कोरोना संक्रमण ने भारतीयों के न केवल स्वास्थ्य पर प्रभाव डाला है वरन इसका प्रभाव जीवन शैली व आबो-हवा पर भी पड़ा है। लॉकडाउन में लोगों को घर में रहकर काम करने का अवसर मिला। इस अवसर ने लोगों को मानवता का अहसास कराया। इसी अहसास ने देश में लाखों की तादात में लोगों को आमजन की मदद के लिए सड़कों पर उतार दिया। लोगों ने जरूरतमंदों की जमकर सहायता की। पानी, खाने के पैकेट के साथ साथ सेनेटरी पैड, सेनेटाइजर, मास्क, बच्चों को दूध और अन्य दैनिक उपयोग की खाद्य सामग्री स्वयंसेवियों ने खुले हाथ बांटा न केवल मानव बल्कि लोगों ने आगे बढ़कर पशुओं की भी सेवा की। नगरों में खुले पशुओं को आहार नहीं मिल रहा था। स्वयंसेवी लोगों ने अपनी क्षमता से बढ़कर पशुओं तक की सेवा की। कोरोना संक्रमण का शहरीकरण पर प्रभाव पड़ा है। जो लोग गांव छोड़कर शहरों की तरफ पलायन कर गये थे वे पुन: गांवों की तरफ आ रहे हैं। इससे देश के सामाजिक तंत्र पर भी प्रभाव पड़ा है।
अब यह ऐसे ही रहा तो निश्चय की कारोबार व रोजगार का क्षेत्रीय विकेंद्रीकरण होगा। अभी तक रोजगार व कारोबार के केंद्र तथा अवसर महानगरों तक सिमट गये थे। भविष्य में यदि कारोबार व रोजगार का विकेंद्रीकरण हुआ तो निश्चित ही देश में स्वदेशी उत्पाद का उत्पादन व खपत दोनों ही बढ़ जायेगा। यदि कोविड19 के उपरान्त श्रमिकों के पलायन को अवसर में बदल दिया गया तो निश्चय ही भारत की आर्थिक व सामाजिक तस्वीर कुछ और ही होगी। इन्ही प्रवासी श्रमिकों के आधार पर एक नये आत्मनिर्भर भारत का निर्माण होगा। इससे अपनी अर्थव्यवस्था को भारतीय परंपरा के अनुरूप विकसित करने के लिए पश्चिमी अवधारणाओं को छोड़कर भारतीय अवधारणा को अपनाना होगा। महानगर विकसित होते गये और गांव पिछड़ते चले गये। परिणाम सामने है दशकों से ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में पलायन होता रहा, लेकिन जिमेदारों ने इससे आंखे मूंदे रखा। एकतरफा विकास को विकास नहीं कह सकते। हम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बना सकते हैं। यदि हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हुई तो देश का सपूर्ण आर्थिक परिदृश्य नये रूप में सामने आएगा। जब आर्थिक मंदी आई थी तो भारत पर इसका बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा था।
इसका मुख्य कारण भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी। कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था के साथ हमारे स्वास्थ्य सेवाओं पर अपना प्रभाव डाला है। आज देश की स्वास्थ्य सेवाओं पर सबकी दृष्टि है। स्वास्थ्य सेवाएं कम समय में काफी बेहतर हुई हैं। उप्र में वेंटीलेटर की संख्या जहां सैकड़ों में थी अब हजारों में है। जांच सुविधा भी उन्नत हुई है। चिकित्सकों व पैरामेडिकल कर्मियों के प्रति लोगों का आदर भाव बढ़ा है। कोरोना संक्रमण काल में लोग सरकारी चिकित्सालयों पर अधिक भरोसा कर रहे हैं। कोरोना महामारी ने लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला है। शुरूआत में लोगों को अपना जीवन अनिश्चय लगने लगा था। लगभग हर किसी ने अपने को क्वारंटाइन कर लिया था। अधिकांश में अब कोई मनोदबाव नहीं रह गया है। बस जीवन सैली बदलकर दबाव से मुक्ति पा चुके हैं। कोरोना संक्रमण का हमारे पर्यावरण पर भी प्रभाव पड़ा है। यह प्रभाव सुखद है। अब आबोहवा में ताजगी है। ध्वनि प्रदूषण का स्तर काफी घट गया है। नदियों का जल साफ है। कई परियोजनाएं चलाने के बाद भी गंगा, यमुना का जल साफ नहीं हो रहा था आज वह निर्मल हो गया है।