जलवायु परिवर्तन का असर अब ज्यादा, बात एजेंडे पर ही हो

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जलवायु परिवर्तन का असर अब दुनिया भर में जाहिर है। यानी जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में तबाही होगी, ये अब महज चर्चा नहीं रही। बल्कि हर साल इस असर से जुड़ी घटनाएं दुनिया भर में बढ़ती जा रही हैं। लेकिन सरकारें महज प्रतीकात्मक कदम उठा कर अभी संतुष्ट हैं। इसकी वजह शायद यही है कि वे ऐसे उपाय नहीं करना चाहतीं, जिनसे उन आर्थिक हितों को नुकसान हो, जिनकी वो असल में नुमाइंदगी करती हैं। जहां तक भारत की बात है, तो यहां तो ये मसला राजनीति के एजेंडे पर ही नहीं है। इसलिए यहां ऐसे किन्हीं उपायों की कोई चर्चा मुयाधारा राजनीति या मीडिया में नहीं होती। लेकिन वैज्ञानिक तथ्य सामने हैं। परिणाम सबको भुगतना होगा।

एक नए शोध के मुताबिक साल 2040 तक ब्राजील, चीन, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन और अमेरिका में अकेले बेहतर आहार से 60.4 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है, स्वच्छ हवा से 10.6 लाख और नियमित शारीरिक गतिविधियों से अन्य 20 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है।इन देशों में दुनिया की कुल आबादी का आधे से भी बड़ा हिस्सा है और कुल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में उनका हिस्सा 70 प्रतिशत के लगभग है। जीवाश्म ईंधन पर चलने वाले उद्योगों, परिवहन, कृषि और ताप प्रणाली से विषाक्त उत्सर्जन ने यहां के हवा को प्रदूषित कर रखा है। इस वजह से लाखों लोगों की जान जा रही है। ब्रिटिश जर्नल लांसेट में छपी इस अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक प्रस्तावित उपायों से न केवल हर साल लाखों लोगों को समय से पहले मरने से रोका जा सकता है, बल्कि बेहतर स्वास्थ्य के माध्यम से लाखों लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर की जा सकती है।

गौरतलब है कि पेरिस जलवायु समझौते के तहत बड़ी संख्या में देशों ने 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के लिए उत्सर्जन स्तर पर अंकुश लगाने का वादा किया है। लेकिन ये वादा ज्यादातर कागजों पर ही है। इस वर्ष नवंबर में 170 से अधिक देशों के नीति निर्माता वार्षिक जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के लिए ग्लासगो में मिलेंगे। सवाल है कि क्या कोरोना महामारी के अनुभव से गुजरने के बाद अब उनके नजरिए में बदलाव आएगा? और क्या भारत जैसे देश में अब ये बात एजेंडे पर आएगी? आज के रूझान को देखते हुए ज्यादा उम्मीद करने की वजह नहीं दिखती।

डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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