उत्तर प्रदेश में लगभग 35 साल से अपनी सियासी जमीन तलाश रही कांग्रेस गांधी परिवार के भरोसे है। वह 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी को सीएम पद का चेहरा बना सकती है। इसके लिए अभी से प्रियंका को मैदान में उतार दिया है। पार्टी का मकसद कृषि कानून के खिलाफ लगभग ढाई माह से चल रहे किसान आंदोलन को समर्थन देना व जगह-जगह किसान पंचायतों के माध्यम से भाजपा से दूर हो रहे लोगों विशेषकर किसानों के प्रति सहानुभूति का प्रदर्शन करना है। जहां राहुल गांधी राजस्थान में किसान महापंचायत कर रहे हैं वहीं प्रियंका को उार प्रदेश की कमान दी गई है। इसके लिए वह पश्चिमी उार प्रदेश के जिलों में किसानों को जागरूक कर रही हैं। सोमवार को बिजनौर व मेरठ में किसान पंचायतों में प्रियंका का साापक्ष पर हमला करना दर्शा रहा है कि वह प्रदेश में कांग्रेस को संजीवनी देने के लिए संकल्पित हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला करना, भाजपा के अडिय़ल रवैय से नाराज किसानों को भरोसे में लेना इस बात का प्रतीक है कि कांग्रेस प्रदेश की सत्ता हासिल करने के लिए छटपटा रही है। प्रियंका का ये ऐलान कि यदि प्रदेश की साा में आए तो वह इन तीन कृषि कानून को लागू नहीं होने देंगे।
इसके अलावा उनका गन्ना किसानों की दुखती रग पर हाथ रखना, गन्ना मूल्य में वृद्धि न करना, गन्ना बकाया भुगतान में विलंबता को लेकर सरकार पर हमला करना एक सियासी मुद्दा है। दो दिन पहले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने बयान दिया था कि यदि वह आसाम में सत्ता में आए तो सीएए लागू नहीं होने देंगे। उनका बयान आसामवासियों की दुखती रग को पकडऩा है। कांग्रेस वे मुददे पर तलाश कर रही है जिन पर जनता में आक्रोश है। यदि देखा जाए तो कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक (दलित-मुस्लिम, ब्राह्मण) उसकी झोली से खिसक गया है। जिसके चलते वह सत्ता से बाहर चल रही है। अब कांग्रेस चाहती है कि जिस तरह भाजपा अपने अडिय़ल रवैये पर अडिग है, वह कृषि कानून को किसी दशा में वापस नहीं लेना चाहती है। लगभग ढाई माह से भले ही किसान दिल्ली की सरहदों पर आंदोलित हों, इस दौरान सैकड़ों किसानों की जान जा चुकी हो लेकिन सरकार पसीज नहीं रही है। उससे लगता है कि भाजपा का रिवायती वोट बैंक यानी वो लोग, जिन्होंने विकास के लिए मोदी पर विश्वास जताया था, वह अब दूर होते जा रहे हैं।
वह आने वाले चुनाव में किसके साथ जाएंगे ये तो समय ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि भाजपा से रूठने वालों को मनाने के लिए विपक्षी पार्टियां सक्रिय हो चुकी हैं। इन पार्टियों द्वारा आंदोलित किसान हित में महापंचायतों का आयोजन उसी का हिस्सा है। जहां विपक्ष की तमाम पार्टियां एक सुर में इन कानूनों का विरोध कर रही हैं, वहीं कांग्रसे व सपा उत्तर प्रदेश में किसान पंचायतों का आयोजन करके यह बताने का प्रयास कर रही हैं कि वह किसान हितैषी हैं। कांग्रेस के नेताओं ने राहुल-प्रियंका को मैदान में उतारकर यह बताना चाहा है कि वह कृषि कानून के मुददे पर किसानों के साथ हैं, उनकी सहानुभूति आंदोलन के लिए है। इस समय यदि वह हमदर्दी दिखाएगी तो उसे चुनाव में इन रूठे किसानों का सहयोग मिल सकता है। इसी सोच के साथ प्रदेश की विपक्षी पार्टियां किसानों के साथ हमदर्दी जताकर पंचायतों का आयोजन कर रही हैं। अब इन पंचायतों का लाभ किसको होगा ये तो उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम बताएंगे। देखने के काबिल ये होगा कि इस वर्ष बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में यदि भाजपा जीतती है तो ये आंदोलन व विपक्षी की सक्रियता बेअसर साबित होगी।