एक दुखी व्यति अपने गांव के विद्वान संत के पास पहुंचा और कहा कि गुरुजी आप मुझे शिष्य बना लें। मुझे जीवन में कभी भी सफलता नहीं मिली है। इस वजह से मैं बहुत परेशान हूं। तब संत ने कहा कि ठीक है, अब से तुम हमारे शिष्य, लेकिन परेशानियों से भागना नहीं चाहिए। इनकी वजह से ही हमारी योग्यता में निखार आता है। संघर्ष और धैर्य की वजह से ही हमें सफलता मिल सकती है। संत ने दुखी व्यति को एक कथा सुनाई, कथा के अनुसार पुराने समय एक किसान की फसल कभी बारिश की वजह से, कभी धूप की वजह से, कभी किसी वजह से पनप नहीं पा रही थी। इससे दुखी होकर किसान भगवान को लगातार कोस रहा था। तभी भगवान वहां प्रकट हुए। किसान ने भगवान से कहा कि प्रभु आपको खेती की जानकारी नहीं है, आपकी गलत समय पर बारिश कर देते हो, कभी भी तेज धूप और ठंड बढ़ा देते हो। इससे हर बार मेरी फसल खराब हो जाती है। किसान ने कहा कि प्रभु मुझे वर दें कि जैसा मैं चाहूं, वैसा ही मौसम रहे। ये बातें सुनकर भगवान ने कहा कि ठीक अब से ऐसा ही होगा। इसके बाद किसान ने गेहूं की खेती शुरू कर दी। अब जब वह बारिश चाहता था, तब बारिश होती, फसल के लिए जब उसे धूप की जरूरत होती, तब धूप निकलती। उसकी इच्छा के अनुसार मौसम चल रहा था। धीरे-धीरे उसकी फसल तैयार हो गई। किसान बहुत खुश था। जब फसल काटी गई तो बालियों में गेहूं के दाने ही नहीं थे। दुखी किसान के सामने भगवान प्रकट हुए। भगवान ने कहा कि तुम्हारी फसल ने बिल्कुल भी संघर्ष नहीं किया है, इसी वजह से ये खोखली रह गई है। फसल तेज बारिश में, तेज हवा में खुद को बचाए रखने का संघर्ष करती है, तेज धूप से लड़ती है, तभी उसमें दाने बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। जिस तरह सोने को चमकने के लिए आग में तपना पड़ता है, ठीक उसी तरह फसलों के लिए भी संघर्ष जरूरी होता है। इस कथा की सीख यह है कि व्यति को परेशानियों से डरना नहीं चाहिए। परेशानियों का सामना करें और धैर्य बनाए रखें। तभी हमें सफलता मिल सकती है।