जब भारतीय मूल के ब्रिटेन में रहकर धंधा कर रहे हिंदुजा उद्योगपति धराने के भाईयो के बीच अदालत तक पहुंचकर मुकदमेबाजी की खबर पढ़ी तो शुरू में जरा भी विश्वास नहीं हुआ। यह परिवार कुछ मामलों में बहुत अनूठा है। उन्हें अपनी पारिवारिक परंपराओं, संस्कृति का पालन करने के लिए अनूठा माना जाता है। चार हिंदुजा बंधुओं श्रीचंद, गोपीचंद, प्रकाश और अशोक को तो मानों राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुध्न की तरह माना जाता रहा है जोकि अपने आपसी प्यार व व्यवहार के लिए चर्चित हैं।
वे अपने समाज के बाहर जाकर रिश्ते नहीं बनाते, कई देश की सरकारें उनकी जेबों में रही हैं। वे मांस नहीं खाते, शराब नहीं पीते व धूम्रपान तक नहीं करते हैं। मुकदमेबाजी का मामला कुछ इस प्रकार है। कुछ दिन पहले 23 जून को ब्रिटेन की एक अदालत ने सबसे बड़े भाई श्रीचंद हिंदुजा व उनकी बेटी वीनू के हक में एक फैसला सुनाया जोकि स्विट्जरलैंड के मुख्यालय रखने वाले उनके बैंक के नियंत्रण के मामले को लेकर था। सबसे बड़े भाई श्रीचंद हिंदुजा समूह के प्रमुख हैं। यह मामला इस समूह की संपत्तियों के बंटवारे को लेकर था। अब तक चारों भाई पारिवारिक एकता व संबंधों के प्रतीक माने जाते थे लेकिन अब वह भी उनके बंटवारे को लेकर चल रहे विवादों का शिकार हो गए हैं।
तीनों छोटे भाईयो ने उनके व उनकी पुत्री को इस दावे की चुनौती दी और अपील की कि इस समूह का सब कुछ सबका है व वह किसी एक व्यक्ति की संपत्ति नहीं है। इस विवाद की शुरुआत बहुत पुरानी है। दस्तावेज बताते हैं कि 2 जुलाई 2014 को चारो भाईयो ने एक समझौते पर दस्ताखत किए। इसके मुताबिक हर भाई की संपत्ति चारो भाईयो की है व हर भाई दूसरे भाईयो को अपना एग्जीक्यूटर नियुक्त करेगा। बाद में श्रीचंद हिंदुजा व उनकी बेटी वीनू ने इस दस्तावेज को अदालत में यह कहते हुए चुनौती दी कि उसकी कोई कानूनी मान्यता व आधार नहीं है। तीनो भाई की अध्यक्षता वाले सब बैंक पर अपना भी नियंत्रण चाहते हैं। अदालत ने कहा कि 2015 में श्रीचंद ने कहा था कि इस पत्र का यह मतलब नहीं है कि वे अपने परिवार की संपत्ति को बांटना चाहते हैं। छोटे भाईयो का दावा था कि उनके सबसे बड़े भाई को भूल जाने की बीमारी डिमेंशिया का शिकार हो गए हैं। अपनी बेटी वीनू को श्रीचंद ने इस मुकदमेबाजी में अपना पक्ष देखने की जिम्मेदारी सौंपी।
उनके तीनो भाई इस पत्र के आधार पर ही हिंदुजा बैंक पर अपना नियंत्रण चाहते हैं। अब अदालत ने इसे कानूनी मानने से इंकार कर दिया है। उनके अदालत में जाने से पारिवारिक मूल्यों, सिद्धांतो व संबंधों की मानों धज्जियां ही उड़ गई हैं। छोटे भाईयो को डर था कि अगर काफी समय से बीमार चल रहे श्रीचंद नहीं रहे तो उनकी सारी संपत्ति उनकी बेटी वीनू के नाम हो जाएगी जोकि करीब 112 अरब पौंड की मानी जाती हैं। उसके 38 देशों में उद्योग व्यापार है जिसमें करीब 1.5 लाख लोग काम करते हैं।
हिंदुजा बंधुओ के पिता परमानंद दीपचंद हिंदुजा ने बंटवारे के पहले पाकिस्तान व भारत के सिंधी बाहुल्य इलाके में अपना धंधा शुरू किया था। आज चार भाईयो वाला यह परिवार ब्रिटेन के सबसे अमीर घरानों में से है जिसकी संपत्ति 2 अरब पौंड है। चारों भाई श्रीचंद (81) गोपी (77) प्रकाश (65) व अशोक अपनी कंपनी के अलग-अलग तरह के व्यापार में मिलजुल कर देखते हैं। वे चारो भाई एक जैसे गोल गले वाले काले रंग के सूट पहनते हैं। उनके पिता ने 1919 में ही ईरान में अपने व्यापार का मुख्यालय स्थापित कर दिया था। परिवार के बाकी सदस्य 1979 में लंदन जाकर धंधा करने लगे। उन्होंने बैंकिग से लेकर, ट्रक निर्माण, सूचना तकनीक व मीडिया तक के क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमायी।
उनकी हैसियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने विश्व युद्ध के दौरान बहुचर्चित रहे विंस्टन चर्चिल के पसंदीदा ओल्ड वार आफिस को भारी कीमत पर खरीदा व उसे पांच सितारा होटल में बदल दिया। उन्होंने सरकार की सबसे बड़ी कंपनी गल्फ ऑयल को खरीद लिया व 1982 में सबसे बड़ी व प्रतिष्ठित वाहन निर्माता कंपनी अशोक लीलैंड को खरीद लिया। इस परिवार का मानना है कि इंसान दौलत से नहीं बल्कि अपने संबंधों के कारण अमीर बनता है व उन्होंने इसे साबित कर दिखाया।
जब बोफोर्स दलाली कांड उछला तो उनका नाम चर्चा में आया। बाद में उन्हें अदालत ने बरी कर दिया। उनके कांग्रेस से लेकर भाजपा तक सभी सरकारों से बहुत मधुर संबंध रहे हैं। जब कुछ साल पहले उनके परिवार के लड़को की शादी हुई थी तो मुंबई में होने वाली इस शादी में देश की राजनीति व सत्ता में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाले करीब 10,000 लोगों ने उसमें हिस्सा लिया था। बोफोर्स कांड के रिश्वत खरीद में उनका नाम आया मगर दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ प्रमुख सबूतों को पर्याप्त न मानते हुए उन्हें बा-ईज्जत बरी कर दिया। ब्रिटेन में दो विभिन्न सरकारो के कार्यकाल में उनके पासपोर्ट को लेकर विवाद खड़े हुए। उन्हें तो कुछ नहीं हुआ पर दोनों संबंधित मंत्रियो को अपने पदो से इस्तीफा देना पडा।
इस परिवार को काफी निकट से जानने वाले एक नेता का कहना था कि हिंदुजा बंधुओ के पिता बहुत धार्मिक स्वभाव के थे। उनके पांच बेटे थे व सबसे बड़े बेटे गिरधर का 1992 में देहांत हो गया था। वह इतने ज्यादा रूढि़वादी थे कि अपने समाज में ही शादी करना पसंद करते थे। इस परिवार के एक युवा सदस्य ने अपना प्रेम विवाह न हो पाने के कारण आत्महत्या कर ली थी। गोपीचंद बहुत ही उपक्रमी थे व उन्होंने देश आजाद होने के पहले पर्शिया (ईरान) के साथ व्यापार शुरू कर दिया था। वे वहां से कालीन, केसर, डाईफ्रूट आयात करने व भारत से उसे मसाले चाय आदि भेजते थे।
जब 1979 में ईरान में क्रांति हुई तब इस परिवार ने ब्रिटेन में बसने का फैसला किया। वे ईरान के शासक रहे शाह परिवार के काफी निकट थे। उनका मानना था कि धंधा कोई भी हो उसे विवाद से नहीं बल्कि बातचीत से सुलझाना चाहिए। हालांकि खुद को विवादो में लाए बिना कोई काम नहीं करा जा सकता। यह परिवार अखबारों व खबरों से काफी दूर रहता हैं व आमतौर पर खबरों में आने से बचते हैं।
इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जो परिवार दुनिया की मुकदमेबाजी से दूर रहकर आपसी बातचीत के जरिए विवाद सुलझाने का सुझाव देता रहा वह आज खुद अपनी संपत्ति के विवाद को सुलझाने के लिए अदालत की शरण में पहुंच गया है। जिसने सबसे बड़े भाई व हिदुजा समूह के चेयरमैन श्रीचंद हिंदुजा के हक में फैसला दिया है। मगर अब इतना तय है कि अपने खिलाफ फैसला होने व अरबों की संपत्ति के बंटवारे को लेकर चल रहे विवाद के कारण बाकी तीनो छोटे भाई फैसले को बड़ी अदालत में चुनौती देंगे व पारिवारिक मूल्य, परंपराएं व समझ-बूझ सब धरी रह जाएगी।
विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)