सरकार के कान भी बंद

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ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लांसेट ने भारत में कोरोना महामारी की स्थिति पर लिखे अपने संपादकीय में आज की हालत के लिए सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया है। जाहिर है, उसमें बताए गए कारणों और तर्क को भारत सरकार स्वीकार नहीं करेगी। इसलिए उसमें जो आज की गंभीर हालत से निकलने के लिए सुझाव दिए गए हैं, उस पर भी गौर नहीं करेगी। विदेशी मीडिया की टिप्पणियों पर भारत सरकार के अधिकारियों की सीधी प्रतिक्रिया होती है कि हमें उपदेश की जरूरत नहीं है। और देश में अगर कोई कहे, तो उसे सरकार विरोधी समझ कर उस पर हमला बोल दिया जाता है। बहरहाल, अब ऐसे सरकार विरोधियों की सूची में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भी शामिल हो गया है। उसने मांग की है कि स्वास्थ्य मंत्रालय नींद से जागे और कोविड-19 महामारी के कारण बढ़ती जा रहीं चुनौतियों से निपटने के लिए कदम उठाए। आईएमए विशेषज्ञों की संस्था है। अब उसने कहा है कि महामारी की दूसरी लहर सामने थी, लेकिन सरकार ने उससे निपटने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए। आईएमए के बयान में कहा गया है- ‘कोविड-19 महामारी की दूसरी खौफनाक लहर के कारण पैदा संकट से निपटने में स्वास्थ्य मंत्रालय की ढिलाई और अनुचित कदमों को लेकर आईएमए चकित है।’

तो आईएमए ने यह भी बताया पिछले तीन हतों से वह स्वास्थ्य ढांचा बेहतर करने और साजो-सामान तथा कर्मियों को फिर से तैयार करने के लिए पूर्ण और सुनियोजित राष्ट्रीय लॉकडाउन पर जोर दे रहा है। साफ है, उसकी राय नहीं सुनी गई है। उधर आईएमए ने आरोप लगाया है कि महामारी को लेकर लिए जा रहे निर्णयों का जमीनी स्तर से कोई लेना-देना नहीं है। उसने दो टूक कहा है कि उसके और अन्य पेशेवर सहयोगियों के अनुरोध कूड़ेदान में डाल दिए गए हैं और अक्सर बिना जमीनी सच्चाई जाने निर्णय लिए जा रहे हैं। अब इससे कड़ी टिप्पणी और क्या की जा सकती है? ये सच है कि ऐसे परामर्शों को सुनने से सरकार के इनकार करने का ही परिणाम है कि हर दिन लगभग चार लाख नए मरीज संक्रमित हो रहे हैं। मध्यम से गंभीर मामलों की संख्या लगभग 40 फीसदी तक बढ़ गई है। रात के छिटपुट कर्फ्यू ने कोई भला नहीं किया है। लेकिन वर्तमान सरकार ऐसी बातों को नहीं सुनती। वह अपने ढंग से चलती है। अब चाहे लांसेट हो या आईएमए, उन्हें जो कहना है, कहते रहें! बिहार में दर्जनों एंबुलेंस मिलने को ही ले लीजिए, अगर ये बात सच है, तो बिहार के भाजपा नेता राजीव प्रताप रूडी पर गंभीर कार्रवाई होनी चाहिए।

अगर झूठ है, तो फिर बिहार में ही मधेपुरा के पूर्व सांसद और जन अधिकार पार्टी (जाप) के अध्यक्ष राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए थी। वैसे दिखावे को पप्पू की गिरतारी की गई है। इस मामले का खुलासा कई जगहों पर रेमडिसिविर सूई, वेंटीलेटर, ऑक्सीजन सिलिंडर आदि जैसी चीजों की जमाखोरी के सामने आए उदाहरणों के बीच हुआ। गौरतलब है कि जिन एंबुलेंस की बात हुई, उन सबकी खरीदारी सारण से लोकसभा सांसद राजीव प्रताप रूडी के सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीलैड) के कोष से की गई थी। एंबुलेंस पर रूडी का नाम लिखा था। एमपीलैड कोष जनता का धन है। इसलिए कई सांसद उससे हुए काम या खरीदारी को अपनी निजी जायदाद नहीं समझ सकता। रूडी के एक समर्थकों ने पप्पू यादव पर परिसर में जबरन घुसने और एंबुलेंस में तोडफ़ोड़ करने का आरोप लगाया है। पुलिस को बेशक इसकी जांच करनी चाहिए। लेकिन असल मुद्दा यह है कि रूडी ने एंबुलेंस क्यों खड़े कर रखे थे? क्या वे अपने लोगों के लिए उन्हें सुरक्षित रखना चाहते थे? अगर ऐसा है, तो यह घोर अनैतिक व्यवहार है। इस भाजपा की चुप्पी उसकी नैतिकता को भी कठघरे में खड़ा करती है।

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