इस 21वीं सदी के दूसरे दशक (2021-30) का यह शुरुआती साल है। भविष्यवादियों और प्रोद्योगिकीविदों का निष्कर्ष है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के इस्तेमाल से इस दशक में दुनिया बदल जाएगी। कोई पसंद करे या नापसंद, तकनीक से होने वाले बदलाव अपरिहार्य हैं। यह प्रबल वेग और प्रचंड धारा है, जो संसार को बदलती रही है।
इसका प्रमाण है टेक्नोलॉजी का इतिहास और अतीत। भाप की खोज ने ब्रिटेन को सुपर पावर बना दिया। औद्योगिक क्रांति की ताकत से अमेरिका महाशक्ति बना। सूचना क्रांति या कंप्यूटर संचालित संसार में अब बड़ा बदलाव फिर दस्तक दे रहा है।
AI प्रशासन, रक्षा, शिक्षा, कारोबार, स्वास्थ्य समेत सभी क्षेत्रों में प्रवेश द्वार पर है या जीवन का हिस्सा है। यह तकनीक पुरानी व्यवस्था को ध्वस्त कर देगी। जो इस सदी के ज्ञानयुग का हिस्सा हैं, वे फायदे में रहेंगे। उनकी सामाजिक-आर्थिक हैसियत निखरेगी।
इस तकनीक के जानकारों का निष्कर्ष है कि भारत के अंदर जो विकसित राज्य हैं, वे तेजी से इस डिजिटल वर्ल्ड में आगे बढ़ेंगे। जो पीछे हैं, वे हाशिए पर जा सकते हैं। AI के विशेषज्ञ मानते हैं कि भविष्य अब इलेक्ट्रिक कारों का है। AI से बिल्कुल सटीक ड्राइविंग होगी। ऐसे हालात में पुरानी कार इंडस्ट्री, उसके कारखाने-कर्मचारी नहीं टिक पाएंगे।
AI के दौर में इस नई कार के कारखाने भी बेंगलुरु जैसे जगह ही होंगे। जहां पहले से नॉलेज इंडस्ट्री है। विकसित शहर नए रोजगार केंद्र बनेंगे। संदेश स्पष्ट है कि समय के अनुसार जो नहीं बदलेंगे, वे अतीत बन जाएंगे। भविष्य उनका होगा, जो समय की करवट से तालमेल बैठा पाएंगेे। जहां ‘टेक इंटेंसिटी’ (सत्या नडेला का नया मुहावरा, आज के डिजिटल संसार में टेक्नोलॉजी सघनता से तात्पर्य) होगी, वे समृद्धि के नए टापू-केंद्र होंगे।
टेक्नोलॉजी बदलाव के इस ज्वार-वेग में सरकारों की नीतियां निर्णायक होंगी। पर समाज और एक-एक इंसान की पहल और सजगता से ही देश अपनी नियति लिखेंगे। एक-एक विश्वविद्यालय, शिक्षा केंद्र इस बदलाव के हरावल दस्ते बन सकते हैं। अपने मौलिक शोधों से, खोज से, टेक्नोलॉजी ईजाद से।
विशेषज्ञ मानते हैं कि देश के विकसित राज्य या हिस्सा, पढ़े-लिखे लोग, सामर्थ्य वर्ग इससे और लाभान्वित होंगे। उनकी मान्यता है कि इसी तरह संसार स्तर पर दुनिया के विकसित मुल्क पीछे छूटे देशों को कोलोनाइज करेंगे। नए ढंग से। नए संदर्भ में। अपनी इस टेक्नोलॉजी के बल दुनिया के मौजूदा सामाजिक तानाबाना पर गहरा असर पड़ेगा।
अंग्रेज आए, तो यह देश बंटा था। पिछड़ा था। फिर अमेरिका का दौर आया। अब चीन है। भारत भी इसी राह पर है। इस ग्लोबल वर्ल्ड में हर भारतीय सारी चीजें देख रहा है। यह भारत की नियति को फिर नए सिरे से लिखने का मौका है। जरूरी है कि बदलाव की इस महाआंधी को देश समझे।
डिजिटल इंडिया भारत के भविष्य से जुड़ा जरूरी सवाल है। आज दुनिया की टॉप टेक्नोलॉजी भारतीय प्रतिभाएं तैयार कर रही हैं। यह काम देश के कोने-कोने में हो, यह माहौल मिलकर बनाना होगा। सॉफ्टवेयर का पुनर्लेखन हो। टेक्नोलॉजी पार्क विकसित हों। नई टेक्नोलॉजी विकसित करने का देशव्यापी अभियान हो। अपने देश की प्रतिभाओं को देश और राज्यों में फलने-फूलने और कुछ करने की सुविधाएं मिले। देशव्यापी रचनात्मक माहौल बने।
पिछले दिनों एक रिपोर्ट पढ़ी कि 1996 से 2015 के बीच सीबीएसई, आईसीएससी, आईसीएस के 86 टॉपर्स में से आधे से ज्यादा आज विदेशों में हैं। ज्यादातर अमेरिका में। वह भी साइंस-टेक्नोलॉजी क्षेत्र में विशिष्ट जगहों-पदों पर। 50-60 के दशकों में हम ‘ब्रेन ड्रेन’ नहीं रोक पाए।
हालात बदलने का राष्ट्रीय संकल्प अब मिलकर लें। यह लोक अभियान बने। हर शिक्षा केंद्र, बौद्धिक शोध केंद्र, प्रयोगशालाएं, भारतीय मिट्टी-आबोहवा और जरूरत के अनुसार इस तकनीक पर पहल और शोध करें। उद्यमी उद्योगों को इस बदलाव का न सिर्फ हिस्सा बनाएं, बल्कि वे दुनिया के लिए मॉडल बनें। उनके बिजनेस मॉडल, उत्पाद, इनोवेशन को दुनिया अपनाए।
भारतीय उद्यमियों में यह क्षमता है। देश खुद अपनी टेक्नोलॉजी बनाए। अपना एआई, अपना प्लेटफॉर्म भारत में बने। यह देश के अस्मिता-भविष्य से जुड़ा प्रसंग है।
आज टेक्नोलॉजी की ताकत कहां पहुंच गई? दृष्टिविहीन नए ढंग से दुनिया देख सकते हैं। इतिहासकार अतीत के रहस्यों-खंडहरों का पाठ कर सकते हैं। वैज्ञानिक बीमार धरती को बचाने नई तकनीक ढूंढ सकते हैं। इंसान दीर्घायु होने की ओर पांव बढ़ा चुका है। असंख्य बदलावों की दहलीज पर खड़ा है, इंसान और संसार। टेक्नोलॉजी के बदलाव की यह गति धीमी नहीं हो सकती। बदलाव के भूचाल से देश को तालमेल बनाना होगा, ताकि हम उसी गति से नई दुनिया में, नई ताकत से जगह बना सकें।
हरिवंश
(लेखक राज्यसभा के उपसभापति हैं ये उनके निजी विचार हैं)