तीन कृषि कानून के खिलाफ आंदोलित किसानों को शांत करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इन कानूनों के अमल पर रोक लगाने व किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए एक चार सदस्य कमेटी गठित की है। दो दिन की सुनवाई के बाद कोर्ट के निर्देशों से जहां सरकार के प्रयासों को झटका लगा है, वहीं पिछले पौने दो माह से ठंड और बेमौसम की बारिश के दौरान दिल्ली की सरहदों पर आंदोलन चला रहे पंजाब व हरियाणा सहित कई राज्यों के किसानों को कोर्ट के निर्देश पर राहत मिलने की उमीद है। लगभग साढ़े तीन माह बाद कोर्ट के दखल से उमीद बंधी थी कि कृर्षि कानून रद कराने की मांग पर डटे किसानों की भले ही केंद्र सरकार उपेक्षा कर रही हो और बार-बार के संवाद से समस्या का हल न निकल रहा हो लेकिन कोर्ट तर्कों के आधार पर ऐसा निर्णय जरूर देगा, जिससे आंदोलित किसानों को राहत मिलेगी। इतने में यदि सरकार भी इन कानून के लागू करने या न करने के मुद्दे पर मंथन अवश्य कर लेगी। कोर्ट के निर्णय के बाद किसान संगठनों का या रुख होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
कोर्ट ने राज्यसभा के पूर्व सदस्य व कृर्षि क्षेत्र में किसानों के लिए संघर्ष करने वाले भूपेंद्र सिंह मान, इंटरनेशनल पॉलिसी हेड डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट अशोक गुलाटी और महाराष्ट्र के शेतकारी अनिल घनवत को शामिल करते हुए एक चार सदस्यों की कमेटी का गठन किया है जो किसानों की समस्याओं को समझते हुए अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगी। इस दौरान कोर्ट ने इन कानून के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगाई है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे का यह कहना कि हम कानून के अमल को अभी सस्पेंड करना चाहते हैं, लेकिन बेमियादी तौर पर नहीं। हमें कमेटी में यकीन है और हम इसे बनाएंगे। यह कमेटी न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होगी। कमेटी इसलिए बनेगी ताकि तस्वीर साफ तौर पर समझ आ सके। याची के वकील का कोर्ट को यह बताना कि किसान समस्या समाधान के लिए कमेटी के पास नहीं जाना चाहते। इस बात का संकेत है कि किसान सिर्फ संसद के अंदर बनने वाले कानून को संसद द्वारा ही रद कराना चाहते हैं। वह इसके लिए कोर्ट या गठित कमेटी का सहारा नहीं लेना चाहते। भाकियू के प्रवता राकेश टिकैत का कहना है कि कोर्ट ने कमेटी में जिन लोगों को रखा है उनकी नीति किसान हित में नहीं है।
उन्हें कोर्ट गठित कमेटी पर यह ऐतबार नहीं है कि वह इन तीनों कानूनों को रद कराने में आंदोलित किसानों के हक में अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि आंदोलित किसान किसी भी हालत में अपनी समस्या के समाधान को कमेटी के पास नहीं जाना चाहते । किसानों का मानना है कि कोर्ट के अंदर मामला जाना इस प्रकरण को लंबा खींचना है। किसान संगठनों का यह कहना कि जब कानून संसद में मौजूदा सरकार ने बनाए हैं तो कानून भी सरकार को रद करना चाहिए। इस बात से साफ संकेत यही निकल रहा है कि आंदोलित किसान सिर्फ सरकार से ही इस समस्या का हल चाहते हैं। किसान नेताओं का एक ही कहना है कानून रद होने तक वह आंदोलन नहीं तोड़ेंगे चाहे इसके लिए उन्हें अपनी जान तक देनी पड़े। हालांकि कोर्ट के निर्णय आने के बाद किसानों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। सभी को इस बात का इंतजार है कि कोर्ट के निर्णय के बाद आंदोलित किसानों का या रुख होगा? योंकि कोर्ट ने किसानों को आंदोलन तोडऩे को बाध्य नहीं किया है।