कारगर तरीका खोजना होगा

0
212

ब्राजील ने कोविड का सामना करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। निर्णय लिया कि जितना संक्रमण होता है उसे बर्दाश्त कर अपने नागरिकों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाए। उस देश में जितने लोग मरे उनका आर्थिक मूल्य वहां की सरकार अदा किया। व्यक्ति के जीवन का आर्थिक मूल्य आंकने के लिए अर्थशास्त्र में लोगों से पूछा जाता है कि एक वर्ष अधिक जीने के लिए वे कितनी रकम देने को तैयार होंगे। मान लीजिए, सामान्य व्यक्ति एक वर्ष अतिरिक्त जीने के लिए दो लाख रुपये देने को तैयार है और उसकी वर्तमान आयु 50 वर्ष है, जबकि नागरिकों की औसत आयु 70 वर्ष है। औसत के अनुसार उसकी 20 वर्ष की आयु शेष है। तब उसकी आज मृत्यु का आर्थिक मूल्य 20 वर्ष गुणे 2 लाख रुपये यानी 40 लाख रुपये होगा। हर व्यक्ति पर नजर अमेरिका में उपरोक्त आधार पर एक मृत्यु का आर्थिक मूल्य 1 करोड़ अमेरिकी डालर आंका गया है।

ब्राजील का 50 लाख डॉलर मान लें, तो अपने यहां हुई 21,000 मौतों का आर्थिक मूल्य 110 अरब डॉलर ब्राजील अदा कर चुका है जो उसके जीडीपी का 6 प्रतिशत बैठता है। मौत का सिलसिला वहां थमा नहीं है, अतः कुल आर्थिक मूल्य बहुत भारी पड़ेगा। यह उपाय हर जगह के लिए मान्य नहीं है। चीन ने विशेष ध्यान कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग पर दिया है। हर व्यक्ति जो सड़क पर आता है उसके आवागमन पर कंप्यूटर से नजर रखी जाती है। किसी भी दुकान में प्रवेश करते समय उसे कंप्यूटर से स्वीकृति लेनी पड़ती है और बाहर निकलते समय बताना पड़ता है। यदि कोई व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव पाया जाता है तो तत्काल कंप्यूटर से ज्ञात हो जाता है कि वह किन लोगों के संपर्क में आया होगा। इससे यह पता करना खास मुश्किल नहीं होता कि किन लोगों में संक्रमण फैलने का अंदेशा है और किन्हें क्वारंटीन में रखने की जरूरत है।

इस व्यवस्था के साथ गड़बड़ी यह है कि इसमें सूचना के दुरुपयोग की भारी संभावना है क्योंकि हर व्यक्ति किस समय कहां पर गया और किससे मिला, इसकी सूचना सरकार के पास पहुंच जाती है। सरकार अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों पर भी शिकंजा कस सकती है। फिर यह व्यवस्था भी मुफ्त तो नहीं है। इसे लागू करने का भी खर्च आएगा। हर दुकान में सेंसर लगाने होंगे। अपने देश के लिहाज से देखें तो यहां इंटरनेट का प्रसार भी इतना ज्यादा नहीं है कि संपूर्ण जनता को एक ऐप के माध्यम से ट्रेस किया जा सके। इसलिए चीन की यह व्यवस्था हमारे लिए व्यावहारिक नहीं दिखती है। न्यूजीलैंड में सोशल डिस्टेंसिंग को बखूबी अपनाया गया है। इसका भी आर्थिक मूल्य है। उदाहरण के लिए फैक्ट्रियों में उत्पादन आदि पर और कंस्ट्रक्शन कार्यों पर सरकार ने रोक लगाई थी जिससे आर्थिक गतिविधियां मंद पड़ीं। लेकिन अच्छी बात यह है कि इस मूल्य को कम किया जा सकता है।

उपाय यह है कि हम सभी उत्पादक संस्थानों को पूरी तरह से कार्य करने की छूट दें, बशर्ते वे एक सरकारी ‘कोरोना निरीक्षक’ की नियुक्ति के लिए सरकार को आवेदन दें और उसकी सेवाएं हासिल करने के लिए सरकार को धन उपलब्ध कराएं। जैसे आपकी फैक्ट्री में 100 कर्मी काम करते हैं। आप एक कोरोना निरीक्षक की नियुक्ति करा सकते हैं। निरीक्षक की जिम्मेदारी होगी कि वह आपके संस्थान में सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन सुनिश्चित करे। आपको निरीक्षक का वेतन सरकार को देना होगा। ऐसा करने से सरकार पर स्वास्थ्य निरीक्षकों का भार नहीं पड़ेगा और हमारी आर्थिक गतिविधियां चालू हो जाएंगी। सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन भी हो सकेगा। अपने देश में लगभग एक करोड़ सरकारी अध्यापक हैं। जिन विद्यालयों में छात्रों की संख्या कम है उन्हें पूर्णतया बंद किया जा सकता है। इससे उपलब्ध हुए शिक्षकों को वर्तमान संकट की अवधि के लिए कोरोना निरीक्षक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

औद्योगिक, शैक्षिक और अन्य संस्थानों को इन कोरोना निरीक्षकों की देखरेख में खोला जा सकता है। भारतीय रेल के लगभग 16 लाख कर्मचारी हैं। ट्रेनों और स्टेशनों की संख्या को आधा किया जा सकता है। उपलब्ध हुए कर्मियों को कोरोना निरीक्षकों के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। प्रत्येक डिब्बे में एक कोरोना निरीक्षक को नियुक्त किया जा सकता है जो सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का अनुपालन कराए और तदनुसार रेल टिकट का मूल्य बढ़ाया जा सकता है। बसों की भी संख्या कम करते हुए कोरोना निरीक्षक को नियुक्त किया जा सकता है। ऐसा करके हम देश की अर्थव्यवस्था को तत्काल चालू कर सकते हैं। इन उपायों को लागू करने में सरकार पर तनिक भी बोझ नहीं पड़ेगा। एक और उपाय यह है कि हम अपनी जनता की इम्यूनिटी या रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाएं। आयुर्वेद में और हमारी जीवन शैली में हल्दी, तुलसी, नीम, अदरख, मुलेठी आदि के प्रयोग को इम्यूनिटी बढ़ाने वाला बताया गया है।

सरकार जनता को प्रेरित करे कि वह इनका सेवन बढ़ाए। सरकार एक अभियान शुरू करे जिसके अंतर्गत इम्यूनिटी बढ़ाने वाली वस्तुओं का पैकेट बनाकर देश के हर नागरिक के घर पर पहुंचाया जाए। उत्तराखंड सरकार ने मेरे घर पर मुफ्त सैनिटाइजर और मास्क भेजा। इसी प्रकार हल्दी, नीम आदि के पैकेट बनाकर देश के हर परिवार को वितरित किए जाएं तो हमारी इम्यूनिटी बढ़ जाएगी और करोना का संकट कम हो जाएगा। लोग लड़ें कोरोना से बताया जाता है कि गंगा नदी के पानी में विशेष प्रकार के जैविक तत्व होते हैं जो रोगकारक वायरसों को रोकने में प्रभावी हो सकते हैं। अतः पैकेट में गंगाजल की एक शीशी भी पहुंचाई जा सकती है। देश के नागरिक स्वयं कोरोना के संकट से लड़ने में सक्षम हो जाएंगे।

भरत झुनझुनवाला
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here