अपने लेख में डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने लिखा कि कोरोना के आगे भारत बना विश्व-त्राता! कोरोना युद्ध में भारत की विजय सारी दुनिया में बेजोड़ है! हमारा बनाया टीका, हमारे मसाले, हमारे काढ़े ने कमाल कर दिखाया! मैं हर मत, विचार का आदर करने वाला संपादक हूं। इसलिए डॉ. वैदिक का लिखा सिर आंखों पर। बावजूद इसके तथ्य है कि मैं महामारी के मामले में पहले दिन से वैदिक जी से अलग राय लिए रहा हूं। मैं फरवरी 2020 से लगातार चेताता रहा हूं। भारत और मोदी सरकार की लापरवाही, गलतियों, झूठ, पाखंड, मुगालतों को आत्मघाती बताता रहा हूं। जैसे लॉकडाउन बिना सोचे-समझे बर्बादी का आत्मघाती फैसला था वैसे हकीकत से आंख मूंद अनलॉक की रीति-नीति पर भी मैं यह लिखता रहा हूं कि कहीं 2021-22 ज्यादा संकटदायी साबित नहीं हो। वैदिक जी ने पीठ थपथपाने वाली बात लिखी कि हम कोरोना पर विजयी हैं और हमसे ज्यादा अमेरिका, यूरोप के देश बर्बाद हैं। अपनी दलील है कि वे इसलिए बर्बाद दिखते हैं क्योंकि हम झूठ, प्रोपेगेंडा में आंखों पर पट्टी बांध कर जीते हैं। वे सत्य में जीते हैं और हम झूठ में! इसलिए वैदिक जी की बात के साथ मेरे इस वाय को नोट रखें कि सन् 2020 में भारत के 138 करोड़ लोगों, भारत राष्ट्रराज्य, उसकी आर्थिकी ने जो बर्बादी, कंगाली, बेरोजगारी, भीख, अचिन्हित मौत-बीमारी को झेला है वैसा पृथ्वी के किसी देश का अनुभव नहीं है।
अमेरिका में पांच लाख लोग महामारी में मरे हैं तो उस सत्य को जीते हुए अमेरिका के नागरिक महामारी का वैज्ञानिकता, समझदारी से सामना कर रहे हैं। वहां सर्वाधिक प्रभावी फाइजर, मोडेर्ना वैक्सीन से टीकाकरण हो रहा है। लोगों ने झूठ बोलने वाले राष्ट्रपति और उसके प्रशासन को हरा कर नई सरकार बनाई है। अमेरिकी आर्थिकी का भट्ठ नहीं बैठा है। उलटे पिछले एक महीने से वहां के शेयर बाजार ने, उद्यमियों की नई किलिंग इंस्टिट ने यूरोपीय राजधानियों में, पूंजीवादी देशों में अकल्पनीय नई भाप बनवा दी है। ये देश अनलॉक नहीं हैं और कभी बंद-कभी खुले व लॉकडाउन में हैं तो इसलिए कि इन्हें महामारी की सच्चाई, वैज्ञानिकता में यह बोध है कि या होना है और क्या होगा? इसे हम भारतीय समझ नहीं सकते। मुझे पता है मेरे यह सब लिखने पर भतगण सोचेंगे कि विरोध करते-करते मति इतनी मारी गई कि मैं अभी भी कोरोना से डरा रहा हूं। हिसाब से मैं डरा हुआ हूं। कल ही अपने आशीष ने बताया कि दिल्ली में टाइस नाऊ का एक नौजवान क्राइम रिपोर्टर सिरदर्द, बुखार से ब्रेन हेमरेज से क्रिटिकल हुआ पड़ा है और टेस्ट से डेड वायरस की पुष्टि हुई तो सोचने को मजबूर हुआ कि उसे कभी वायरस हुआ होगा और प्रतिरोधक क्षमता से शरीर भले चलता रहा लेकिन वह शरीर को प्रभावित किए रहा।
ऐसे ही मुझे मथुरा में अपने रिश्तेदार के परिवार में एक नौजवान की अचानक मौत की खबर मिली तो एक मुख्यमंत्री के मंच पर गिर जाने व फिर टेस्ट होने पर कोरोना पॉजिटिव निकलने की जो सुर्खी देखी तो जाहिर है वायरस पसर रहा है और शरीर से प्रकट या अप्रकट या इलाज के बाद भी लोगों के शरीर को लगातार प्रभावित किए हुए है। उस नाते पिछले सप्ताह कोरोना के मामले में मोदी सरकार के प्रवता चले आ रहे एस के डॉ. गुलेरिया का यह कहा गंभीर है कि न तो हर्ड इम्युनिटी होने की धारणा भरोसेमंद है और न कोरोना वायरस की नई किस्म कम घातक है। जिनको पहले वायरस हो चुका है, स्वस्थ हो चुके हैं उन्हें भी वायरस की नई किस्म डस सकती है। इस सबके बीच उस महाराष्ट्र में फिर तेजी से वायरस फूटा है, जो पिछले साल वायरस का नंबर एक इलाका था। राज्यों की सीमाएं फिर सील होने लगी हैं। दस राज्यों में आंकड़े बढ़ते हुए हैं। यह पता नहीं पड़ रहा है कि नए मरीज वायरस की पुरानी, मूल किस्म के मारे हैं या ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका के तेजी से फैलने वाली नई किस्म के मारे हैं।
वायरस के स्ट्रेन की बारीक खोज-खबर की भारत के पास न मशीन है और न लैब। इस मामले में अधिकृत-सच्ची वैज्ञानिकता के साधन और लैब केवल ब्रिटेन के पास है। तभी भारत सरकार, उसकी संस्थाओं का सारा काम विदेश भरोसे है। हमारे वैदिक जी भले पुणे के कारखाने में शीशियों में आसफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को भरे जाने के काम में भारत की रिसर्च का कमाल मानें लेकिन सच्चाई ब्रिटेन के ऑसफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक की बनाई वैक्सीन का तथ्य है। हैदराबाद की देशी वैक्सीन के बारे में जितना कम कहा जाए उतना अच्छा। बहरहाल असली मुद्दा सन् 2021 के साल का है। क्या इस साल भी कोरोना वायरस में भारत ठप्प होगा? महाराष्ट्र में यदि लॉकडाउन की नौबत आई तो दक्षिण के बाकी राज्य क्या अछूते रहेंगे? केंद्र की मोदी सरकार क्या वापस आंकड़ों के प्रबंधन में उसी तरह का नैरेटिव नहीं बनाएगी की चिंता न करो सब नियंत्रण में है!
क्या लोगों को लगातार बेखबर बनाए रखेगी कि वायरस है कहां! एक स्तर पर खटका है भारत में सन् 1918-20 के इतिहास की पुनरावृत्ति न हो। ध्यान रहे सन् 1918 में स्पेनिश फ्लू की महामारी चीन-अमेरिका से शुरू हो यूरोप में पहले फैली। यूरोपीय देशों में पहले लोग ज्यादा मरे। उन्होंने महामारी पर पहले काबू पाया जबकि भारत में महामारी अज्ञान, लापरवाही, मुगालतों में धीरे-धीरे फैलती गई, पकती गई। मुंबई में जून 1918 में महामारी आई। सितंबर-दिसंबर में मरने वालों की संख्या बनने लगी। सितंबर में महामारी के पहले केंद्र मुंबई में अंग्रेजी अखबार ने खबर दी थी कि 293 लोग मरे हैं लेकिन चिंता की बात नहीं है। सर्वाधिक बुरा याकि पीक गुजर गया है। लेकिन फिर धीरे-धीरे पूरे देश में महामारी चुपचाप फैलती गई। महामारी तीन दौर में फैली, जिसमें 1919 की गर्मियों से पहले का दौर सर्वाधिक विनाशक था। ईश्वर करें वैसा न हो और डॉ. वैदिक का यह कहा सही हो कि हम कोरोना विजेता हैं और भारत विश्व-त्राता!
हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)