भारत को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प

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राज्यसभा में संसद सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के प्रश्नों का उत्तर देकर जहां उन्हें संतुष्ट करने का प्रयास किया वहीं देश को आत्मनिर्भर भारत बनाने में कृर्षि कानून को जरूरी बताया। पीएम मोदी के जवाब से लगता है कि सरकार किसानों के समक्ष अपना पक्ष सही तरीके से नहीं रख रही है क्या किसान इन कानून के प्रति अपने को तैयार नहीं कर पा रहे हैं। मोदी द्वारा संसद के अंदर दिए गए जवाब से लगता है कि मोदी इन कानून को वापस लेने के मूंढ में नहीं है। क्योंकि अपने संबोधन में आंदोलित लोगों को आंदोलनजीवी कहना इस बात का प्रतीक है कि सरकार पर इस आंदोलन से कोई प्रभाव नहीं पडऩे वाला है। उन्होंने इन किसानों को आंदोलनजीवी करार दिया जिसका अर्थ है कि कुछ लोग आंदोलन के सहारे अपनी सियासत को चमकाना चाहते हैं। वे देश के भोले भाले किसानों को बरगलाना चाहते हैं। मोदी के इस वतव्य का अर्थ यही है कि यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है। उनका यह कहना कि विपक्षी पार्टियां आने वाले दिनों में भाजपा की नीतियों की काट चाहते हैं। वह कृषि कानून का विरोध इसलिए कर रही हैं कि उनकी राय नहीं ली गई है।

इस मुद्दे पर विपक्ष को शादी में रूठी फूफी की संज्ञा देना इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि विपक्ष से कृषि कानून में उनकी राय ली जाती तो ये आंदोलन खड़ा नहीं होता। विपक्ष के उस आरोप को उन्होंने अपने उद्बोधन में यह कहकर खारिज करने का प्रयास किया कि अब से पहले की सरकारों के चार प्रधानमंत्रियों ने भी कृषि सुधार की दिशा में कदम बढ़ाए। 33 प्रतिशत किसानों के पास 2 बीघा से कम जमीन है। 18 प्रतिशत के पास 2 से 4 बीघा जमीन है। 51 प्रतिशत किसानों का गुजर बसर जमीन से नहीं हो सकता। आज देश में ऐसे किसानों की संख्या बढ़ रही है, जिनके पास 2 हेक्टेयर के कम जमीन है। ऐसे 12 करोड़ किसान हैं। इन लघु कृषकों की आर्थिक दशा सुधार के लिए कानून बनाने की जरूरत थी। साा पक्ष का ये दावा कि इन कानूनों के बल पर ही देश में हरित क्रांति आएगी, कहां और कब तक सही साबित होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन देश के लाखों आंदोलित किसानों को अभी तक कानून का महत्व क्यों नहीं समझ में आ रहा है? वह क्यों इन कानून के विरोध में लगभग ढाई माह से आंदोलित हैं।

यदि आंदोलित किसानों ने अन्न या सब्जी को नगरों में भेजना बंद कर दिया तो इसका असर जहां जनसामान्य की आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा, वहीं बाजार माफिया अपनी लूट-खसोट से आम जीवन को प्रभावित कर देंगे। यदि आंदोलन लंबा चला तो इसका प्रभाव रबी की तैयार होने वाली फसलों पर भी पड़ेगा। सरकार को चाहिए कि वह इन कानून को लगभग दो वर्ष के लिए होल्ड पर रख दे और इन दो साल में उन क्षेत्रों का आंकलन कराए जहां किसानों का जीवन दयनीय स्थिति में है। उन क्षेत्र में विशेषज्ञों को शामिल करते हुए आयोग का गठन करे। आयोग की सिफारिश पर उन क्षेत्रों में निर्धारित समय सीमा के लिए लागू करे, यदि परिणाम सु:खद प्राप्त हों फिर इसे पूरे देश में लागू करे। तब तक इन किसानों की समझ में भी कानूनों का महत्व आ जाएगा। इन कानून को अमलीजामा पहनाने के लिए और किसानों के आंदोलन को खत्म कराने के लिए दूसरा रास्ता यह कि केंद्र इन कानूनों को लागू करने का अधिकार राज्यों को दे, जो राज्य चाहें लागू करे तथा जो न चाहे उसे लागू न करे। कहने का अर्थ कानून को थौपने की बजाए इनको वैकाल्पिक बनाए तो आंदोलित किसानों का गतिरोध कम होगा।

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