कुप्रथाएं और अंधविश्वास जंगली घास की तरह

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श्याम बेनेगल ने ब्लेज कंपनी के लिए विज्ञापन फिल्में बनाई और इसी कंपनी की सहायता से अपनी कथा फिल्म ‘अंकुर’ बनाई। जिसमें शबाना आजमी को अवसर दिया जो कालांतर में कलाकारों की ‘गॉड मदर’ सिद्ध हुईं। ज्ञातव्य है कि शबाना केंद्रित ‘गॉड मदर’ विनय शुक्ला ने बनाई थी। श्याम बेनेगल सिनेमा का मूल स्वर हमेशा शोषण की मुखालफत करना रहा है। सामंतवाद से जन्मी कुप्रथाओं को उन्होंने उजागर किया। यह कितने आश्चर्य की बात है कि सांस्कृतिक जीवन मूल्यों के विकास और प्रचार में लंबा समय लगता है, परंतु कुप्रथाएं और अंधविश्वास जंगल की घास की तरह फैलते हैं। फैल जाने के मामले में कोरोना वायरस ने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।

श्याम बेनेगल ने बोमन ईरानी अभिनीत फिल्म ‘वेलडन अब्बा’ में भ्रष्टाचार के हर वर्ग और हर सतह तक फैल जाने को प्रस्तुत किया है। ग्रामीण क्षेत्र में जन्मा मुख्य पात्र शहर में सरकारी अफसर का ड्राइवर है। वह 15 दिन का अवकाश लेकर घर गया और तीन माह बाद लौटा तो उसे बर्खास्त करने का फैसला लिया जाता है। वह निवेदन करता है कि अफसर की पुणे तक की यात्रा में वह अपनी मुसीबतों के बारे में अफसर को बताना चाहता है। इस तरह उसे स्पष्टीकरण देने का एक और अवसर मिल जाएगा। वह बताता है कि गांव में उसका 2 एकड़ का खेत है परंतु पानी का अभाव था। एक मित्र की सलाह पर वह सहकारिता बैंक से कर्ज लेने के लिए जाता है।

बैंक के चपरासी से लेकर आला अफसर तक सब रिश्वत लेते हैं। बैंक से कर्ज कुएं की खुदाई की विभिन्न सतहों पर किस्त दर किस्त मिलता है। खुदाई कार्य का रिकॉर्ड फोटोग्राफ्स द्वारा रखा जाता है। कोई भी विभाग कुछ नहीं करता परंतु हर किस्त की अदायगी पर अपना हिस्सा ले लेता है। नतीजा यह है कि कुआं कागज पर मौजूद है परंतु यथार्थ में नहीं।

ग्राम पंचायत की मुखिया एक महिला है परंतु सारे आदेश उसका पति देता है। यह महिलाओं के लिए आरक्षित सीट के कारण किया जाता है। इस काल्पनिक कुएं का पानी मीठा है। यह रपट भी दर्ज की जाती है। इस मनोरंजक व्यंग फिल्म में फर्जी कुआं चोरी चला जाता है। इस प्रकरण को लेकर विधानसभा में दोनों दल एक-दूसरे पर बड़ा घपला करने का आरोप लगाते हैं। मुख्य पात्र भूख हड़ताल पर बैठ जाता है। वह अपने कुएं के पानी से ही भूख हड़ताल समाप्त करेगा। मीडिया में आ जाने के कारण रातों-रात कुआं खोदा जाता है। मुख्यमंत्री उद्घाटन के लिए पहुंच जाते हैं। फिल्म के अंतिम सीन में मंच ही टूट जाता है। संकेत स्पष्ट है कि संसार को ही भ्रष्टाचार लील जाएगा।

फिल्म में स्थिर छायांकन में ट्रिक के इस्तेमालका यह हाल है कि मुख्यमंत्री की तस्वीर बराक ओबामा के साथ गढ़ी गई है। फिल्म में इस प्रसंग को भी प्रस्तुत किया गया है कि खाड़ी के देश का अमीर आदमी भारत की गरीब कन्या से विवाह करता है। परंतु उसे दासी की तरह रखा जाता है या मांस की मंडी में बेच दिया जाता है। फिल्म में नायक के आलसी और भ्रष्ट जुड़वा भाई का पात्र भी रखा गया है। यह प्रस्तुत किया जाता है कि भ्रष्टाचार दो मुंह वाले सांप की तरह है।

अपनी किताब ‘गांधी और सिनेमा’ लिखने के पहले एक सत्य घटना की जानकारी प्राप्त हुई कि गुजरात के एक कस्बे में साधन संपन्न विधवा तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए आरक्षित धन से गांव में हरिजनों के लिए एक कुआं बनवाती है। ठाकुरों और बामन के कुआं से हरिजन पानी नहीं ले पाते थे। विधवा को कुएं के जल में गंगाजल होने का एहसास होता है। उसे लगता है कि उसकी तीर्थ यात्रा भी हो गई है। खबर है कि पंजाब में हड़ताल पर बैठे किसानों को पानी उपलब्ध कराने के लिए बोरिंग की जा रही है और कुएं का निर्माण हो रहा है। कूलर भेज दिए गए हैं। यह लड़ाई दीये और तूफान की है।

खिड़की से आकाश का आकलन नहीं: आदित्य चोपड़ा और निर्देशक मनीष शर्मा की फिल्म ‘टाइगर 3’ के लिए सलमान खान और कटरीना कैफ को दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण कोरिया से आए विशेषज्ञ तैयार कर रहे हैं और ये कलाकार कड़ा प्रशिक्षण ले रहे हैं ताकि किरदार में पूरी तरह से उतर सकें। गौरतलब है कि इस फिल्म की शूटिंग भी विदेश में होगी। ज्ञातव्य है कि ‘एक था टाइगर’ में दो पड़ोसी दोस्त-दुश्मन देशों के जासूस एक मिशन में एक-दूसरे से प्रेम करने लगते हैं। ‘टाइगर भाग दो’ में कैद की गई नर्सों को छुड़ाने के प्रयास की कथा प्रस्तुत की गई थी।

‘भाग-3’ में भी अब विश्व शांति के लिए 2 जासूसों की संघर्ष कथा प्रस्तुत की जा सकती है। इस तरह की फिल्मों में एक्शन निर्देशक और नृत्य निर्देशक फिल्म की अधिकांश शूटिंग करते हैं। मूल निर्देशक को चंद सीन शूट करने होते हैं परंतु खास बात यह है कि सारे विभाग, निर्देशक के आकल्पन के अनुरूप ही काम करते हैं।

अमिताभ बच्चन और रेखा अभिनीत फिल्म फिल्म ‘मि.नटवरलाल’ में खलनायक का प्रशिक्षित शेर, गांव वालों को डरा कर रखता है और उन सभी को बेगारी के लिए बाध्य करता है। फिल्मों की शूटिंग में शेर का इस्तेमाल लंबे समय से किया जा रहा है। हॉलीवुड की फिल्म ‘टू ब्रदर्स’ में जुड़वां शेरों में एक शेर को शहरी लोग पकड़ कर सर्कस वालों को बेच देते हैं। कुछ समय बाद शेर का दूसरा भाई भी पकड़ा जाता है।

इत्तेफाकन सर्कस में बिछुड़े हुए दो शेर भाइयों का मिलन होता है। वे आपसी चर्चा करके एक दिन सर्कस की कैद भरी जिंदगी से भागने में सफल हो जाते हैं। जुड़वां भाइयों के बचपन में बिछुड़ने और जवानी में मिलने का लॉस्ट एंड फाउंड वाला फॉर्मूला शशधर मुखर्जी ने प्रस्तुत किया था। उनके शिष्य नासिर हुसैन ने ताउम्र इसी सूत्र का पालन किया।

नासिर हुसैन की बेटी के पुत्र मंसूर खान और उनके भाई के पुत्र आमिर खान ने इस लीक से हटकर फिल्में बनाईं। मंसूर खान ने अपनी सारी संपत्ति बहन के बेटे के नाम कर दी और स्वयं एक सुदूर जगह बस गए। अब वे वहां ऑर्गेनिक खेती करते हैं। उनके फॉर्म हाउस में उन्होंने स्वयं बिजली नहीं ली है। कोई टेलीविजन और रेडियो के उपयोग का प्रश्न ही नहीं उठता। वे प्रकृति की गोद में रहते हैं। पुत्र का पिता से अलग प्रकार का काम करना ही विकास को जन्म देता है।

भौतिकता में आकंठ आलीन पिता का पुत्र आध्यात्मिकता को साधने के रास्ते पर चल पड़ता है। भौतिक सहूलियतों को पूरी तरह जीने के बाद ही आध्यात्मिकता का द्वार खुलता है। एक अंग्रेजी कथा ‘द डोर इन द वॉल’ में इसका संकेत दिया गया है। बंद कमरे की छोटी सी खिड़की से आकाश को देखकर उसकी व्यापकता का आकलन नहीं किया जा सकता।

केदार शर्मा की अशोक कुमार, मीना कुमारी, प्रदीप कुमार अभिनीत फिल्म ‘चित्रलेखा’ के लिए साहिर लुधियानवी ने गीत लिखा है….

‘संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे, इस लोक को भी अपना न सके, उस लोक में भी पछताओगे। ये पाप है क्या, ये पुण्य है क्या, रीतों पे धर्म की मुहरें हैं हर युग में बदलते धर्मों को कैसे आदर्श बनाओगे। ये भोग भी एक तपस्या है, तुम त्याग के मारे क्या जानो, अपमान रचयिता का होगा, रचना को अगर ठुकराओगे। हम कहते हैं ये जग अपना है, तुम कहते हो झूठा सपना है, हम जन्म बिता कर जाएंगे, तुम जन्म गंवा कर जाओगे।’

हमने अपने जंगल गंवा दिए कई प्रजातियां विलुप्तप्राय हैं। अब जंगल ही नष्ट कर दिए तो शेर केवल सिनेमा में ही देखे जा सकते हैं। अब दहाड़ने का काम केवल नेता कर रहे हैं। गौरतलब है कि हॉलीवुड की फिल्म निर्माण कंपनी एमजीएम की फिल्मों का प्रारंभ दो शेरों के दहाड़ने के सीन से ही होता रहा है।

जयप्रकाश चौकस
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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