भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में सेना द्वारा आंग सान सू की सरकार का तख्ता पलट करना जहां, वहां की स्थनीय राजनीति को प्रभावित कर रहा है। वहीं राजनीतिक चिंतक इस बात पर भी मंथन कर रहे हैं कि म्यांमार में तख्ता पलट व सेना के शासन से भारत पर या कोई असर पड़ेगा। म्यांमार में सेना के हाथ साा आने से वहां की राजनीति तो प्रभावित होगी लेकिन फिलहाल इसका भारत पर कोई प्रत्यक्ष असर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। क्योंकि म्यांमार से भारत के संबंध बनने उसी समय से शुरू हो गए थे जब वहां मार्शल लॉ यानी सैन्य शासन था। दूसरे म्यांमार को भारत की जरूरत है। वह किसी भी हालत में भारत से संबंध बिगाडऩा नहीं चाहेगा। जिस तरह के वहां हालात चल रहे हैं, ऐसी स्थिति में भारत को कोई प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं है। चिंतनशील मुद्दा यह है कि यदि चीन ने म्यांमार में अपनी निकटता बढ़ाई तो हो सकता है कि म्यांमार भारत के लिए कांटा बन जाए। म्यांमार की मुख्य विपक्षी पार्टी यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी को सेना का समर्थन हासिल था।
इस पार्टी के नेता थान हिते हैं, जो सेना में ब्रिगेडियर जनरल रह चुके हैं। थान हिते ने भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने की वकालत की है। आंग सान सू की की सरकार तख्ता पलटने के बाद अब म्यांमार की साा पूरी तरह से सेना के हाथ में आ गई है। तख्तापलट के बाद वहां सेना ने एक साल के लिए इमरजेंसी का भी ऐलान कर दिया है। विदेश मामलों के जानकार रहीस सिंह का कहना है कि अभी तो भारत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि संबंध देश के साथ तय होते हैं, वहां के शासक के साथ नहीं होते हैं। इसके अलावा म्यांमार को भारत की जरूरत है, इसलिए वो खुद भारत से अलग होना या संबंध बिगाडऩा नहीं चाहेगा। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, म्यांमार में जब तक सेना का शासन है, तब तक भारत को दोस्ती की कोई पहल न करे। बस केवल एक ही बात चिंतन योग्य है कि यदि चीन ने इन हालात में म्यांमार से निकटता बढ़ाई तो वह भारत के लिए हानिकारक हो सकती है।
एम. रिजवी मैराज
(लेखक एक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)