राहुल अपनी जिद छोड़ेंगे !

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कांग्रेस के बड़े नेताओं के बीच इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा किस विषय पर हो रही है? पांच राज्यों के चुनाव नतीजों पर नहीं! सबसे गर्म मुद्दा है, इन चुनावों के बाद होने वाले पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव का। कौन बनेगा अध्यक्ष? या राहुल गांधी बिल्कुल भी नहीं मानेंगे? क्या प्रियंका तैयार हैं? लेकिन या राहुल इस जिद को छोड़ देंगे कि गांधी नेहरू परिवार का कोई सदस्य अध्यक्ष नहीं बनेगा? कौन है राहुल के दिमाग में गांधी नेहरू परिवार के बाहर का नेता? राहुल का मनमोहन सिंह? कांग्रेस में अंदरखाने बहुत खबरें चल रही हैं। इनमें सबसे बड़ी यह है कि प्रियंका गांधी कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हैं। मगर इसी के पैरलल यह डिस्केलमर भी चलता रहता है कि राहुल परिवार के सदस्य पर बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं। तब या होगा? जी-23 में बचे खुचे नेता इसे एक अवसर की तरह देख रहे हैं। जी 23 की इमारत ढह गई है, कुछ खंडहर ही बचे हैं। मगर उनकी हसरतें अभी जिंदा हैं। एक तरफ वे राहुल गांधी के विश्वासपात्र नेताओं से भी मिल रहे हैं तो दूसरी और अध्यक्ष पद के चुनाव में कांग्रेस की टूट की संभावनाओं को भी हवा दे रहे हैं।

लेकिन ये इतना आसान नहीं है। योंकि राहुल को कोई कुछ भी कहे, मगर उनके दिमाग में या चल रहा है, इसका अंदाजा कोई भी नहीं लगा पा रहा है। दो चीजें समझना मुश्किल हैं। एक राहुल का मनमोहन सिंह कौन है और दूसरा क्या प्रियंका राहुल की मर्जी के बिना अध्यक्ष बनने को राज़ी हो गई हैं? गांधी-नेहरू परिवार को और अमेठी रायबरेली को जानने वालों को पता होगा कि प्रियंका उम्र में जरूर राहुल से छोटी हैं मगर राजनीति में सीनियर हैं। वे राजीव गांधी के साथ अमेठी जाती रहती थीं, तब उनकी उम्र केवल 14-15 साल थी। वे प्रियंका ही थीं जिनके एक भाषण ने अरुण नेहरु को रायबरेली से चुनाव हरवा दिया था। वह 1999 का लोकसभा चुनाव था। परिवार के वफादार कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव लड़ रहे थे। सामने थे परिवार के ही सदस्य अरुण नेहरू। 27 साल की युवा प्रियंका ने कहा कि याद रखना रायबरेली वालों अरुण नेहरू वही शस है, जिसने अपने भाई और मेरे पिता राजीव गांधी की पीठ में छूरा घोंपा था। विश्वासघाती! बस इतना सुनना था कि सभा में मौजूद हर आदमी वहां से शपथ लेकर लौटा कि विश्वासघाती को अब रायबरेली से नहीं जीतने देंगे। नतीजा वहीं हुआ अरुण नेहरु हार गए। तो यही प्रियंका 2004 में राहुल को लेकर अमेठी पहुंची थीं।

कहा था ये मेरे बड़े भाई है, अब आपके बीच काम करेंगे। अमेठी और रायबरेली दोनों लोकसभा क्षेत्रों में प्रियंका समान रूप से लोकप्रिय हैं। वहां उन्हें भैया जी कहा जाता है। 1999 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही हर चुनाव में यह चर्चा होती थी कि प्रियंका इस बार सक्रिय राजनीति में आएंगी। अगली बार फिर होती थी कि इस बार आएंगी। मगर प्रियंका नहीं आईं। कुछ साल पहले रायबरेली में ही इन पंतियों के लेखक के साथ चर्चा करते हुए प्रियंका ने कहा था कि वे पारिवारिक भारतीय महिला हैं। पहले अपने बच्चों और परिवार को देखेंगी फिर राजनीति के बारे में सोचेंगी। उन्होंने कहा था कि राहुल और उन्होंने दादी और पिता के न होने पर अकेले दिन काटे हैं। यह संभव नहीं लगता। अब पहली बात पर कि राहुल गांधी का मनमोहन सिंह कौन है? राहुल जो करीब दो साल से कह रहे है कि मैं नहीं, परिवार का नहीं किसी तीसरे आदमी को बनाइए वह कौन है? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। हो सकता है राहुल के दिमाग में कोई नाम हो या नामों का पैनल हो। जिस पर वे सर्वसमति करवाना चाहते हों।

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