो हम बस को बम से उड़ा कर कहेंगे कि यह आतंकवादियों का कारनामा है।

यह बात सुनने के बाद उन लोगों ने 24 घंटे के अंदर सभी अपहृत कर्मचारियेां को छोड़ दिया व पुलिस ने उसके बाद उनके परिवारजनो को छोड़ा और मामला बहुत आसानी से सुलझ गया। हम लोगों ने यह सुनिश्चित किया कि प्रेस को इसकी खबर न लगे क्योंकि अगर उन्हें खबर लगती तो वे लोग आतंकवादियों के परिवार के सदस्यों के मानवाधिकारो के हनन को मुद्दा बनाकर हमारी सारी मेहनत पर पानी फेर देते। तब उनके साथ बैठे तत्कालीन पंजाब पुलिस महानिदेशक कंवर पाल सिंह ने कहा था कि अब तो आप लोगों को समझ में आ गया होगा कि पंजाब में बहुत पुरानी कहावत है कि अंत का ईलाज जूत होता है।

विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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