वृक्षारोपण के बाद देखरेख भी जरूरी

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प्रदेश में हर बार की तरह इस बार भी पौधरोपण अभियान चलाया जायेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसका शुभारभ हस्तिनापुर से करेंगे। यहां आध्यात्मिक व पौराणिक महत्व के पौधे रोपे जायेंगे। प्रदेश के बड़े शहर प्रदूषण के प्रभाव से जूझ रहे हैं। इसके लिए प्रदूषण का उत्सर्जन करने वाले घटकों के साथ-साथ वृक्षों की अंधाधुंध कटाई भी जिम्मेदार है। शहरों में सड़कों व अन्य विकास कार्यों के लिए पेड़ों की धड़ल्ले से कटाई की जाती है। पेड़ों को काटते समय पर्यावरण का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा जाता। अन्य प्रदेशों में विशाल वृक्षों को विशेष तकनीक अपनाकर अन्यत्र प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। परन्तु उप्र में अभी यह तकनीक प्रचलित नहीं है। राजमार्गों के चौड़ीकरण व शहरों की सड़कें चौड़ी करने के नाम पर अंधाधुंध पेड़ों को काटा गया। राजधानी लखनऊ का ही उदाहरण लें तो यहां भी सड़कें छायादार इमली के पेड़ों से आच्छादित थीं। यही स्थिति लखनऊ से बाराबंकी, सीतापुर, उन्नाव के राजमार्गों की थी। परन्तु ट्रेफिक के दबाव के कारण सड़कों को चौड़ी करने के नाम पर घने व छायादार इमली के वृक्षों को काट दिया गया। कई दशक से वन महोत्सव या वृक्षारोपण अभियान के तहत लाखों अब तो करोड़ों पौधों का रोपण होता है।

जिस हिसाब से प्रदेश में दो दशकों से वृक्ष रोपे जा रहे हैं उस हिसाब से तो अभी तक उप्र को वृक्षों से आच्छादित हो जाना चाहिये था। परन्तु ऐसा क्यों नहीं हुआ इस पर भी प्रदेश सरकार को ध्यान देना चाहिये। उप्र में वनावरण की स्थिति अत्यन्त दयनीय है। प्रदेश के क्षेत्रफल का 6.15 प्रतिशत क्षेत्र में ही वनावरण है। वृक्षारोपण के तहत केवल 3.04 प्रतिशत क्षेत्र में ही वनावरण है। दोनों को मिलाने पर 9.19 प्रतिशत क्षेत्रफल में ही वनावरण व वृक्षावरण है। यदि दशकों से अभियान चलाकर राज्य सरकारें वृक्षारोपण कराती रही तो धरातल पर इतनी दयनीय स्थिति क्यों है। सरकार को वृक्षारोपण के बाद पौधों के देखरेख की जिम्मेदारी भी सौंपनी चाहिए। जिनकी लापरवाही हो उन्हें इसका दण्ड भी मिलना चाहिए। मुलायम सिंह की सरकार ने निर्णय लिया था कि वृक्षारोपण में बड़े पौधे रोपे जायेंगे। बड़े पौधे रोपे भी गये परन्तु बड़े पौधों की आपूर्ति कम थी। जिसकी वजह से यह कवायद आगे नहीं बढ़ सकी। अब अभियान के दौरान जोरशोर से पौधे लगाये जाते हैं जो कि अधिकांशत: देखरेख के अभाव में सूख जाते हैं। वृक्षारोपण के दौरान एक तकनीकी ऋुटि भी की जाती है वह है पौधे को लगाते समय गड्ढ़ा कम गहराई का खोदा जाता है। जमीन के नीचे गहराई में नमी होती है। नमी न मिलने के कारण पौधा सूख जाता है। इसका कारण यह है कि हम अपना सामाजिक दायित्व नहीं निभाते।

लोग घरेां के सामने ट्री गार्ड में लगे पौधों को पानी तक नहीं देते जबकि पौधे हर व्यक्ति के लिए लाभदायक है। इसके अतिरिक्त असामाजिक तत्व पौधों के ट्री गार्ड तक नहीं देते जबकि पौधे हर व्यक्ति के लिए लाभदायक है। इसके अतिरिक्त असामाजिक तत्व पौधों के ट्री गार्ड तक उखाड़ ले जाते है। विकास कार्यों या कृषि कार्य के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जाती है। प्रदेश में वन क्षेत्र के बाहर वृक्षारोपण में 100 वर्ग किलोमीटर की कमी आयी है। प्रदेश सरकार का सराहनीय कदम यह है कि पौधे लगाने के बाद सरकार भारतीय वन सर्वेक्षण से द्वितीय पक्ष निरीक्षण भी करायेगी। अगर वृक्षारोपण के बाद पौधों की देखरेख हुई तो निश्चित ही वनावरण का क्षेत्र बढ़ेगा। वातावरण में कार्बनडाई ऑक्साइड स्तर कम किया जाना अति आवश्यक है। इसके लिए प्रदेश सरकार का रकबा बढ़ाना अति आवश्यक है। प्रदेश सरकार का अगर ऐसा ही प्रयास रहा व जनता का सहयोग मिला तो हम 24 प्रतिशत के राष्ट्रीय वनावरण के लक्ष्य को प्राप्त कर लेगी। इसके लिए एक बात स्पष्ट है कि वृक्षारोपण बढ़ाना केवल सरकार का ही कार्य नहीं है। हमें अपने सामाजिक दायित्व के निर्वहन के अन्र्तगत वृक्षारोपण करना व वृक्षों की रक्षा करना चाहिए। जो व्यक्ति या संस्थायें वृक्षारोपण में संलग्न हैं उन्हे सामाजिक स्तर व सरकारी स्तर पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

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