दिल्ली सरकार ने दिल्ली शिक्षा बोर्ड बनाने का जो फैसला लिया है, मैं समझता हूं उसका असर सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था पर होगा। दिल्ली बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन कोई मामूली शिक्षा बोर्ड नहीं होगा। जैसे हर राज्य का परीक्षा बोर्ड होता है, उसी तर्ज पर अपना बोर्ड बनाने का हमारा इरादा नहीं है। आज पूरा देश देख रहा है कि दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था के अंदर पिछले छह साल में कितने क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। इसलिए यह समझना जरूरी है कि हमें दिल्ली शिक्षा बोर्ड बनाने की जरूरत क्यों पड़ी और इस बोर्ड के जरिए हम हासिल क्या करना चाहते हैं?
हर बच्चा है खास
दरअसल, हमारी सरकार ने हर साल दिल्ली के बजट का लगभग 25 फीसद खर्च शिक्षा पर करना शुरू किया। उससे क्या हुआ? दिल्ली के सरकारी स्कूलों की बिल्डिंगें अच्छी बनने लगीं। लाइब्रेरी, लैब, स्विमिंग, स्कूलों की साफ-सफाई, सुरक्षा व्यवस्था, ऑडिटोरियम, साफ टॉयलेट, अच्छे डेस्क और ब्लैक बोर्ड्स लगे। सरकारी स्कूलों का पूरा जो ढांचा हीन भावना से ग्रसित था, एक तरह से उसे नई पहचान मिल गई। दूसरा सबसे बड़ा बदलाव था, टीचर और प्रिंसिपल्स को बड़े स्तर पर ट्रेनिंग पाने के लिए देश-विदेश के आला संस्थानों में भेजना।
हमने उन्हें कैंब्रिज, सिंगापुर, फिनलैंड, अमेरिका, आईआईएम लखनऊ और अहमदाबाद भेजा। हमारे सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे कैमिस्ट्री, मैथ्स, फिजिक्स ओलंपियाड के लिए विदेश गए और मैडल जीत कर लाए। हमने तीसरा बड़ा परिवर्तन अपने स्कूलों के प्रिंसिपलों को और ज्यादा सशक्त बनाकर किया। पहले हर स्कूल में दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय का हर छोटी-छोटी चीज पर बहुत ज्यादा हस्तक्षेप होता था। हमने प्रिंसिपलों को पांच हजार की जगह पचास हजार रुपये खुद खर्च करने का अधिकार दिया, ताकि किसी भी वजह से बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो।
चौथा बड़ा बदलाव था कि हमने स्कूलों में कई नए प्रयोग किए। सरकारी स्कूलों के तमाम बच्चों को न ठीक से पढ़ना आता था, न ही वे गणित के बुनियादी सवाल हल कर पाते थे। इस समस्या को खत्म करने के लिए हमने चुनौती और मिशन बुनियाद शुरू किए। हम अपने स्कूलों में हैपिनेस करिकुलम लेकर आए। इससे बच्चों के इंटरपर्सनल रिलेशन अच्छे हुए। स्कूलों में एंटरप्रेन्योरशिप माइंडसेट करिकुलम लागू किया, जो हमारे बच्चों को नौकरी ढूंढने की जगह नौकरी देने वाला बनाएगा।
इस तरह के कई प्रयोगों की वजह से आज दिल्ली के सरकारी स्कूलों का रिजल्ट 98 फीसद आने लगा है, जो प्राइवेट स्कूलों से भी ज्यादा है। हमारे बच्चों का इंजीनियरिंग, मेडिकल और अच्छे-अच्छे कॉलेजों में एडमिशन होने लगा। पैरेंट्स को भरोसा होने लगा कि सरकारी स्कूलों के अंदर उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित है। ये बहुत बड़ी बात है। जो पेरेंट्स सरकारी स्कूलों में पहले अपने बच्चों को भेजना नहीं चाहते थे, आज उन्हें भरोसा है कि उनके बच्चों का भविष्य सरकारी स्कूलों में सुरक्षित है। हमारे स्कूलों में पढ़ने वालों बच्चों में भी जबरदस्त आत्मविश्वास पैदा हुआ है। अब अगला कदम उठाने का समय आ गया है। अब यह तय करने का समय है कि स्कूलों में क्या पढ़ाया जाए, कैसे पढ़ाया जाए और उसका आकलन कैसे हो?
हम तीन लक्ष्यों को ध्यान में रख कर अपने बच्चों को शिक्षा देना चाहते हैं। पहला, हमें ऐसे बच्चे तैयार करने हैं जो कट्टर देशभक्त हों, अपने देश के लिए मर-मिटने का जज्बा रखते हों। जो आने वाले समय में हर क्षेत्र में इस देश की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हों। साइंस, टेक्नॉलजी, व्यापार, राजनीति, सामाजिक, हर क्षेत्र में हमारे बच्चे देश की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हों। दूसरा, हमारे बच्चे अच्छे इंसान बनें। चाहे वे किसी भी धर्म के हों, जाति के हों, अमीर हों, गरीब हों, सारी दीवारें तोड़कर एक दूसरे को इंसान समझें और एक तरफ अपने परिवार के लिए, तो दूसरी तरफ अपने समाज के लिए निःस्वार्थ भाव से जीना सीखें।
तीसरे, आज हमारे देश में सबसे बड़ी समस्या यह है कि बड़ी-बड़ी डिग्री लेने के बावजूद बच्चों को नौकरी नहीं मिल रही है। बच्चे घर में बेरोजगार बैठे हुए हैं, ऐसी शिक्षा का क्या फायदा? बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए तैयार करना होगा, ताकि जब वे पढ़ाई पूरी कर बाहर निकलें, तो रोजगार ढूंढने के लिए दर-दर की ठोकरें ना खानी पड़ें। आज हमारा पूरा का पूरा शिक्षा तंत्र रटने पर जोर दे रहा है। रटो और साल के अंत में होने वाले तीन घंटे के पेपर में उसे लिख दो। हमें यह बदलना होगा क्योंकि सिर्फ रट कर शिक्षा का लक्ष्य नहीं पाया जा सकता है। दिल्ली बोर्ड रटने पर नहीं बल्कि समझने पर जोर देगा।
एक बच्चे की पूरे साल की मेहनत का मूल्यांकन साल के अंत में तीन घंटे की परीक्षा लेकर नहीं किया जाएगा। उसका मूल्यांकन पूरा साल लगातार चलता रहेगा। दिल्ली बोर्ड को इंटरनेशनल स्तर का बनाया जाएगा। इसमें हम बहुत सी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग से इंटरनेशनल प्रैक्टिसेज को अपनाएंगे, जिससे बच्चों के सीखने का आकलन और उनका मूल्यांकन, हाई-एंड-टेक्नीक के जरिए किया जा सके। हमें यकीन है कि हर बच्चे में कुछ न कुछ विशेष है। उसकी किस विषय में रुचि है? उसके लिए कौन सा करियर उपयुक्त है? उसको कौन सा कोर्स करना चाहिए? इन सभी सवालों का जवाब नए बोर्ड के पास होगा।
शिक्षा से समाधान
हमारा मानना है कि अगर शिक्षा व्यवस्था को ठीक किया जाए तो देश की हर समस्या का समाधान निकल सकता है। पिछले छह साल की हमारी यात्रा काफी अच्छी रही। मैं समझता हूं कि इस बोर्ड का गठन इसका अगला चरण है, जिसके जरिए शिक्षा के क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन होगा, और शिक्षित होकर निकलने वाले हमारे बच्चे एक तरफ तो अपने देश की बागडोर संभालने के लिए तैयार होंगे, वहीं दूसरी तरफ वे अपने परिवार का भी भरण-पोषण अच्छे से करेंगे और एक अच्छा इंसान बनेंगे।
अरविंद केजरीवाल
(लेखक दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं ये उनके निजी विचार हैं)