अब कोई पूरी बात तो सुने

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पिछले दिनों मेरे पास तकरीबन 40 वर्ष की एक महिला पेशंट आईं। वह और उनके पति बेंगलुरू की सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में काम करते हैं, लेकिन वर्क फ्रॉम होम के चलते दोनों अपने घर मेरठ आ गए। मेरठ आने के बाद से उनकी पूरी लाइफस्टाइल ही बदल गई। न्यूलियर फैमिली से जॉइंट फैमिली में आ गई हैं, तो अब उन्हें तरहतरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियां होने लगीं। ऐसे ही दूसरे मामले में तीस-पैंतीस साल की एक महिला की शिकायत यह थी कि उन्हें रह-रहकर ऐसे ख्याल आते हैं कि अब या होगा? लाइफ कैसे चलेगी? कोरोना कब जाएगा? तीसरी लहर में या बच्चों पर सबसे अधिक फर्क पड़ेगा? वह मुझसे अपने बच्चों की सुरक्षा की चिंता बताने लगीं। कोरोना महामारी के लंबा खिंचने की वजह से मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर आघात हुआ है। इसके महत्वपूर्ण कारण परिवार, रिश्तेदारी या पड़ोसियों में मौतें होना, काम-धंधा बंद होना, नौकरी छूट जाना, दिनचर्या में बदलाव आना, एडजस्ट करने में दिक्कत आना और भविष्य अंधकारमय नजर आना आदि हैं। पिछले कुछ महीनों से रोजाना दस से पंद्रह मरीज ऐसे आ रहे हैं जो या तो कोरोना से सीधे प्रभावित हुए हैं, या उसका डर उनके मन में इतना ज्यादा बैठ गया है कि उन्हें मानसिक परेशानियां होने लगी हैं।

इसके चलते थकान, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, उदासी, बेचैनी, घबराहट, अकेलापन, मेमोरी लॉस जैसी दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं। इस बुरे दौर से निकलने के लिए मजबूत इच्छाशति की जरूरत है। हमें हमेशा दिमाग में यह बात रखनी चाहिए कि सब-कुछ ठीक हो जाएगा। ऐसे लोगों से बात करनी चाहिए, जिन्होंने कोरोना को हराया है। हमें अपने खान-पान और नींद का विशेष ध्यान रखना चाहिए और योग, मेडिटेशन, इनडोर गेस या फिर अपनी रुचि के अनुसार बागवानी में समय व्यतीत करना चाहिए। चाहें तो अपनी रुचि के अनुसार कोई ऑनलाइन कोर्स भी जॉइन कर सकते हैं। ये चीजें नकारात्मक सोच से हटाकर हममें एक नया जोश और नई उमंग भर देती हैं। ऐसे ही एक 40 साल के सज्जन मेरे पेशंट हैं। उनको इन दिनों यह चिंता सताने लगी है कि उनकी नौकरी चली जाएगी। उनके घरवालों का कहना है कि सब- कुछ तो ठीक ठाक चल रहा है, लेकिन इनके कुछ दोस्तों की नौकरी पिछले दिनों चली गई, जिसके बाद से इनमें ऐसी चिंता और नकारात्मक सोच ने घर कर लिया है। इस तरह के मामलों में हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम अपनी भावनाओं को न दबाएं। वहीं घरवालों को ऐसे लोगों की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए, ताकि उनके अंदर के भाव बाहर निकल सकें।

जो लोग अकेले रहते हैं, उन्हें इस तरह की भावनाओं को अपने दोस्तों या दूर-दराज के रिश्तेदारों से विडियो कॉल के माध्यम से व्यत करना चाहिए। कॉमेडी मूवीज, टीवी या गाने भी सुन या देख सकते हैं। थोड़े टाइम के लिए अपनी बालकनी या छत पर जाकर सूर्य की रोशनी में भी बैठना चाहिए। अगर इन चीजों से परेशानियों का हल ना हो, तो मनोचिकित्सक की सलाह लेने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। आजकल सलाह और काउंसलिंग ऑनलाइन चल रही हैं, जिसमें किसी को यह खतरा भी नहीं रहता कि उसे कोरोना हो जाएगा। बहुत से लोग किसी न किसी वजह से मनोचिकित्सकों के पास जाने में संकोच करते हैं, उनके लिए यह माध्यम वरदान साबित हो सकता है। काउंसलिंग और दवाइयों का बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बहुत से लोग मनोचिकित्सक के पास जाने से इसलिए भी संकोच करते हैं कि अगर उनकी दवाइयां शुरू हुईं तो उनसे नींद बहुत आएगी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। इस तरह के मामलों में हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम अपनी भावनाओं को न दबाएं।

वहीं घरवालों को ऐसे लोगों की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए, ताकि उनके अंदर के भाव बाहर निकल सकें। जो लोग अकेले रहते हैं, उन्हें इस तरह की भावनाओं को अपने दोस्तों या दूर-दराज के रिश्तेदारों से विडियो कॉल के माध्यम से व्यत करना चाहिए। कॉमेडी मूवीज, टीवी या गाने भी सुन या देख सकते हैं। थोड़े टाइम के लिए अपनी बालकनी या छत पर जाकर सूर्य की रोशनी में भी बैठना चाहिए। आधुनिक दवाइयों के आ जाने के बाद से नींद और आलस्य जाता रहा है। यह बीमारियां भी शारीरिक बीमारियों की तरह बिलकुल ठीक हो जाती हैं, लेकिन हमें समय नहीं गंवाना चाहिए। कोरोना काल में शारीरिक ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य को भी मजबूत रखने की जरूरत है, तभी हम इस लड़ाई में विजयी होंगे। कोरोना ने सारी जनसंया पर, सबकी सोच पर असर डाला है। इसका सबसे बड़ा कारण हर इंसान का अलग-थलग पड़ जाना है। इसीलिए शारीरिक रूप से दूर रहते हुए भी मानसिक रूप से जुड़े रहना महत्वपूर्ण है।

डॉ. विकास सैनी
(लेखक मनोचिकित्सक हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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