आंकड़े नहीं होना कोई बचाव नहीं !

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केंद्र सरकार हर बात पर कह रही है कि उसके पास आंकड़े नहीं है। संसद के मॉनसून सत्र में सरकार ने जितनी चीजों के बारे में यह बात कही है उसे सुन कर हैरानी होती है। हार्ड वर्क करने वाली सरकार अगर आंकड़े नहीं जुटा रही है तो किस काम में हार्ड वर्क कर रही है? भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि कोरोना वायरस के संकट के समय भाजपा ने 25 करोड़ फूड पैकेट बांटे, पांच करोड़ राशन किट बांटी गई और एक करोड़ मास्क बांटे गए। नंबर के लिहाज से यह एकदम सटीक आंकड़ा पेश किया गया। पर संसद में सरकार ने कहा कि उसके पास इस बात का आंकड़ा नहीं है कि कोरोना वायरस का संकट रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के दौरान पलायन करने वाले कितने मजदूरों की रास्ते में मौत हुई। सरकार के श्रम व नियोजन मंत्रालय ने यह भी कहा कि कितने मजदूरों की नौकरी गई, यह आंकड़ा भी सरकार के पास नहीं है। यह हैरान करने वाली बात है।

पर इससे भी ज्यादा हैरानी तब हुई, जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण से कितने स्वास्थ्यकर्मियों या कोरोना वारियर्स का निधन हुआ है यह आंकड़ा भी सरकार के पास नहीं है। उन्होंने कहा कि यह राज्यों का विषय है। सोचें, जिस संकट को सदी का सबसे बड़ा संकट बताया जा रहा है, उस संकट से निपटने में जो लोग अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं उनके जीवन की कोई परवाह सरकार को नहीं है। दिल्ली में राज्य सरकार कोरोना वारियर्स की मौत पर एक करोड़ रुपए दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वारियर्स के सम्मान में लोगों से ताली-थाली बजवाई थी, सेना से बैंड बजवाई थी और अस्पतालों के ऊपर फूल बरसाए गए थे लेकिन हकीकत यह है कि सरकार के पास यह आंकड़ा नहीं है कि कितने लोगों की मौत हुई।

संसद में सरकार ने एक और हैरान करने वाली बात बताई। सरकार ने एक सवाल के जवाब में कहा कि उसे पता नहीं है कि सूक्ष्म, लघु व मझोले उद्योगों यानी एमएसएम सेक्टर में कितनी कंपनियां बंद हुई हैं। सोचें, सरकार एमएसएमई सेक्टर पर सबसे ज्यादा ध्यान दे रही है। सरकार की ओर से घोषित 21 लाख करोड़ रुपए के कथित राहत पैकेज में भी एमएसएमई सेक्टर के लिए लाखों करोड़ रुपए के बिना गारंटी के कर्ज की घोषणा की गई। पर सरकार को यह पता नहीं है कि इस सेक्टर की कितनी कंपनियां बंद हुई हैं।

सरकार के इन जवाबों का क्या मतलब निकाला जाए? इसे पलायन करने वाले प्रवासियों में से कितने की नौकरी गई, यह पता नहीं है। पलायन के दौरान कितने मजदूर मरे, यह भी पता नहीं है। डॉक्टर और दूसरे कितने कोरोना वारियर्स की जान गई यह भी सरकार को पता नहीं है और एमएसएमई सेक्टर में कितनी कंपनियां बंद हुई यह आंकड़ा भी सरकार के पास नहीं है। अब सवाल है कि क्या आंकड़ा नहीं होना सरकार के बचाव का तर्क हो सकता है? क्या सरकार यह कहना चाह रही है कि इनके आंकड़े नहीं हैं इसका मतलब है कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई? कंपनियां बंद नहीं हुई हैं या लोग मरे नहीं हैं? क्या आंकड़ा नहीं इकट्ठा करके या आंकड़े साझा नहीं करके सरकार इस जिम्मेदारी से बच जाएगी कि उसने जल्दबाजी में लॉकडाउन किया था और उस वजह से लाखों लोगों का जीवन प्रभावित हुआ था? क्या आंकड़े नहीं होने से यह बात जाहिर नहीं होगी कि स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिए सरकार के पास पर्याप्त साधन नहीं थे, जिसकी वजह से उनकी जान गई है? नोटबंदी को जायज ठहराने के लिए सरकार हर जगह कहती रही है कि तीन लाख फर्जी कंपनियां बंद हुईं। पर कोरोना वायरस के संकट से एमएसएमई सेक्टर की कितनी असली कंपनियां बंद हुईं और कितने लोग बेरोजगार हुए उनकी संख्या का सरकार को पता नहीं है। क्या इससे सरकार बेरोजगारी की चिंता से मुक्त हो जाएगी?

सरकार आंकड़े नहीं होने की बात करके वास्तव में खुद की पोल खोल रही है और अपनी कमजोरी जाहिर कर रही है। यह स्थापित नियम है कि कोई भी कानून बनाने के लिए या किसी भी समूह के हित की कोई योजना बनाने के लिए सबसे जरूरी चीज वास्तविक आंकड़े होते हैं। बिना वास्तविक आंकड़े के कोई भी योजना नहीं बनाई जा सकती है। अगर सरकार के पास स्वास्थ्यकर्मियों के संक्रमित होने या मरने का आंकड़ा नहीं होगा तो वह उनके हित में कैसे योजना बना सकेगी? अगर बंद हुई कंपनियों की सूचना सरकार से पास नहीं है तो उन कंपनियों को चालू करने की योजना कैसे बनेगी?

आंकड़े नहीं हैं, यह कह कर सरकार अपने को बचा रही है पर इससे सरकार की दो स्तरों पर अगंभीरता जाहिर हो रही है। इससे यह पता चल रहा है कि सरकार न फ्रंटलाइन वर्कर्स की चिंता कर रही है और न कोरोना वायरस व आर्थिक संकट से सबसे अधिक प्रभावित वर्ग की चिंता कर रही है। दूसरे, सरकार अगर बिना आंकड़ों के इन वर्गों के कल्याण की योजनाएं घोषित कर रही है तो उस पर लोगों का भरोसा नहीं बनेगा। इसका मतलब होगा कि सरकार धूल में लट्ठ मार रही है या लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए योजनाओं की घोषणा कर रही है। तभी सरकार की पहली जरूरत आंकड़ा नहीं होने से बनी धारणा को दूर करने की है। जिस तरह से सरकार ने बताया कि विशेष ट्रेनों में 97 मजदूर मरे थे उसी तरह से सरकार को किसी भी स्रोत से सूचना जुटा कर बताना चाहिए कि पलायन कर रहे कुल कितने मजदूर मरे थे, उनमें से कितने लोग अब पूरी तरह से बेरोजगार हो गए हैं, कितने स्वास्थ्यकर्मियों या कोरोना वारियर्स की मौत हुई है और एमएसएमई सेक्टर की कितनी कंपनियां बंद हुई हैं। सरकार यह आंकड़े पेश करेगी तभी लोगों का भरोसा बनेगा कि वह इन सब मामलों से प्रभावित लोगों की मदद करना चाहती है।

सुशांत कुमार
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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