झूठ में जीने का नतीजा

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मागुफुली को कम लोग जानते होंगे। वे अफ्रीकी देश तंजानिया के राष्ट्रपति थे। उन्होने कोरोना वायरस की महामारी में पिछले एक साल में वैसी ही वैश्विक ख्याति पाई जैसे नरेंद्र मोदी और ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसोनारो ने पाई है। मतलब वायरस है कहां? पूजा करों, काढ़ा पीयो और वायरस भाग गया। वायरस झूठ है और सत्य वचन यह कि हमने वायरस को भगा दिया। कोरोना पर 21 दिन में विजयी और भारत विश्व गुरू। तंजानिया के राष्ट्रपति और उनके भक्तों ने यह झूठ, यह नैरेटिव बनाया कि हम अफ्रीकी गुरू। तंजानिया में अप्रैल 2020 में वायरस पहुंचा तो राष्ट्रपति मागुफुली ने लोगों को आव्हान किया कि लोग घरों से बाहर निकले और चर्च व मसजिद में जा कर वायरस नाम के दैत्य को भगाने के लिए प्रार्थना करें (जैसे नरेंद्र मोदी का आव्हान कि फंला दिन घर से फला टाइम बाहर निकल नौ मिनट ताली-थाली बजाए, दीया जलाए)। लोगों ने वैसा ही किया और अफ्रीका में उनका ढंका बजा कि देखों कितने लोकप्रिय नेता मागुफुली! मागुफुली ने खुद चर्च में जा कर आव्हान लोगों से आव्हान किया- कोरोना वायरस एक शैतान है। यह क्राइस्ट के शरीर में रह नहीं सकता, यह तुरंत जल जाएगा. यह हमारे विश्वास को और मज़बूत करने का समय है।

और जैसे 21 दिन में भारत में नरेंद्र मोदी ने कोरोना पर विजय दिलवा कर स्वास्थ्य मंत्रालय से प्रेस कांफ्रेस करवानी शुरू की कि संक्रमण खत्म हो रहा है वैसे ही उससे कुछ आगे बढ मागुफुली ने मई में कोरोना के आँकड़े ही देना बंद कर करा दिया और उनका ‘शानदार एशन-मैन’ की इमेज वाला प्रोपेगेंडा हुआ। न कोविड टेस्ट हुए और न ईलाज का हल्ला। मतलब राष्ट्रपति ने कहां, चाहा और वायरस मुक्त देश। और हां, मोदीजी के भक्तों के ‘विश्व गुरू’ की पताका की तरह मागुफुली ने ‘अफ्रीकी गुरू’ के अंदाज में लोगों को यह ज्ञान देना भी था कि ‘हर्बल ड्रिंक’ के ज़रिए कोरोना का इलाज है। उन्होंने इस ‘हर्बल ड्रिंक’ का आयात करने के लिए मेडागास्कर प्लेन भेजने की घोषणा की। उन्होने ज्ञान दिया कि आर्टमीजिय़ा नाम की जिस वनस्पति से ‘हर्बल ड्रिंक’ तैयार होती है उससे ही मलेरिया का इलाज होता है। मतलब तंजानिया हुआ ईलाज का विश्व गुरू वैसे ही जैसे मोदीजी की कमान में मई-जून में मलेरिया के लिए कुनेन की गोलियां भेजने वाला भारत था। मागुफुली ने संक्रमण को ठीक करने के लिए भाप-चिकित्सा का ज्ञान भी बांटा। तो जून से तंजानिया कोरोना मुक्त है और इस दौरान जैसे मोदीजी ने आपदा को अवसर बना कर भारत में विकास की गंगा बहाई वैसे ही मागुफुली ने तंजानिया के लोगों पर जादू बना कर खूब विकास किया।

‘शानदार एशन-मैन’ की इमेज में उन्हे भष्टाचार मिटाने वाला बुलडोजर बताया गया। पूरे पूर्वी-अफ्रीका में उनके भक्त बने। बड़ी इन्ऱास्ट्रक्चर परियोजनाओं में निवेश, हाइवे, बिजली उत्पादन से लेकर नया बस सिस्टम बनवाने के हल्ले, नैरेटिव में कोरोना बाधा न डाले इसके लिए वायरस की चर्चा ही मागुफुली ने खत्म कराए रख़ी। दुनिया और उनके विरोधी कहते रहे कि वे विपक्ष की आवाज़ को दबा रहे है, लोगों की-मीडिया की आजादी, स्वतंत्रता पर अंकुश लगा तानाशाह बने है। और हद तो तब थी जब वे बीमार हुए और विरोधियों ने शक किया कि वे कोरोना से बीमार है तो गुजरे सोमवार को ही पुलिस ने चार लोगों को राष्ट्रपति मागुफुली के स्वास्थ्य के बारे में अफ़वाह फैलाने के जुर्म में गिऱफ्तार किया।

इसलिए कि इन लोगों ने सोशल मीडिया पर राष्ट्रपति मागुफुली के बीमार होने की बात लिखी थी। दरअसल लोग अफवाह लगाने को इसलिए मजबूर थे क्योंकि दो सप्ताह से मागुफुली टीवी याकि खबरों में नहीं थे। वे सीन से गायब थे। विपक्ष के नेता टुंडू लिस्सू ने बीबीसी को बताया था कि ‘मागुफुली का कीनिया के एक सरकारी अस्पताल में कोविड-19 का इलाज किया जा रहा।’ लेकिन उनका प्रधानमंत्री कहता रहा’राष्ट्रपति मागुफुली बिल्कुल स्वस्थ हैं और कड़ी मेहनत से अपना काम कर रहे हैं!’ सब विदेश में रह रहे लोगों का ‘द्वेषपूर्ण’ प्रचार है। अंत में सत्य, बतौर सत्य प्रकट हुआ। 17 मार्च को 61 वर्षीय राष्ट्रपति मागुफुली की मौत की खबर इस झूठ के साथ घोषित हुई कि ‘बुधवार को मागुफुली का निधन हुआ, हृदय संबंधी जटिलताओं से!’ न तंजानिया राष्ट्र-राज्य को और न लोगों को, न मागुफुली के भक्तों की खोपड़ी को बोध हुआ कि झूठ में जीने से क्या होता है!

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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