संतान जब भी कोई अच्छा काम करती है, कोई उपलधि हासिल करती है तो सबसे ज्यादा खुशी मातापिता को ही मिलती है। इसीलिए बच्चों को अपने जीवन में ऐसे काम करना चाहिए, जिसके परिणाम में मातापिता को आनंद और सुख मिले। इस बारे में एक कथा यूं प्रचलित है कि एक दिन कैलाश पर्वत पर शिवजी माता पार्वती को रामकथा सुना रहे थे। रामकथा में श्रीराम और हनुमानजी की पहली भेंट का प्रसंग आया। हनुमानजी ब्राह्मण बनकर श्रीराम के पास पहुंचे थे। जब श्रीराम ने ब्राह्मण को अपना परिचय दिया तो हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में आकर भगवान के पैरों में गिर पड़े। क्षमा मांगने लगे कि मैं आपको पहचान नहीं सका। श्रीराम ने हनुमानजी को उठाया और अपने गले से लगा लिया।
श्रीराम हनुमानजी से मिलकर इतने प्रसन्न हुए कि वे रोने लगे और अपने आंसुओं से हनुमान का अभिषेक कर दिया। इस भेंट से हनुमानजी को भी बहुत आनंद मिला। इस प्रसंग का वर्णन करते हुए शिवजी की आंखों से भी आंसू बहने लगे थे। देवी पार्वती ने शिवजी से पूछा, आपकी आंखों में आंसू यों हैं? शिवजी बोले, कि मेरे अंश, मेरे पुत्र हनुमान को एक बड़ी उपलधि मिली है। मुझे इस उपलधि से इतना आनंद मिला कि मेरी आंखों से आंसू निकल आए हैं। इस कथा से यही सार मिलता है कि संतान के सुख-दुख की खातिर अपना सर्वत्र कुर्बान करने वाले माता-पिता अपने संतान के लिए शुभकामना तो कर सकते हैं लेकिन वह उनके लिए दु:ख की कल्पना कभी नहीं कर सकते। उनकी सफलता पर वह स्वयं खुश होते हैं।