नई पेंशन स्कीम दे रही टेंशन

0
205

इस साल की शुरुआत के पहले ही दिन, यानी 1 जनवरी को न्यू पेंशन स्कीम के अंतर्गत आने वाले कर्मचारियों ने ब्लैक डे घोषित किया। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत इसे सोशल मीडिया में ट्रेंड भी किया। नई पेंशन स्कीम पहली जनवरी 2004 से अस्तित्व में आई थी, तब से लगातार इसका विरोध हो रहा है। ऐसा कोई महीना नहीं, जब कर्मचारियों ने इसके विरोध में आयोजन न किए हों।

पिछले महीने मध्य प्रदेश में वेस्ट सेंट्रल रेलवे एम्प्लॉयज यूनियन ने 1 दिसंबर से 17 दिसंबर तक नई पेंशन स्कीम को समाप्त करने के लिए शंखनाद पखवाड़ा मनाया। प्रदेश के सभी रेलवे स्टेशनों पर प्रदर्शन आयोजित किए। एनपीएस यानी नेशनल पेंशन स्कीम देश भर के लगभग 27 राज्यों में लागू है। वेस्ट बंगाल में पुरानी पेंशन स्कीम चल रही है। इसमें विवाद की शुरुआत तब हुई, जब सांसदों और विधायकों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम का प्रावधान रखा गया, वहीं सरकारी कर्मचारियों को 60 साल सरकारी सेवा में बिताने के बावजूद एनपीएस के अधीन रखा गया।

एनपीएस के विरोध के पीछे कई वजहें हैं। एक तो यही कि इस पेंशन फंड के निवेशकों का पैसा शेयर और बॉन्ड मार्केट में लगाया जाता है और मुनाफा बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है। निवेश में गिरावट से पेंशन की राशि कम हो जाती है। समान वेतन उठाने वाले कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद अलग-अलग पेंशन राशि प्राप्त करते हैं। एनपीएस केवल धन जमा करने में मदद करता है। सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी बीमा कंपनी से वार्षिक योजना खरीदने के लिए जमा धन का उपयोग करते हैं। कर्मचारी को पेंशन बीमा कंपनी देती है, जिसमें रिटर्न की कोई गारंटी नहीं है। यही वजह है कि कर्मचारी लगातार इसके विरोध में हैं। नवंबर में न्यू पेंशन स्कीम एम्प्लॉयीज फेडरेशन ऑफ राजस्थान ने सभी जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किया।

इसके विरोध की दूसरी वजह यह है कि पुरानी पेंशन में जीपीएफ की व्यवस्था थी, जिसे अब सीपीएफ बना दिया गया है। इसमें कर्मचारियों को कंट्रीब्यूशन देना होता है, मगर तय पेंशन की कोई गारंटी नहीं है। जीपीएफ में कर्मचारी का कोई कंट्रीब्यूशन नहीं होता है और तय पेंशन की गारंटी होती है। अक्टूबर में हिमाचल प्रदेश कर्मचारी महासंघ के बैनर तले पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली को लेकर जो प्रदेशव्यापी प्रदर्शन हुआ, उसमें प्रदर्शनकारियों का कहना था कि पुरानी पेंशन योजना में सेवानिवृत्ति पर कर्मचारी को अंतिम वेतन का अधिकतम 50 फीसदी गारंटी के साथ पेंशन देने का प्रावधान है, जबकि एनपीएस में यह पूरी तरह से शेयर बाजार और बीमा कंपनी पर निर्भर है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि एक कर्मचारी अपने सेवा काल में एक लाख रुपए जमा करता है। रिटायरमेंट के दिन शेयर मार्केट में उसके एक लाख के निवेश का मूल्य 10 हजार है तो उसे 6 हजार रुपए नकद मिलेंगे, बाकी 4 हजार रुपए में उसे किसी बीमा कंपनी से पेंशन स्कीम लेनी होगी। इसमें भी कोई गारंटी नहीं कि पेंशन कितनी बनेगी।

पुरानी पेंशन पाने वालों को हर छह माह बाद महंगाई और वेतन आयोगों का लाभ मिलता है, वहीं एनपीएस में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। आमतौर पर 10 साल की सेवा पूरी करने पर पेंशन का लाभ मिलता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति या सेवा समाप्ति की स्थिति में पेंशन फुल टाइम टेंशन बन जाती है। सरकारी कर्मचारी इसे सबसे बड़ी हानि के रूप में देख रहे हैं। कुछ राज्य पुरानी पेंशन दे रहे हैं, तो वहां टेंशन नहीं है, मगर जहां नई पेंशन स्कीम लागू हैं, वहां से विरोध के स्वर लगातार उठ रहे हैं।

हालांकि कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने एनपीएस के नियमों में कुछ बदलाव किए हैं। रिटायरमेंट के समय 60 फीसदी रकम निकासी को आयकर मुक्त कर दिया गया है। हालांकि बाकी 40 फीसद राशि पहले की तरह ही किसी वार्षिक प्लान में इन्वेस्ट करनी ही है। नए बदलाव में टायर- 2 एकाउंट में निवेश करने पर इन्कम टैक्स में सेक्शन 80-सी के तहत डेढ़ लाख तक की छूट मिलेगी। फिर भी इसे उचित तो नहीं ही कहा जा सकता है कि एक ही पद पर समान सेवाकाल पूरा करने वालों को अलग-अलग पेंशन मिले, उनकी गाढ़ी कमाई अनिश्चित बाजार में लगे और जन प्रतिनिधि पुरानी पेंशन स्कीम का मजा लूटते रहें।

नरपत दान बारहठ
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here