अगाह अगाह करते बामुश्किल छ: महीने ही बीते हैं । पता नहीं बाक़ी के छ: महीने कैसे बीतेंगे । इस साल कुछ अच्छा भी होगा, ऐसी उम्मीद अब धूमिल ही होती जा रही है । सुबह सुबह समाचार मिला कि टिड्डी दल ने गुडग़ांव में धावा बोल दिया है । यह टिड्डी दल इतना विशाल है कि दस किलोमीटर लंबाई और छ: किलोमीटर चौड़ाई में फैला हुआ है । अनुमान है कि इसमें कम से कम साठ लाख टिड्डियां होंगी । यह टिड्डियां कब कहाँ रूख करेंगी कहा नहीं जा सकता मगर जिस दिशा में यह बढ़ रही हैं उसके हिसाब से जहां भी ये जाएंगी तबाही ही मचाएंगी और पहले से ही दु:खी किसान को और बर्बाद करेंगी। पता नहीं इन टिड्डियों ने भी यही समय क्यों चुना क़हर बरपाने के लिये ? दो दिन पहले आसमानी बिजली गिरने से सवा सौ लोगों के मरने का समाचार अख़बारों में था। बेशक कोई बड़ी दुर्घटना नहीं हुई मगर हर हफ़्ते भूकम्प के झटके भी लग रहे हैं । आशंका जताई जा रही है कि कोई बड़ा भूकम्प भी आ सकता है ।
बंगाल और उड़ीसा में चक्रवात अभी कुछ दिन पहले तबाही मचा कर गुजऱा है । उधर, ऐसा पहली बार ही लग रहा है कि देश चहुँओर से घिर गया है । तमाम प्रयासों के बावजूद सीमा पर चीन अपनी विस्तारवादी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहा । भारत का रूख भी कड़ा है । अनुभवी लोग युद्ध की आशंका जता रहे हैं । यदि एसा हुआ तो नीली छतरी वाला ही जानता है कि कितनी तबाही होगी ? पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहा और रोज़ाना बोर्डर पर बमबारी कर रहा है । धारा 370 हटने और राज्य के पुनर्गठन के बाद कश्मीर में शांति की उम्मीद थी मगर रोज़ाना ही आतंकियों से मुठभेड़ वहां हो रही है । नेपाल जैसा पिद्दी देश भी अपने नक्शे में भारत के इलाक़े को दर्शा कर आंख दिखा रहा है । सुना है कि हमारे रहमो करम पर रहने वाले भूटान ने भी हमारा पानी रोक लिया है । कोरोना का तो कुछ पूछिये ही मत । दुनिया भर में इसके मरीज़ एक करोड़ होने को हैं तो भारत में भी यह पांच लाख को पार कर गए हैं ।
कुल मरीज़ों के मामले में हम चौथे नम्बर पर हैं और आशंका व्यक्त की जा रही है कि जल्दी ही रशिया को पीछे छोड़ कर हम तीसरे नम्बर पर पहुंच जाएंगे । कोरोना से मृत्यु के मामले में हम आठवें स्थान पर हैं और नये मरीज़ मिलने के मामले में भी हम केवल दो देशों से पीछे हैं। हमें उम्मीद थी कि लाकडाउन लगा कर हम कोरोना पर क़ाबू पा लेंगे मगर स्वयं लॉकडाउन ही भयानक त्रासदी बन गया। करोड़ों मज़दूर भूखे-प्यासे पैदल अपने घरों की ओर चल दिये और लगभग वही हालात सड़कों पर दिखने लगे जो बंटवारे के समय बन गये थे। करोड़ों लोगों की नौकरी छूट गई और करोड़ों का व्यवसाय चौपट हो गया। मुल्क का आर्थिक भूगोल ऐसा बिगड़ा है कि पता नहीं कितने सालों में जाकर स्थितियां ठीक होंगी। अब आप ही बताइये ऐसे मनहूस साल को भला कौन पसंद करेगा और नहीं चाहेगा कि यह साल जल्दी ख़त्म हो जाये मगर हमारे चाहने से भला क्या होगा? हम तो बस यही दुआ कर सकते हैं कि 2020 जा जा जा ।
राकेश शर्मा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)