मिस्टर मोदी, मौके को बर्बाद न करें

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दूसरी लहर की भयावहता ने भारत की कमजोरी सामने ला दी है। यह है हमारी नौकरशाही व्यवस्था, जो संकट का सामना करने के लिए कुशल नहीं है। इससे भी दुख:द यह है कि यह वही व्यवस्था है जो आम आदमी को स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी, बिजली, आदि बुनियादी सार्वजनिक चीजें देने में असफल रहती है।

एक दिन कोरोना चला जाएगा, लेकिन नागरिकों की सड़े हुए संस्थानों का सामना करने की समस्या बनी रहेगी। मोदी ने 2014 में ‘अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार’ का वादा किया था, जो उन्होंने अब तक पूरा नहीं किया है, लेकिन अब शायद कोविड प्रबंधन में शासन की असफलता देखकर वे शासन के सबसे बुरे संस्थानों में सुधार का प्रयास करें। अब भी देर नहीं हुई है।

दूसरी लहर से पहले वित्त मंत्री ने आम बजट पेश किया, जिसका जोर इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च कर नौकरियां पैदा करने पर था। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाया क्योंकि इसे लीक होते सरकारी विभागों के जरिए लागू किया गया, जो हार्डवेयर पर ध्यान देते हैं, जहां रिश्वत होती है। इस तरह हमें ज्यादा सड़कें, पाइप, वायर, बसें मिलती हैं, लेकिन पाइप 24×7 पानी सुनिश्चित नहीं करते, तारों का मतलब बिजली का भरोसा नहीं होता, बसों का मतलब प्रभावी यातायात नहीं होता। हमें आधुनिक, प्रभावी सेवाओं की जरूरत है, जो स्वायत्त, जिम्मेदार और विश्वास योग्य हों।

सफल देशों ने ऐसे संस्थान बनाए हैं। हमारे देश में भी अच्छी मिसालें हैं। नगर यातायात में दिल्ली मेट्रो, एलईडी लाइटिंग बढ़ाने में ईईएसएल, दिल्ली, कोलकाता और मुंबई की बिजली कंपनियां, पानी और सैनिटेशन में शिमला का जल प्रबंधन निगम लिमिडेट (एसजेपीएनएल)।

शिमला की कहानी हैरतअंगेज है। यहां पानी की सप्लाई की बेहद कमी रहती थी। लोग टैंकर पर निर्भर रहते थे। 2018 में वहां पीलिया फैला, तब हफ्ते में एक बार पानी आता था। पर्यटक भाग गए, होटल बंद हो गईं। शहर भूतिया लगने लगा। नगर निगम ने बुद्धिमानी दिखाई। उसने पानी और नालियों के प्रबंधन, सेवा के लिए जवाबदेही और बाहरी ऋणदाताओं से वित्त लेने के लिए स्वायत्त यूटिलिटी कंपनी एसजेपीएनएल स्थापित की। एसजेपीएनएल ने नगर निगम के कई विभागों की जगह ली। इसके सीईओ को बजट दिया गया और राजनीतिक दखल से आजादी दी गई।

एसजेपीएनएल ने जल्द लीक पाइप ठीक किए, पुराने पंप सुधारे जिन्हें हजारों फीट नीचे से पानी लाना होता था, मीटरों की निगरानी की, गरीब उपभोक्ताओं को सब्सिडी दी, उपभोक्ताओं को पानी बचाने के लिए जागरूक किया। उसने गटर में भी बड़े बदलाव किए। जल्द शिमला को अविश्वसनीय सफलता मिली। वहां परीक्षण वाले तीनों वार्ड में 24×7 पानी आने लगा और बाकी शहर में भी सप्लाई बेहतर हुई। इसी तरह सफाई व्यवस्था भी दुरुस्त हुई। पर्यटक और बिजनेस वापस आ‌ने लगे। शिमला को ‘रहने लायक छोटे शहरों’ की सूची में पहला स्थान मिला।

शिमला की सफलता के पीछे शासन में बदलाव था। पानी और सफाई का प्रबंधन कई सरकारी विभागों से कराने की बजाय, शहर ने स्वायत्त सीईओ के साथ आधुनिक सेवा बनाई। सीईओ ने पानी चोरी नहीं होने दिया, पूंजी बाजार से भविष्य में भी वित्त पाने के लिए विश्वसनीय बनने हेतु पानी के रेट बढ़ाए और पाया कि मध्यमवर्ग पानी मिलने के भरोसे के लिए ज्यादा चुकाने तैयार था।

भारत को इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रबंधन के लिए एसजेपीएनएल जैसे संस्थानों की जरूरत है। मायने नहीं रखता कि ये सार्वजनिक हों या निजी या सार्वजनिक-निजी भागीदारी वाले। जरूरी है इन्हें स्वायत्त बनाकर राजनीति व नौकरशाही के दबाव से सुरक्षित रखना। प्रधानमंत्री का मंत्र होना चाहिए, ‘पाइप मत सुधारो, उन संस्थान को सुधारो जो पाइप सुधारेंगे।’

वित्त मंत्री को ऐसे संस्थागत सुधारों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर को उदारता से देना चाहिए। उन्हें विशिष्ट परियोजनाओं को निधि न देकर, परियोजनाओं को निष्पादित करने के लिए एसजेपीएनएल जैसी प्रभावी, जवाबदेह संस्थाओं को निधि देना चाहिए। इससे उन्हें भीख का कटोरा लिए खड़े सरकारी विभागों से मुक्ति मिलेगी।

इन सुधारों में हार किसकी होगी? नौकरशाहों, नेताओं और संघों की, जो दुर्जेय हित वाले समूह हैं। राजनेता किसानों को मुफ्त बिजली नहीं दे पाएंगे। नौकशाही को तो सुधार से एलर्जी है। चूंकि आधुनिक संस्थानों के कर्मचारी काम की नई नीतियां अपनाएंगे, यूनियन भी हाशिये पर चली जाएंगी। तीनों के हित छीनना आसान नहीं होगा।

खुशकिस्मती से लोग सुधारकों के पक्ष में होंगे। भारत में 24 घंटे बिजली-पानी मिलना निर्वाण की तरह है। हालिया कृषि सुधारों का सबक यह है कि सुधार लागू करने से पहले, इन्हें लोगों को बेचना जरूरी है, लोगों को अपने पक्ष में लाना जरूरी है। इस भयानक कोविड संकट में सुधार अजीब लग सकते हैं, लेकिन सुधार आमतौर पर संकट में ही होते हैं। तो, प्रधानमंत्री इस संकट को बर्बाद न करें!

यह सुधार का वक्त है

एक दिन कोरोना चला जाएगा, लेकिन नागरिकों की सड़े हुए संस्थानों का सामना करने की समस्या बनी रहेगी। यह वक्त सुधार करने का है। प्रधानमंत्री का मंत्र होना चाहिए, ‘पाइप मत सुधारो, उन संस्थान को सुधारो जो पाइप सुधारेंगे।’ लोग सुधारकों के पक्ष में होंगे। हालिया कृषि सुधारों का सबक यह है कि सुधार लागू करने से पहले लोगों को अपने पक्ष में लाना जरूरी है।

गुरचरण दास
(लेखक वरिष्ठ और स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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