सदी की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी

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कोरोना महामारी से पैदा हुई हालत और उससे उबरने के तरीकों पर विचार के लिए संयुक्त राष्ट्र का विशेष अधिवेशन बुलाना एक स्वागतयोग्य कदम है। ये अधिवेशन पिछले हते शुरू हुआ। इसमें संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटारेस ने दुनिया को आगाह किया कि कोरोना महामारी से जो झटका लगा है, उससे उबरने में दुनिया को कई वर्ष लग सकते हैं। इस सम्मेलन से पहले संयुक्त राष्टट्र ने एक रिपोर्ट जारी कर दुनिया को आगाह किया। कहा कि कोरोना महामारी के कारण दुनिया भर में मानवीय सहायता और सुरक्षा की जरूरत इस साल के मुकाबले 2021 में करीब 40 फीसदी ज्यादा होगी। यूएन ने इसके लिए अगले साल के दौरान 35 अरब डॉलर चंदा जमा करने की अपील की है। संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायता और राहत कार्यों से जुड़े अधिकारियों का अनुमान है कि 2021 में दुनिया भर में लगभग साढ़े 23 करोड़ लोगों को मानवीय सहायता और सुरक्षा की जरूरत होगी। यह एक रिकॉर्ड संख्या होगी। यह 2020 की तुलना में करीब 40 प्रतिशत ज्यादा है। इस स्थिति का मुख्य कारण कोरोना वायरस से फैली महामारी है।

यूएन ने कहा है कि महामारी ने नाजुक और कमजोर हालात का सामना कर रहे देशों में भारी तबाही मचाई है। यूएन के 2021 के लिए वैश्विक मानवीय सहायता परिदृश्य रिपोर्ट में कहा गया है कि 56 देशों में बेहद नाजुक हालात का सामना कर रहे लगभग 16 करोड़ लोगों तक मदद पहुंचने की योजना पर तुरंत अमल की जरूरत पड़ेगी। अगर ये सभी योजनाएं पूरी की गईं, तो इन पर 35 अरब डॉलर का खर्च आएगा। यूएन का अनुमान है कि दुनिया भर में साढ़े 23 करोड़ लोग कोरोना वायरस महामारी, भूख, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यूएन की मुख्य चिंताओं में से एक यमन, अफगानिस्तान, उत्तर पूर्व नाइजीरिया, दक्षिण सूडान, कांगों और बरकीना फासो में अकाल टालने की है। इन देशों में कोरोना महामारी ने लाखों लोगों को गरीबी में धकेल दिया है। इसलिए अकाल को टालने, गरीबी का मुकाबला करने और बच्चों का टीकाकरण और उन्हें स्कूलों में रखने के लिये मानवीय सहायता राशि की जरूरत है। कहा जा सकता है कि इस रिपोर्ट पर विश्व समुदाय को गंभीरता से गौर करना चाहिए। ऐसी रिपोर्टों की अहमियत ही यही होती है कि इनसे उन समस्याओं पर ध्यान जाता है, जो आम तौर पर छिपी रह जाती हैं।

समस्या ये भी है कि कोरोना महामारी से परेशान भारत में एक इलाके में सीमित किसी एक नई बीमारी पर ज्यादा ध्यान देने की फुर्सत शायद नहीं है। वरना, आंध्र प्रदेश के एलुरु इलाके में फैली रहस्यमयी बीमारी को कम चिंताजनक नहीं है। इसके मरीजों के खून के सैंपलों की जांच ने रहस्य और बढ़ा दिया है। जांच के दौरान खीन में सीसा और निकल जैसे धातु मिले। तो या ये बीमारी प्रदूषण का परिणाम है? अधिकारियों का कहना है कि दौरे पडऩा और बेहोश होना सभी मरीजों में सिर्फ एक बार देखा गया। परिवार में सिर्फ एक ही व्यति में ये लक्षण दिखे, जिसका मतलब है कि यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे तक नहीं फैलती है। एक व्यति की इस रहस्यमयी बीमारी से मृत्यु की पुष्टि हो चुकी है। बीमारी की ततीश में अब विश्व स्वास्थ्य संगठन भी शामिल हो गया है। पानी के साथ-साथ दूध और चावल के सैंपलों की जांच भी की जा रही है। कोविड-19 संक्रमण के मामलों में आंध्र प्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में से है। लेकिन इस बीमारी के लक्षण कोविड जैसे नहीं हैं। इस बीमारी के सभी पीडि़तों का कोविड टेस्ट हो चुका है और किसी को भी संक्रमित नहीं पाया गया है। तो कुल मिलाकर रहस्य कायम है। कोविड की शुरुआत भी चीन में छोटे स्तर पर हुई थी। ऐसा नहीं लगता कि वैसी घटना दोहराई जाएगी। फिर भी पूरी सावधानी की जरूरत है।

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