नए वित्तीय वर्ष से नई उम्मीदें

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जैसे कि उम्मीद की जा रही थी कि विगत वित्तीय वर्ष में कोरोना संक्रमण के चलते देश की आर्थिक स्थिति बेहद प्रभावित हुई थी, उसे उभारने के लिए केंद्र सरकार के लिए एक चुनौती बनी हुई है। आज से शुरू हो रहे इस नए वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार का प्रयास रहेगा कि सैलेरी स्ट्रक्चर में कोई बदलाव न हो, यानि पिछले वर्ष की भांति ही सैलेरी स्ट्रक्चर बना रहे। इसमें होने वाले परिवर्तन को फिलहाल सरकार ने टाल दिया। इसकी वजह कुछ राज्यों की लेबर कोड्स को लेकर तैयारी अधूरी होना है। पिछले दिनों केंद्र सरकार ने 29 श्रम कानूनों में बदलाव कर 4 लेबर कानून बनाए थे। जिसका उददेश्य कंपनियों की आर्थिकी को उभारना था। इन कानूनों के तहत कंपनियों को अपने कर्मचारियों की सैलेरी स्ट्रक्चर समेत कई अहम् बदलाव की उमीद थी। इन कानूनों के तहत टेक होम यानी इन हैंड सैलरी कम होती, लेकिन प्रॉविडेंट फंड यानी पीएफ की रकम बढ़ जाती। इसका सीधा अर्थ है यह था कि सरकार आपकी सेविंग को बेहतर बनाने की कोशिश में है।

व्यवासियक लोगों के लिए 29 श्रम कानून थे, जिसके तहत व्यावसायिक सुरक्षा कानून, स्वास्थ्य और कार्य की स्थितियां, औद्योगिक संबंध और सामाजिक सुरक्षा कानून थे। इन कानूनों के द्वारा कंपनियों के साथसाथ श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में सुधार करना था। एचआर कंसल्टेंट धर्मेश का यह कहना कि नए कानून का असर एंप्लॉई की सैलरी पर पड़ेगा लेकिन सेविंग के चलते भविष्य के लिए ज्यादा बचत होगी। पीएफ पर मिलने वाला हर साल ब्याज 8-8.5 प्रतिशत के बीच मिलता है। कुल मिलाकर नौकरीपेशा लोगों के लिए यह एक सकारात्मक कदम है। इससे नौकरी पेशा लोगों की आर्थिक सुधार होने की उमीद जगी है। किसी भी नौकरी करने वाले व्यक्ति के बीच आमतौर पर दो शब्दों काफी चिर-परिचित होते हैं, पहला सीटीसी यानी कॉस्ट टू कंपनी और दूसरा टेक होम सैलरी, जिसे इन हैंड सैलरी भी कहते हैं। आपके काम के ऐवज में कंपनी का कुल खर्च, यह आपकी कुल सैलरी होती है। इस सैलरी में आपकी बेसिक सैलरी तो होती ही है, इसके अलावा हाउस अलाउंस, मेडिकल अलाउंस, ट्रैवल अलाउंस, फूड अलाउंस और इंसेंटिव भी होता है। इन सबको मिलाकर आपकी टोटल सैलरी तय होती है, जिसे सीटीसी कहा जाता है। जब आपके हाथ में सैलरी आती है तो वह आपकी सीटीसी से कम होती है।

वजह कंपनी आपकी सीटीसी यानी कुल सैलरी से कुछ पैसा प्रोविडेंट फंड के लिए काटती है, कुछ मेडिकल इंश्योरेंस के प्रीमियम के तौर पर काटती है और इसके अलावा भी कुछ मदों में कटौती की जाती है। इन सभी के बाद जो पैसा आपके हाथ में आता है वह हैंड सैलरी होती है। जिसकी बेसिक सैलरी सीटीसी की 50 प्रतिशत है, उसे कोई खास फर्क नहीं पडऩे वाला, लेकिन जिसकी बेसिक सैलरी सीटीसी की 50 प्रतिशत नहीं है उसे ज्यादा फर्क पड़ेगा। ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि इन नियमों के तहत अब किसी की भी बेसिक सैलरी सीटीसी के 50 प्रतिशत से कम नहीं हो सकती। क्योंकि पीएफ का पैसा आपकी बेसिक सैलरी से ही कटता है, जो बेसिक सैलरी का 12 प्रतिशत होता है। इसका सीधा मतलब है कि बेसिक सैलरी जितनी ज्यादा होगी पीएफ उतना ज्यादा कटेगा। पहले लोग टोटल सीटीसी से बेसिक सैलरी कम कराकर अलाउंस बढ़वा लेते थे, जिससे टैक्स में छूट भी मिल जाती थी और पीएफ भी कम कटता था। इससे इन हैंड सैलरी बढ़ जाती थी। सरकार इन्हीं कमियों को दूर करने और कर्मचारियों के फायदे के लिए नियमों में बदलाव किया है।

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