भारत का दृढ़ रुख प्रशंसनीय

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भारत को अपने तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, चीन और नेपाल से सीमा को लेकर विवाद का सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान का रूख सदैव से भारत के विरोध में रहा है। विवाद उसकी प्रकृति में है, आये दिन नियंत्रण रेखा पर कोई न कोई कार्रवाई करता रहता है। भारत सजग है और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देता रहता है। चीन भी काफी दिनों से सीमा पर विवाद करने की कोशिश कर रहा है। भारत ने चीन की सभी कार्रवाइयों का जिस दृढ़ता से जवाब दिया है वह काबिल-ए-तारीफ है। विवाद की स्थिति को देखते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने मध्यस्थता की कोशिश की थी। इसके पहले भी ट्रंप ने कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने की बात की थी परन्तु भारत ने बड़ी दृढ़ता के साथ मना कर दिया था। भारत ने चीन के प्रति जो दृढ़ता दिखाई है उससे अब चीन का रूख नरम पड़ता दिखाई दे रहा है। जबकि इसके पहले चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने चीनी सेना को युद्ध की तैयारियों के लिए तेजी बरतने का आदेश दिया था। परन्तु चीन ने अचानक अपना सुर बदल लिया है। बीजिंग के प्रवता झाओ लिंजियान ने कहा कि दोनों देशों के पास बातचीत और विचार विमर्श करके मामले को हल करने के लिए उचित तंत्र और माध्यम है।

भारत के चीन और पाकिस्तान से बहुत अधिक मधुर रिश्ते नहीं रहे हैं। इन दोनों देशों से भारत का युद्ध भी हो चुका है। तिबत को लेकर भारत के रूख को चीन पसंद नहीं करता है। दलाईलामा के भारत रहने पर कई बार आपत्ति जता चुका है। परन्तु नेपाल के रूख से सबको आश्चर्य हो रहा है। भारत व नेपाल की मैत्री सदियों पुरानी रही है। दोनों देशो में निर्बाध आवागमन से लेकर कई अन्य समझौते भी हैं। भारत नेपाल के आर्थिक सहयोगियों में से प्रमुख है। इसके बावजूद उसने भारत से सीमा को लेकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। भारत ने हाल ही लिपुलेख तक सड़क का निर्माण किया है जिसका उद्घाटन रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने किया। इसके बाद ही नेपाल सरकार ने विरोध जताते हुए एक नया मानचित्र जारी कर भारत के कालापानी, लिपुलेख व लिम्पियाधुरा को अपना क्षेत्र बताया। नेपाल की संसद में नेपाल के नशे के बदलाव को लेकर संवैधानिक संशोधन किया जाना था। परन्तु नेपाल ने अपने कदम पीछे खींचते हुए नेपाली संसद में चर्चा करना तो दूर इसको एजेंडे से ही हटा दिया। भारत के लिए यह सुखद संदेश है योंकि माना जा रहा है कि नेपाल ने विरोध का रूख चीन के इशारे पर किया था।

अब माना जा रहा है कि विवाद का सुखद पटाक्षेप होगा। सदियों पुरानी भारत व नेपाल की मैत्री बनी रहेगी। यह समय की मांग है और दोनों देशों का हित भी इसी में है। पाकिस्तान और चीन का भारत विरोध तो पूर्व से है। चीन और पाकिस्तान के बीच मैत्री व सामरिक सम्बन्ध हैं। चीन सामरिक फायदे के लिए पाकिस्तान की मदद करता है। पाकिस्तान के रहनुमा भारत का परंपरागत विरोध करते हैं। भारत का विरोध करके अपने देश की बहुसंख्यक जनता की सहानुभूति बटोरते हैं। चीन भी भारत का वर्तमान में विरोध दबाव बनाने के लिए करता है। यह दबाव वह अपने आर्थिक हित साधने के प्रयास में बनाता है। चीन से भारत में बहुत सी वस्तुएं भारी मात्रा में आयात की जाती हैं। कोरोना के बाद चीन का आर्थिक बाजार सिमटेगा। सीमा विवाद चीन की भारत में अपना बाजार स्थिर रखने के लिए एक कवायद हो सकती है। यह सामरिक विशेषज्ञों के लिए मंथन की बात हो सकती है। परन्तु नेपाल का विरोधी सुर समझ में नहीं आ रहा है। मित्रवत संबंध होने के बावजूद विवाद उत्पन्न करना नये कूटनीतिक स्थितियों की ओर संकेत करता है। आशा है कि नेपाल वर्तमान स्थिति को समझेगा और भारत से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाये रखेगा।

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