दलदल में ही धंसे हैं विपक्षी दल

0
297

दिल्ली पर किसानों की चढ़ाई और अमित शाह की तमिलनाडु यात्रा की जबरदस्त हाइप बनी। किसान आंदोलन का हाल भी विपक्षी दल बेहाल करने पर तुले हैं। केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ में कम से कम तीन राज्यों के किसान अपनी पूरी ताकत से लड़ रहे हैं। पंजाब और हरियाणा के साथ साथ पश्चिमी उार प्रदेश और राजस्थान के कुछ किसान इसमें सक्रिय हैं। इसके बावजूद यह विपक्ष का साधा आंदोलन नहीं बन पा रहा है। पंजाब सरकार का प्रायोजित आंदोलन है क्या कांग्रेस का प्रायोजित आंदोलन है और अब तो किसानों को इस आंदोलन को खालिस्तान प्रायोजित आंदोलन बताया जाने लगा है। पर सवाल है कि यह पहल कौन करेगा? कायदे से कांग्रेस पार्टी को इसकी पहल करनी चाहिए पर कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता नहीं दिख रहा है, जो आगे बढ़ कर बाकी पार्टियों के नेताओं से बात करे। क्या कांग्रेस के नेता पंजाब में अकाली दल से बात कर सकते हैं? राज्य में सब कुछ राजनीतिक लाइन पर तय होता है इसलिए संभव ही नहीं है कि किसान का कितना भी बड़ा हित हो तो विपक्षी पार्टियां आपस में बात करें।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल किसानों के बड़े हितैषी बन रहे हैं, लेकिन वे भी पहल नहीं करेंगे योंकि पंजाब में उनको अपने लिए अब भी राजनीतिक संभावना दिख रही है। हालांकि उन्होंने बड़े नेताओं को निपटाने की अपनी सोच में इस संभावना को कब का गंवा दिया है। उनको लग रहा है कि पंजाब और हरियाणा में अब भी उनकी पार्टी के लिए उम्मीद है और इसलिए वे कांग्रेस से बात नहीं कर रहे हैं। सो, तीन राज्यों की ऐसी पार्टियां, जो किसानों की हमदर्द हैं और उनके आंदोलन का समर्थन कर रही हैं, उनके बीच किसान आंदोलन को लेकर कोई बात नहीं हो पा रही है। उधर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वे किसान आंदोलन का पक्ष में हैं और अगर उनसे संपर्क किया गया तो वे आंदोलन में शामिल भी हो सकती हैं। यानी वे दिल्ली आकर किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए तैयार हैं पर उनसे कौन बात करेगा? क्या सोनिया गांधी उनसे बात कर सकती हैं? उन्हीं के स्तर का क्या उनसे मंजूरी के बाद कांग्रेस के किसी नेता को ममता से बात करनी चाहिए। अगर कांग्रेस चाहती तो इस आंदोलन को अखिल भारतीय बना सकती थी पर वह सारी लड़ाई ट्विटर पर लड़ रही है और विपक्ष का साझा नहीं बनने से सरकार और मीडिया के एक बड़े हिस्से को मौका मिल रहा है कि वह इसे खालिस्तान समर्थक क्या देश विरोधी आंदोलन साबित करे।

वास्तव में इस यात्रा से कोई खास हासिल नहीं हुआ है। अमित शाह सिर्फ भाजपा के नेताओं से मिले और अपनी सहयोगी अन्ना डीएमके से बात की। अन्ना डीएमके नेताओं ने साथ मिल कर चुनाव लडऩे की सहमति जताई। यह भी कोई नई या बड़ी बात नहीं थी योंकि लोकसभा चुनाव में भी दोनों पार्टियां साथ ही थीं। इसके बावजूद राज्य की 39 में से सिर्फ एक सीट जीत पाई। असली बात यह थी कि तमिल फिल्मों के सुपर सितारे रजनीकांत से अमित शाह की मुलाकात नहीं हुई है और न डीएमके नेता एमके अलागिरी से उनकी मुलाकात हुई। उनकी तमिलनाडु यात्रा शुरू होने से पहले कहा जा रहा था कि रजनीकांत से उनकी मुलाकात होगी। ध्यान रहे अलागिरी मदुरै के इलाके में मजबूत नेता हैं और अगर वे भाजपा में शामिल होते हैं तो उसे फायदा होगा। लेकिन कम से कम अमित शाह की इस यात्रा में उनको न रजनीकांत का साथ मिला और न अलागिरी का। लेकिन भाजपा ने हाइप बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here