गत 2 मई 1921 को सत्यजीत रे का जन्म हुआ। महामारी के कारण बंगाल में जन्मशती वर्ष धूमधाम से मनाया नहीं जा सकता। सत्यजीत राय फंतासी फिल्म ‘गोपी गायेन बाघा बायेन’ की अगली कड़ी ‘हीरक राजार देशे’ बनाई गई। संदीप राय का कहना है कि अगर उनके पिता आज होते तो वे ‘हीरक राजार देशे’ का नया संस्करण बनाना पसंद करते। ज्ञातव्य है कि ‘गोपी गायेन बाघा बायेन’ इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल की आलोचना करने वाली साहसी फिल्म थी। सत्यजीत रे का विरोध नारेबाजी नहीं होता था वह सड़क पर आकर हुल्लड़ नहीं मचाते।
‘गोपी गायेन बाघा बायेन’ के दोनों गायक-वादक अत्यंत बेसुरे लोग हैं। वे अपनी सुरहीनता से अनजान हैं। आवाम उनकी चेष्टाओं पर हंसता है। वह इस हंसने को अपनी प्रशंसा समझते हैं। ऐसे मुगालते सभी कालखंड में लोगों को हुए हैं। जंगल में इन बेसुरे लोगों को एक जादूगर मिलता है। यह संभव है कि वह जादूगर यक्ष रहा होगा। उसके आशीर्वाद से दोनों पात्र सुरीले हो जाते हैं। सुरीले होने के पश्चात वे दुष्ट राजा को हटाकर अच्छे राजा को सिंहासन पर बैठने के लिए किए गए संघर्ष में जुड़ जाते हैं। उन्हें सफलता भी मिलती है। ‘हीरक राजार देशे’ में भी इसी तरह दुष्ट राजा के खिलाफ लड़ाई जाने वाली संघर्ष की कथा है।
अंग्रेजों ने भारत में प्रवेश कोलकाता से किया था। बंगाली समाज में कुछ सच्चे लोगों ने अपने अंग्रेजी भाषा के ज्ञान के कारण पाश्चात्य जीवन मूल्यों को अपनाते हुए भी अपनी माटी के संस्कारों को विस्मृत नहीं किया। इस वर्ग ने पूर्व और पश्चिम के मूल्यों का सिन्थेसिस किया। एक तरह से उदारता की मिक्सी में मूल्य इस तरह मिल जाते हैं कि आप उनके उद्गम को भी नहीं जान पाते।
बंगाल में पूर्व पश्चिम मूल्यों को मानने वाले वर्ग को भद्रलोक कहा गया। रबीन्द्रनाथ टैगोर और सत्यजीत रे भी भद्रलोक के व्यक्ति हैं। सत्यजीत रे पर कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि उनकी फिल्मों ने राजनीति की उपेक्षा की है। यह मिथ्या आरोप है। उनकी ‘प्रतिद्वंदी’, ‘सीमाबद्ध’ इत्यादि सभी फिल्मों में राजनीतिक संकेत हैं। गरीबी राजनीति द्वारा बनाया गया प्रोडक्ट है।
नेता उद्योगपतियों रिश्तों ने ही सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया। एक बार श्रीमती नरगिस दत्त ने राज्यसभा में कहा कि सत्यजीत रे भारत की गरीबी को अपनी फिल्मों में प्रस्तुत करके विदेश में पुरस्कार प्राप्त करते हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने नरगिस से अपना बयान वापस लेने को कहा। संभवत इसी प्रसंग से इंदिरा गांधी को यह चुनावी नारा मिला कि ‘वह कहते हैं इंदिरा गांधी हटाओ मैं कहती हूं गरीबी हटाओ।’
दर्शन पूंजीवाद के सारे कार्यकलाप चलाने के लिए गरीब लोगों की आवश्यकता है। हम इतना ही कह सकते हैं कि अमीरी और गरीबी के बीच की खाई को कम किया जा सकता है। सत्यजीत रे मानवीय करुणा के गायक रहे हैं। उनकी फिल्मों का श्रेणीकरण कर देने से उनके आस्वाद में कोई फर्क नहीं पड़ता। बंगाल की मिट्टी के बने कुल्हड़ में मिष्टी का स्वाद ही अलग होता है।
मिष्टी अनेक जगह बनाई जाती है परंतु वह बात नहीं बनती। दर्शन सांस्कृतिक परंपराओं का सरलीकरण करने से वैचारिक धुंध नहीं मिटती। गौरतलब है राजस्थान के विजयदान देथा की एक रचना से प्रेरित ‘दुविधा’ मणि कौल ने बनाई। बाद में अमोल पालेकर ने इसी रचना से प्रेरित होकर ‘पहेली’ बनाई। एक बारात दुल्हन लेकर लौट रही है। वृक्ष के नीचे आराम किया जाता है।
वृक्ष पर बैठा यक्ष, दुल्हन के सौंदर्य से मोहित हो जाता है। विवाह के बाद पिता की कहने से पुत्र व्यापार के लिए बाहर जाता है। यक्ष पुत्र की काया में प्रवेश करता है। पत्नी जान जाती है परंतु यक्ष उससे प्रेम करता है जबकि पति तो धन कमाने गया था। यह बड़ी रोचक फिल्म रही। सुना है कि भद्रलोक का विभाजन किया जा चुका है। केक चाकू से काटा जाता है परंतु मिष्टी नहीं काटी जा सकती।
जयप्रकाश चौकसे
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)