धैर्य से काम लेने में ही समझदारी है

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समस्त धर्म के शास्त्रों का यही उपदेश है कि संकट के समय में जो धैर्य के मार्ग को नहीं छोड़ते वह सदैव सफल होते हैं। कुछ लोग बुराई को देख कर घबरा जाते हैं और मुसीबत देखकर अपना साहस छोड़ देते हैं, वह जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाते, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग जो धैर्यशील होते हैं वो व्याकुल नहीं होते और कुछ समय बाद सामने आने वाली सारी समस्याएं और दुख खुद ही खत्म हो जाते हैं। इस बारे में महात्मा बुद्ध का एक प्रसंग है जिसमें एक सीख मिलती है। एक बार महात्मा बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ एक गांव में भ्रमण कर रहे थे। गांव में घूमते हुए काफी देर हो गई थी। बुद्ध जी को काफी प्यास लगी थी। उन्होनें अपने एक शिष्य को गांव से पानी लाने की आज्ञा दी। जब वह शिष्य गांव में अंदर गया तो उसने देखा वहां एक नदी थी जहां बहुत सारे लोग कपड़े धो रहे थे कुछ लोग नहा रहे थे तो नदी का पानी काफ़ी गंदा सा दिख रहा था। शिष्य को लगा कि गुरु जी के लिए ऐसा गंदा पानी ले जाना ठीक नहीं होगा, ये सोचकर वह वापस आ गया। महात्मा बुद्ध को बहुत प्यास लगी थी इसीलिए उन्होनें फिर से दूसरे शिष्य को पानी लाने भेजा। कुछ देर बाद वह शिष्य लौटा और पानी ले आया। महात्मा बुद्ध ने शिष्य से पूछा कि नदी का पानी तो गंदा था फिर तुम साफ पानी कैसे ले आए। शिष्य बोला की प्रभु वहाँ नदी का पानी वास्तव में गंदा था लेकिन लोगों के जाने के बाद मैंने कुछ देर इंतजार किया। और कुछ देर बाद मिट्टी नीचे बैठ गई और साफ पानी उपर आ गया। बुद्ध यह सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और बाकी शिष्यों को भी सीख दी कि हमारा ये जो जीवन है यह पानी की तरह है। जब तक हमारे कर्म अच्छे हैं तब तक सब कुछ शुद्ध है, लेकिन जीवन में कई बार दुख और समस्या भी आते हैं जिससे जीवन रूपी पानी गंदा लगने लगता है। इस कहानी की सीख यही है कि समस्या और बुराई केवल कुछ समय के लिए जीवन रूपी पानी को गंदा कर सकती है। लेकिन अगर आप धैर्य से काम लेंगे तो बुराई खुद ही कुछ समय बाद आपका साथ छोड़ देगी। सभी धर्म व्यति को धैर्यवान बनने का संदेश देते है। ऐसे व्यति बुरा फल मिलने पर भी किसी को दोष नहीं देते।

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