जब भी कोई अपराध होता है तो केस दर्ज किया जाना जरूरी है। अगर संज्ञेय अपराध हुआ है तो एफआईआर दर्ज करना पुलिस की ड्यूटी है। लेकिन कई बार हमें यह पता ही नहीं होता कि आखिर एफआईआर दर्ज करने के मामले में क्या कानून है और हमारे क्या अधिकार हैं? इसलिए यह जानना बेहद जरूरी है। जब मामला संज्ञेय हो तो प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करना अनिवार्य है। हाई कोर्ट के ऐडवोकेट नवीन शर्मा बताते हैं कि संज्ञेय अपराध का मतलब होता है वह अपराध जो गंभीर किस का अपराध हो यानी मर्डर, रेप, लूट, डकैती, हत्या का प्रयास, सेशुअल ऑफेंस या ऐसा कोई भी अपराध जिसमें आमतौर पर 3 साल क्या उससे ज्यादा की सजा हो। उसे संज्ञेय अपराध की कैटिगरी में रखा गया है। संज्ञेय अपराध और गैरसंज्ञेय अपराध का जिक्र कानून की किताब में है और उसके तहत संज्ञेय अपराध को गंभीर अपराध माना गया है। उसमें एफआईआर दर्ज करना जरूरी है। अगर पुलिस को संज्ञेय अपराध की जानकारी मिलती है और कोई शिकायती भी न हो तो पुलिस सीधे अपनी सूचना के आधार पर केस दर्ज कर सकती है।
मसलन अगर कहीं मर्डर हुआ है और कोई शिकायती नहीं है तो भी पुलिस मामला दर्ज करती है। एडवोकेट राजीव मलिक बताते हैं कि सीआरपीसी की धारा-154 में बताया गया है कि संज्ञेय अपराध में केस दर्ज किया जाना अनिवार्य है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ललिता कुमारी बनाम यूपी सरकार के केस में गाइडलाइंस भी जारी की थीं। इसके तहत कहा गया था कि संज्ञेय अपराध के मामले में केस दर्ज करना अनिवार्य है। सीआरपीसी की धारा154 के तहत केस दर्ज करना अनिवार्य बनाया गया। अगर पुलिस को पता चलता है कि किसी जगह पर संज्ञेय अपराध हुआ है तो पुलिस सूचना के हिसाब से केस दर्ज करेगी। पुलिस को ऐसे मामले में कोई पीई (प्रारंभिक जांच) करने की जरूरत नहीं है बल्कि पुलिस को सीधे एफआईआर दर्ज करनी है। पुलिस सिर्फ यह पता लगाने के लिए प्रारंभिक जांच करती है कि संज्ञेय अपराध हुआ है या नहीं।
अगर संज्ञेय अपराध का मामला है तो गाइडलाइंस और सीआरपीसी के तहत केस दर्ज करना होगा। जब कोई शिकायती संज्ञेय अपराध होने पर थाने जाता है और अपनी शिकायत लिखकर देता है तो पुलिस को केस दर्ज करना होगा। एडवोकेट अमन सरीन बताते हैं कि कई बार पुलिस शिकायत की एक कॉपी पर मुहर लगाकर दे देती है लेकिन केस दर्ज नहीं होता। ऐसे में शिकायती कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है योंकि पुलिस को संज्ञेय अपराध होने पर केस दर्ज करना होता है। पुलिस कई बार शिकायत लेने के तुरंत बाद केस दर्ज नहीं करती तो इसका मकसद यह होता है कि इस बात का पता लगाया जाए कि संज्ञेय अपराध की सूचना सही है या नहीं। आमतौर पर प्रारंभिक जांच शादी से जुड़े मसलों के केस में होती है। साथ ही कमर्शल अपराध में भी यह जांच कई बार की जाती है। गाइडलाइंस के मुताबिक संज्ञेय अपराध के मामले में पुलिस एफआईआर करने की जिमेदारी से बच नहीं सकती।
राजेश चौधरी
(लेखक कानूनविद हैं ये उनके निजी विचार हैं)