जुर्माना ही हर मर्ज का इलाज

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आजकल रोज नए जुर्मानों की घोषणा होती है। ऐसा लगता है कि जिंदगी ही जुर्माना हो गई है। अभी-अभी हाई सिक्यॉरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट और स्टिकर न होने पर 5,500 रुपए का जुर्माना घोषित किया गया है। मैं तब भी हैरान था, जब दिल्ली सरकार ने यह घोषणा की कि मास्क न पहनने पर जुर्माना 500 रुपए की जगह 2000 रुपए होगा। पहले तो 500 रुपए ही बहुत ज्यादा जुर्माना था, अब 2000 रुपए के जुर्माने से तो बड़े से बड़ा आदमी भी घबरा जाए। वर्षों से सरकारें कानून बनाती और उनके उल्लंघन पर जुर्माना करती आ रही हैं, पर यह मानकर कि उनका उल्लंघन कभी-कभार ही होगा। ये जुर्माने पहले केवल सांकेतिक होते थे किंतु अब सरकारें जुर्मानों से ही चलने लगी हैं। लोगों को शिक्षित करना, समझाना, उनके बीच कानून का प्रचार करना सरकारों ने शायद छोड़ ही दिया है। केवल भारी जुर्माना लगाकर कानून का पालन करवाया जा रहा है।

मंशा में शंका यदि हमारे चुने हुए प्रतिनिधि या नेता अपने इरादों में गंभीर हों तो लोग उनका कहा मानने में ज्यादा ना-नुकर नहीं करते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब नोटबंदी की तब किसी ने मोदी हाय-हाय के नारे नहीं लगाए। जीएसटी जैसा जटिल कानून आया, तब भी लोगों ने मोदी जी की बात को माना। कोरोना में प्रधानमंत्री ने अचानक लॉकडाउन की घोषणा कर दी तो भी सब उसका पालन करने में लग गए। क्यों? क्योंकि उनकी मंशा में किसी को कोई शंका नहीं थी। लेकिन सरकारी महकमों, पुलिस अधिकारियों तथा सरकारी कर्मचारियों की रुचि जनता को समझाने और नियम बताने में नहीं, केवल चालान काटने में है। ट्रैफिक पुलिस कर्मियों को देखकर ऐसा लगता है मानो उनका कार्य अब ट्रैफिक को कंट्रोल करना नहीं, बल्कि सिर्फ चालान काटना है। केंद्र सरकार के अपने चालान हैं तो राज्य सरकारों के अपने और स्थानीय निकायों के अपने।

सरकारें कारों के उत्पादन पर अर्थव्यवस्था के कारण रोक लगा नहीं सकतीं तो स्वाभाविक रूप से कारें बढ़ती जाएंगी। उनके लिए पार्किंग की व्यवस्था की नहीं जा रही लेकिन कारें सड़क पर खड़ी कर दी जाएं तो उन्हें क्रेनों से उठाकर जुर्माना लगाया जा रहा है, वह भी कारों के वजन के हिसाब से। साधारण से साधारण कार पर कम से कम 5600 रुपए जुर्माना लगाया जा रहा है। पूरे देश में जैसे सरकारों को रुपया इकट्ठा करने का एक नया तरीका मिल गया है। हमने फिल्मों में देखा है कि गांधी जी कहते थे, ‘कोई अत्याचार करे, तो उसको फूल दो’, ‘कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो।’ अच्छा होता कि कोई मास्क न लगाए तो सरकार जुर्माने के रूप में उसको मास्क और सैनिटाइजर देती। मैंने सुझाव दिया था कि अगर आपका उद्देश्य जनता से कोष इकट्ठा करना नहीं है तो आप 2000 रुपये के जुर्माने के बदले उसको इतनी ही रकम के मास्क दें, ताकि वह खुद तो लगाए ही, दूसरों को भी लगाता फिरे। यह 2000 रुपए का जुर्माना उन्हीं का काटा जा रहा है, जिनमें 2000 देने की क्षमता है। उन लाखों गरीबों का क्या होगा, जो मास्क नहीं लगा रहे और जिनके पास मास्क खरीदने तक के पैसे नहीं हैं।

जो आदमी चारों शीशे बंद करके अकेले गाड़ी में जा रहा है, उसका भी चालान काटा जा रहा है। जिनके पास कुल मिलाकर 6 फुट चौड़ी दुकान है, उसके यहां 2 ग्राहक आ जाएं तो वह 6 फुट की दूरी कैसे रखेगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। बस चालान काट दो। ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने का जुर्माना 10-10 गुना बढ़ गया है। कई बार तो पुलिस वाले बताते हैं कि उन्हें बाकायदा टारगेट दिया गया होता है कि इतने चालान काटकर लाने ही हैं। सड़कों पर कैमरे लगा दिए गए हैं, कैमरे ही चालान बनाकर भेज देते हैं। यदि सड़क पर जाम लगा हुआ है और लाल-हरी बत्ती के बीच में गाड़ी फंस जाए तो कैमरा फोटो खींच देगा। अलग-अलग सड़कों पर अलग-अलग गतिमान तय किए गए हैं, जो जनता को मालूम नहीं हैं। स्पीड लिमिट के साइन बोर्ड भी नहीं लगे हैं।

एक और बात देखिए। बड़े आराम से लोग कह देते हैं कि भाई आप गलती क्यों करते हैं? आप मास्क क्यों नहीं लगाते? अगर आप मास्क लगाएंगे तो आपका 2000 रुपये का जुर्माना नहीं होगा। ठीक है, अगर मसला सिर्फ गलती का है तो फिर जुर्माना 2000 रुपये ही क्यों? 5000 रुपए क्यों नहीं? आखिर जुर्माना लगाने का पैमाना क्या है? सिर उठाया और कोई भी राशि तय कर दी? नए कानूनों पर पहली बार तो गलती किसी से भी हो सकती है, पर यह पहली गलती है, इस बात को अनदेखा कर ऐसे लपकते हैं जैसे कोई शिकार फंस गया है। इसी तरीके से जुर्मानों की राशि बढ़ती गई और जनता के साथ संवाद स्थापित नहीं किया गया तो जनता सरकार की अवहेलना करना शुरू कर देगी। वैसे ही जैसे अचानक दिल्ली सरकार ने एक दिन कह दिया कि दिवाली पर सिर्फ ग्रीन पटाखे चलेंगे और अगले दिन कह दिया कि कोई पटाखा नहीं चलेगा। लेकिन पटाखे बिके भी और चले भी।

कथनी और करनी नेताओं की कथनी और करनी में अंतर बना रहा तो आखिरकार जनता कानून अपने हाथ में ले लेगी। जनता को निरीह गाय समझकर अगर उसका दोहन करते रहेंगे तो वह गुहार आखिर किस से करने जाएगी? कितने ही लोग इन जुर्मानों के कारण मानसिक तनाव में हैं। जिस सरकार ने प्रदूषण और कोरोना पर कुछ किया नहीं, वेंटिलेटर और आईसीयू बेड बढ़ाए नहीं, वैक्सीन समय पर मुहैया कराई नहीं, अस्पतालों में बेड बढ़ाए नहीं, पानी साफ किया नहीं, कूड़ा-करकट उठाया नहीं, यमुना साफ की नहीं, वृक्षारोपण किया नहीं। यह जानते हुए भी कि हर साल प्रदूषण होता है, पराली, औद्योगिक प्रदूषण, धूल से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए कोई ठोस कदम उठाए नहीं, उसे तो जुर्माना लेने के बजाय उलटे जुर्माना देना चाहिए।

विजय गोयल
(लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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