चीन के प्रति भारत गलतफहमी में न रहे

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिस उद्देश्य के लिए अचानक लद्दाख-दौरा हुआ, वह अपने आप में पूरा हो गया है, फौज की दृष्टि से और भारतीय जनता के हिसाब से भी। दोनों को बड़ी प्रेरणा मिली है लेकिन चीन की तरफ से जो जवाब आया है और विदेशी सरकारों की जो प्रतिक्रियाएं आई हैं, उन पर हमारे नीति-निर्माता गंभीरतापूर्वक ध्यान दें, यह जरुरी है। चीनी दूतावास और चीनी सरकार ने बहुत ही सधे हुए शब्दों का इस्तेमाल किया है। उनमें बौखलाहट और उत्तेजना बिल्कुल भी नहीं दिखाई पड़ती है। उन्होंने कहा है कि यह वक्त तनाव पैदा करने का नहीं है। दोनों देश सीमा के बारे में बात कर रहे हैं। चीन पर विस्तारवादी होने का आरोप लगभग निराधार है। उसने 14 में से 12 पड़ौसी देशों के साथ अपने सीमा-विवाद बातचीत के द्वारा हल किए हैं। मैं सोचता हूं कि भारत सरकार भी चीन के साथ युद्ध छेड़ने के पक्ष में नहीं है।

वह भी बातचीत के रास्ते को ही बेहतर समझती है। इसीलिए किसी भी भारतीय नेता ने चीन पर सीधे वाग्बाण नहीं छोड़े हैं। मोदी-जैसे दो-टूक बातें करनेवाले नेता को भी घुमा-फिराकर नाम लिये बिना अपनी बात कहनी पड़ रही है। उसका लक्ष्य चीन को न उत्तेजित करना है, न अपमानित करना है और न ही युद्ध के लिए खम ठोकना है। उसका लक्ष्य बहुत सीमित है। एक तो अपने जवानों के घावों पर मरहम लगाना है और दूसरा, अपनी जनता के मनोबल को गिरने नहीं देना है। मोदी के लिए चीन की चुनौती से भी बड़ी तो अंदरुनी चुनौती है। जो विरोधी दल मोदी पर फब्तियां कस रहे हैं, यदि मोदी उनके कहे पर आचरण करने लगे तो भारत-चीन युद्ध अवश्यंभावी हो सकता है। मोदी को यह पता है और हमारे कांग्रेसी मित्रों को यह बात और भी अच्छी तरह पता होनी चाहिए कि युद्ध की स्थिति में भारत का साथ देने के लिए एक देश भी आगे आनेवाला नहीं है।

अमेरिका इसलिए खुलकर भारत के पक्ष में बोल रहा है क्योंकि चीन की अमेरिका के साथ ठनी हुई है। लेकिन युद्ध की स्थिति में अमेरिका भी आंय-बांय-शांय करने लगेगा। जहां तक अन्य देशों का सवाल है, हमारे सारे पड़ौसी देश मुखपट्टी (मास्क) लगाए बैठे हैं। सिर्फ पाकिस्तान चीन के खातिर अपना फर्ज निभा रहा है। दुनिया के बाकी देशों- जापान, रुस, फ्रांस, एसियान और प्रशांत-क्षेत्र के देशों के बयान देखें तो उन्हें पढ़कर आपको हंसी आएगी। न वे इधर के हैं, न उधर के हैं। क्या इन देशों के दम पर चीन से हमें पंगा लेना चाहिए ? रुस और फ्रांस- जैसे देश इसीलिए चिकनी-चुपड़ी बातें कर रहे हैं कि हम उनसे अरबों रु. के हथियार खरीद रहे हैं। भारत को जो कुछ भी करना है, अपने दम पर करना है। वह गलतफहमी में न रहे।

डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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