बैंक कर्ज या साहूकारों से मिलने वाले ऋण के सिलसिले में आमतौर पर किसानों और मजदूरों की बदहाली पर चर्चा होती है। इन बहसों के शोर में प्राइवेट बैंक कर्ज के चलते उत्पीडऩ झेल रहे मध्यम वर्ग की पुकारें कहीं दबती हुई दिख रही हैं। बैंकों के इस उत्पीडऩ की गंभीरता का पता इसी से लगाया जा सकता है कि दहशत में आकर लोग आत्महत्या तक करने लगे हैं। ताजा मामला बिहार के भागलपुर के एक शिक्षक का है जिन्होंने बैंक अधिकारियों द्वारा परेशान करने के चलते आत्महत्या कर ली। शिक्षक चंद्रभूषण लॉकडाउन में कोचिंग बंद होने की वजह से कर्ज की किस्त भरने में असमर्थ थे। ऐसे में बैंक अधिकारी उन्हें सरेआम बेइज्जत करते थे। शिक्षक बैंक अधिकारियों की इस हरकत से परेशान हो गए। लिहाजा, मौत को गले लगाना उन्हें ज्यादा सहज लगा। कहने की जरूरत नहीं कि कोरोना काल में सरकार ने शिक्षण संस्थानों को बंद रखने का ऐलान किया था। अब जनवरी में अलग- अलग राज्यों में इन संस्थानों को खोलने की अनुमति दी गई है। लेकिन, शिक्षक की वाजिब परेशानी को बैंक अधिकारियों ने नजरअंदाज कर दिया। खुदकुशी की एक और घटना मध्य प्रदेश के इंदौर निवासी बजे सिंह की है। आर्थिक स्थिति खराब होने से वे 2018 से किस्त नहीं चुका पा रहे थे। बैंक मैनेजर पिछले एक साल से कर्ज चुकाने के लिए दबाव बना रहा था।
कर्ज न चुकाने पर वह गांव में जुलूस निकालने की भी धमकी दे रहा था। लिहाजा, परेशान होकर बजे सिंह ने जहर खा लिया। ऐसे ही केरल के तिरुवंतपुरम में एक 44 वर्षीय लेखा नामक महिला ने खुदकुशी कर ली। 5 लाख हाउसिंग लोन लेने वाली लेखा पर बैंक अधिकारी लगातार दबाव बना रहे थे। लोन चुकाने के लिए लेखा ने अपनी एक प्रॉपर्टी बेचने की तैयारी कर ली थी। लेकिन, इसको लेकर परिवार में ही विवाद पैदा हो गया। लिहाजा, लेखा ने अपनी एक बेटी के साथ खुदकुशी कर ली। ये कुछ घटनाएं तो उदाहरण भर हैं। पिछले दो सालों में कर्ज से परेशान मध्यम वर्ग के लोगों में खुदकुशी की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है। खुदकुशी के ऐसे मामलों में उन साहूकारों की भी भूमिका पाई जा रही है जो मोबाइल ऐप के जरिए लोन बांटते हैं। इन ऐप्स के मकडज़ाल में फंसकर हैदराबाद, बेंगलुरु और इसके आसपास के इलाकों में कई लोग आत्महत्या कर चुके हैं। पिछले दिनों हैदराबाद पुलिस ने ऐसे ही एक गैंग का खुलासा किया, जो ऐप्स के माध्यम से पैसे उधार देता था और वसूली के लिए लोन लेने वाले की प्राइवेट चीजें सोशल मीडिया में डालने की धमकी देता था। पता चला कि जिन लोगों ने इनके चक्कर में फंसकर आत्महत्याएं कीं, वसूली करने वालों ने उनकी प्राइवेट जानकारी सोशल मीडिया पर डाल दी थी।
दरअसल, लोन देने वाली कंपनियों ने इन दिनों एक नया तरीका अपनाया है। वे लोन लेने वाले के मोबाइल में कॉन्टैट से लेकर फोटो गैलरी तक की ऐसेस पहले ले लेती हैं, फिर उनमें घुसकर ग्राहकों को ब्लैकमेल करती हैं। कर्जदारों के प्रति फाइनेंस कंपनियों का रवैया किस कदर आपाजिनक है, इसकी एक बानगी आरबीआई की एक हालिया कार्रवाई में देखी जा सकती है। जनवरी में ही भारतीय रिजर्व बैंक ने एक बड़ी प्राइवेट फाइनेंस कंपनी पर ढाई करोड़ रुपए का जुर्माना इसलिए लगाया, क्योंकि उसके वसूली एजेंट्स ग्राहकों को डरा रहे थे। आरबीआई को उस कंपनी के बारे में लोगों ने खूब शिकायतें की थीं, तब जाकर उसने संज्ञान लिया। लोन रिकवरी को लेकर सरकार ने नियम बना रखे हैं। एनबीएफसी और फेयर प्रैटिस कोड द्वारा वित्तीय सेवाओं की आउटसोर्सिंग में आचार संहिता पर आरबीआई के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं। लेकिन, बड़ी दिक्कत यह है कि लोन लेने वाले नहीं जानते इनकी शिकायत कहां करें। ऐसे लोगों के लिए यह जानकारी उपयोगी है कि वसूली एजेंट के बदतमीजी करने पर तत्काल संबंधित कंपनी, पुलिस और रिजर्व बैंक को एक शिकायती पत्र रजिस्ट्री की जा सकती है, बल्कि की जानी चाहिए। वसूली एजेंट के पक्ष में सबसे बड़ी बात यही है कि उनके फुटप्रिंट्स बहुत कम मिलते हैं। ये शिकायती पत्र ही इनके फुटप्रिंट्स हैं। आत्महत्या करने से कहीं आसान है, इनकी शिकायत करना।
रिजवान अंसारी
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)