शहर के सबसे पुराने सनातन धर्म इंटर कालेज में कई साल गुजारे । आधी छुट्टी होते ही हम बच्चे मेन गेट की ओर दौड़ पड़ते थे। बाहर खाने पीने के सामान का बाजार जो सजा होता था। कोई बच्चा गोलगप्पे खाता था तो कोई मटर की चाट। कोई मूंगफली और चने मुरमरे की ठेली को जा घेरता तो कोई इमलीटाटरी वाले के पास पहुंच जाता । वहां एक ठेली ऐसी भी खड़ी होती थी जिस पर सबसे कम भीड़ होती थी। वह थी क़ुल्फी वाले की ठेली। हालांकि उसकी दुकानदारी कम होने का कारण उसकी क़ुल्फी महंगी होना ही था मगर पता नहीं क्यों मुझे उसकी वजह उस ठेली पर लिखा स्लोगन लगता था। उस ठेली पर बड़ा-बड़ा लिखा होता था-नकद आज उधार कल-पैसे नहीं तो आगे चल। हाल ही में आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध तिरुपति बाला जी मंदिर गया तो वहां भक्तों की कई लाइनें लगी देखीं। वीआईपी दर्शन यानि इतने रुपये वाले इधर, साधारण दर्शन यानि इतने रुपये वाले इधर और सामान्य यानि मुफ्त दर्शन वाले उधर। जाहिर है कि मुफ्त वालों की लाइन में जबदस्त मारामरी थी और आदमी पर आदमी ही चढ़ रहा था । ये सब तमाशा देख कर कसम से बचपन का वह कुल्फी वाला बहुत याद आया और साथ ही अच्छी तरह समझ आया नकद उधार का अंतर भी।
वेंकटेश्वर भगवान के दर्शन के लिये हमने तीन सौ रुपये वाली टिकट यह सोच कर ली थी कि हम वहां वीआईपी होंगे मगर वहां जाकर पता चला कि हमारी हैसियत मुफ्त वालों से बस जरा सी बेहतर थी। बेहतर भी केवल इतनी की हमें प्रसाद मुफ्त में मिला वरना मुफ्त वालों को दो सौ रुपये के एक लड्डू वाला प्रसाद खरीदना पड़ा। पता चला कि वीआईपी दर्शन दस हजार पांच सौ रुपये का है और उसमें भक्त को मंदिर के गेस्ट हाउस में मुफ्त ठहरने और भोजन की सुविधा भी मिलती है। मंदिर परिसर में भगवान के दर्शन ही नहीं हर चीज के दाम चुकाने पड़े। यहां तक कि प्रसाद रखने के लिये प्लास्टिक की पन्नी भी हमें तीन रूपये की मिली। उस पर तुर्रा यह कि जगह जगह दान राशि डालने के लिये बड़े बड़े थैले यानि हुंडियां भी लगी हुई थीं और उनमे दान राशि डालने वालों की भी लंबी लाइन थी। तिरुपति शहर स्थित वेंकटेश्वर भगवान की पत्नी पद्मावती समेत अनेक अन्य मंदिरों में भी जाना हुआ। हर जगह दर्शनों के दाम चुकाने पड़े । यह सब तमाशा देश कर मन बहुत खिन्न हुआ । बचपन से गुरुद्वारों में जाने का अवसर मिलता रहा है अत: जाने-अनजाने मन तुलनात्मक अध्ययन करने लगा। गुरुद्वारे वाले तो प्रसाद ही मुफ्त नहीं देते अपितु भोजन भी नि:शुल्क कराते हैं।
दर्शन के नाम पर पैसा वसूलने का तो कोई सवाल ही नहीं। यही नहीं बड़े गुरुद्वारे तो अब नि:शुल्क मेडिकल जांच भी कराने लगे हैं । दिल्ली के गुरुद्वारे तो मुफ्त एमआरआई तक कर रहे हैं। देश दुनिया के अनेक धार्मिक स्थल देखने का अवसर मिल चुका है । हिंदू मंदिरों के अतिरिक्त दर्शन की फीस वसूली कहीं नहीं दिखी। हो सकता है कि मंदिरों की देखभाल और साफ सफाई को अधिक पैसे की जरूरत पड़ती हो मगर फिर भी उसकी कोई सीमा तो होगी। ये अंधेरगर्दी सी क्या मचा रखी है? देश के तमाम बड़े मंदिरों के पास अरबों रुपयों की दौलत है मगर फिर भी श्रद्धालुओं से दर्शन के नाम पर मोटी रक़म वसूली जाती है । हैरानी की बात यह है कि इस व्यवस्था के खिलाफ कोई बोलता ही नहीं। वे लोग भी चुप हैं जो हिंदू धर्म के असली ठेकेदार ख़ुद को कहते हैं। बेशक ये लोग हिंदू धर्म को दूसरे धर्मों से ख़तरा बताएं मगर असलियत यह है कि हिंदू धर्म को खतरा पंडा-पुरोहितवाद और मंदिरों पर काबिज़ उन लोगों से ही है, जिन्होंने धर्म को दुकानदारी ही समझ लिया है। उन्हें शायद इस बात की भी परवाह नहीं कि अपने गरीब भक्तों की बेकद्री से भगवान कितने कुपित होते होंगे। आखिर वे भगवान हैं कोई क़ुल्फी वाले तो नहीं ।
राकेश शर्मा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)