मास के अनुसार देवपूजन

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माघ मास में सूर्य पूजन का विशेष विधान है | भविष्य पुराण आदि में वर्णन आता है | आरोग्यप्राप्ति हेतु बोले, माघ मास आया तो सूर्य उपासना करों |

फाल्गुन मास आया तो होली का पूजन किया जाता है.. बच्चों की सुरक्षा हेतु |

चैत्र मास आता है चैत्र मास में ब्रम्हा, दिक्पाल आदि का पूजन कियाजाता है ताकि वर्षभर हमारे घर में सुख-शांति रहें |

वैशाख मास भगवान माधव का पूजन किया जाता है ताकि, मरने के बाद वैकुंठलोक की प्राप्ति हो | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय… |

जेष्ठ मास में यमराज की पूजा की जाती है ताकि, वटसावित्री का व्रत सुहागन देवियाँ करती है | यमराज की पूजा की जाती है ताकि, सौभाग्य की प्राप्ति हो, दुर्भाग्य दूर हो |

श्रावण मास में दीर्घायु की प्राप्ति हो, श्रावण मास में शिवजी की पूजाकी जाती है | अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम् |

भाद्रपद मास में गणपति की पूजा करते है की, निर्विध्नता की प्राप्ति हेतु |

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में फिर पितृ पूजन करते है की, वंश वृद्धि हेतु | और अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में माँ दुर्गा की पूजा होती है की, शत्रुओं पर विजय प्राप्ति हेतु नवरात्रियों में |

कार्तिक मास में लक्ष्मी पूजा की जाती है, सम्पति बढ़ाने हेतु |

मार्गशीर्ष मास में विश्वदेवताओं का पूजन किया जाता है कि जो गुजर गये उनके आत्मा शांति हेतु ताकि उनको शांति मिले | जीवनकाल में तो बिचारेशांति न लें पाये और चीजों में उनकी शांति दिखती रही पर मिली नहीं | तो मार्गशीर्ष मास में विश्व देवताओं के पूजन करते है भटकते जीवों के सद्गति हेतु |

आषाढ़ मास में गुरुदेव का पूजन करते है अपने कल्याण हेतु और गुरुदेव कापूजन करते है तो फिर बाकी सब देवी-देवताओं की पूजा से जो फल मिलता है वोफल सद्गुरु की पूजा से भी प्राप्त ही सकता है, शिष्य की भावना पक्की हो की –सर्वदेवो मयो गुरु | सभी देवों का वास मेरे गुरुदेव में हैं | तोअन्य देवताओं की पूजा से अलग-अलग मास में अलग-अलग देव की पूजा से अलग-अलग फल मिलता है पर उसमें द्वैत बना रहता है और फल जो मिलता है वो छुपने वाला होता है | पर गुरुदेव की पूजा-उपासना से ये फल भी मिल जाते है और धीरे-धीरे द्वैत मिटता जाता है | अद्वैत में स्थिति होती जाती है |

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